WPI Inflation: थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) आधारित मुद्रास्फीति जुलाई में तीन माह के निचले स्तर पर 2.04 फीसदी पर आ गई। यह इसके पिछले महीने जून में 16 महीने के उच्चतम स्तर 3.36 फीसदी पर पहुंच गई थी। मुद्रास्फीति या महंगाई में यह गिरावट खाद्य कीमतों में आई नरमी की वजह से हुई है। खाद्य मुद्रास्फीति जुलाई में 3.45 फीसदी रही, जो इसके पिछले महीने 10.87 फीसदी थी।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के बुधवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक विनिर्मित उत्पादों और ईंधन एवं बिजली जैसे प्रमुख उप सूचकांकों की मुद्रास्फीति जुलाई में एक साल पहले के मुकाबले थोड़ी बढ़ी है।
खाद्य पदार्थों में सब्जियों (-8.93 फीसदी) और अंडे, मांस व मछली (-1.59 फीसदी) की कीमतों में गिरावट आई है। वहीं, प्याज (88.7 फीसदी), अनाज (8.96 फीसदी), धान (10.98 फीसदी) और दलहन (20.27 फीसदी) की महंगाई भी जून के मुकाबले कम हुई। दूसरी ओर, महीने के दौरान आलू (76.23 फीसदी) और फलों (15.62 फीसदी) की महंगाई ज्यादा रही।
सूचकांक में 64.2 फीसदी भार वाले विनिर्मित उत्पादों की मुद्रास्फीति भी जुलाई में बढ़कर 1.58 फीसदी हो गई, जो जून में 1.43 फीसदी थी। विनिर्मित पेय पदार्थों (2.14 फीसदी), तंबाकू (2.31 फीसदी), कपड़ा (2.09 फीसदी), लकड़ी के उत्पाद (3.53 फीसदी) और दवा (2.05 फीसदी) की कीमतों में आई तेजी की वजह से इसमें इजाफा हुआ है।
जुलाई महीने में ईंधन एवं बिजली (1.72 फीसदी) की कीमतें बढ़ गईं क्योंकि रसोई गैस (6.06 फीसदी) की कीमतों में तेज इजाफा हुआ। हाई-स्पीड डीजल(-1.65 फीसदी) और पेट्रोल (-0.64 फीसदी) की कीमतों में जुलाई के दौरान भी गिरावट रही।
केयर रेटिंग्स की मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा ने कहा कि भले ही विनिर्मित उत्पादों और ईंधन एवं बिजली की महंगाई बढ़ी है मगर थोक मुद्रास्फीति में गिरावट मुख्य तौर पर प्राथमिक वस्तुओं की महंगाई कम होने की वजह से हुई है।
उन्होंने कहा, ‘सितंबर का दूसरा पखवाड़ा शुरू होते ही खरीफ फसलों की कटाई से खाद्य कीमतों में कम होने की उम्मीद है। मगर मॉनसून होने और असमान बारिश होने के बीच खरीफ की बोआई की निगरानी करना भी महत्त्वपूर्ण होगा। दुनिया भर में कैलेंडर वर्ष के शुरुआती छह महीनों के दौरान जिंसों की कीमतों में वृद्धि दर्ज की गई थी, जो पिछले कुछ महीनों में कम हो गई हैं। मगर मौजूदा भू-राजनीतिक तनाव से होने वाली जोखिमों पर भी नजर रखने की जरूरत है।’
थोक महंगाई में नरमी का यह आंकड़ा तब आया है, जब उच्च आधार प्रभाव और खाद्य कीमतों में कमी के कारण जुलाई में खुदरा मुद्रास्फीति भी घटकर करीब 5 साल के निचले स्तर 3.54 फीसदी पर आ गई है। भारतीय रिजर्व बैंक अपनी मौद्रिक नीति के लिए खुदरा मुद्रास्फीति पर नजर रखता है, लेकिन थोक महंगाई में कमी से खुदरा मुद्रास्फीति को भी कम रखने में मदद मिल सकती है।