असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए सरकार की प्रमुख पेंशन योजना, प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन (PMSYM) से पिछले 5 साल में महज 50 लाख कामगार जुड़ पाए हैं। व्यापक अनौपचारिक क्षेत्र के कामगारों को सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था में लाने के लिए यह योजना मार्च 2019 में पेश की गई थी। कम संख्या में सबस्क्राइबर की वजह से इस योजना द्वारा करोड़ों लोगों को सामाजिक सुरक्षा देने के संकल्प की व्यवहार्यता और असर को लेकर सवाल उठ रहे हैं।
मानधन पोर्टल से मिले आंकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल 2024 में पेंशन योजना में शामिल होने वाले सबस्क्राइबरों की संख्या 50 लाख के पार पहुंच गई है। इस योजना में वित्त वर्ष 2020 में 43 लाख लोग शामिल हुए थे, जबकि वित्त वर्ष 2021 में महज 1,30,000 और उसके बाद के वित्त वर्ष में 1,61,000 सबस्क्राइबर जुड़े। वित्त वर्ष 2022 में करीब 2,55,000 लोग इस योजना से बाहर हो गए, जिससे सबस्क्राइबरों की संख्या घटी। वहीं वित्त वर्ष 2024 में करीब 6,00,000 सबस्क्राइबर जुड़े हैं।
यह 2020-21 से हर वित्त वर्ष में 2 करोड़ लाभार्थी जोड़े जाने के लक्ष्य के विपरीत है।
तत्कालीन वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने 2019 के अंतरिम बजट में इस योजना की घोषणा की थी और इसमें अगले 5 साल में 10 करोड़ लोग शामिल किए जाने थे। इस योजना में वे सभी कामगार शामिल हो सकते हैं, जिनकी उम्र 18 से 40 साल के बीच है, मासिक आमदनी 15,000 रुपये से कम है और वे कर्मचारी भविष्य निधि, कर्मचारी राज्य बीमा निगम जैसी अन्य सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के दायरे में नहीं आते हैं।
योजना के तहत 29 साल की उम्र में योजना में शामिल होने वाले कामगार को 60 साल की उम्र तक 100 रुपये महीने और 18 साल की उम्र में योजना में शामिल होने वालों को 55 रुपये प्रतिमाह अंशदान देना होता है। इतनी ही राशि केंद्र सरकार देती है। भारतीय जीवन बीमा निगम इस योजना की फंड मैनेजर है।
विशेषज्ञों का कहना है कि महंगाई बढ़ने और जीवन यापन की लागत बढ़ने की वजह से असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए इस स्वैच्छिक पेंशन योजना में शामिल होना मुश्किल हुआ है।
श्रम अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा ने कहा, ‘योजना शुरू किए जाने के तत्काल बाद कोविड महामारी के कारण की गई देशबंदी से लाखों लोगों की नौकरियां चली गईं, जिससे अंशदान कठिन हो गया। इसके बाद असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की आमदनी ज्यादा नहीं बढ़ी, जबकि पिछले 2 साल में जीवन यापन का वास्तविक खर्च बहुत बढ़ा है। इसके कारण इन श्रमिकों के लिए योजना में मासिक अंशदान जारी रख पाना बोझ बन गया।’