कोविड महामारी के जबरदस्त झटके के बाद देश में नई नौकरियों का सृजन चार वर्षों के उच्च स्तर पर पहुंच गया है। भारत में वित्त वर्ष 23 में निरंतर दूसरे साल औपचारिक रोजगार का सृजन बेहतर हुआ है और यह बेहतरी का संकेत है। यह जानकारी शनिवार को कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के नवीनतम पेरोल आंकड़ों से मिलती है।
पेरोल पर बिज़नेस स्टैंडर्ड के विश्लेषण के मुताबिक EPFO में नई सदस्यों की संख्या बढ़ी है। EPFO में वित्त वर्ष 22 में नए सदस्यों की संख्या 10,865,063 थी। यह संख्या वित्त वर्ष 23 में 5.8 फीसदी बढ़कर 11,498,453 हो गई। EPFO में वित्त वर्ष 19 के बाद सबसे ज्यादा नए सदस्यों की संख्या में इजाफा वित्त वर्ष 23 में हुआ। वित्त वर्ष 19 में नए सदस्यों की संख्या 13,944,349 थी।
सरकार औपचारिक संगठन में रोजगार सृजन पर ईपीएफओ के आंकड़ों की मदद से नजर रखती है। इसके तहत सरकार पेरोल के आंकड़ों का इस्तेमाल करती है। नए सदस्यों के शुद्ध पेरोल में बढ़ोतरी हुई है। इसके साथ सदस्यता छोड़ने व इनके पुन: सदस्य बनने वालों की संख्या में इजाफा हुआ। यह संख्या वित्त वर्ष में 1.223 करोड़ थी जो वित्त वर्ष 23 में 13.21 फीसदी बढ़कर 1.385 करोड़ हो गई। वित्त वर्ष 19 के बाद वित्त वर्ष 23 में सदस्यता छोड़कर व इसे फिर प्राप्त करने वाले सदस्यों के शुद्ध संख्या में सबसे अधिक इजाफा हुआ है। पेरोल की संख्या अप्रैल 2018 से जारी करनी शुरू की गई थी। हालांकि निवल मासिक पेरोल संख्या अनंतिम प्रकृति की होती है और इसमें कई बार संशोधन होता रहता है। यही कारण है कि नए सदस्यों की संख्या का आंकड़ा शुद्ध वृद्धि की तुलना में अधिक निश्चित होता है।
बीते पांच वर्षों से नई सदस्यों में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ रही है। लिहाजा महिलाएं के औपचारिक रोजगार में इजाफा हो रहा है। EPFO में नई महिला सदस्यों का आंकड़ा वित्त वर्ष 19 के 21 फीसदी से बढ़कर 26 फीसदी हो गया है। इसी तरह युवा लोगों (18 से 28 साल की आयु वर्ग) में औपचारिक नौकरी की हिस्सेदारी नियमित रूप से बढ़ रही है। कोविड महामारी के बाद के दौर में इनकी हिस्सेदारी बढ़ी है। यह वित्त वर्ष 21 में 62.1 फीसदी थी और वित्त वर्ष 23 में बढ़कर 66.5 फीसदी हो गई। यह आंकड़ा इसलिए भी महत्वपूर्ण होता है कि 18-28 साल का आयु वर्ग आमतौर पर पहली बार नौकरी के बाजार में आता है। यह आंकड़ा गुणवत्ता के बेहतर होने को भी प्रदर्शित करता है। हालांकि ‘29-35 आयु वर्ग’ और ’35 वर्ष से अधिक के आयु वर्ग’में निरंतर गिरावट आई है और इस अवधि में इन वर्गों में नए सदस्यों की संख्या में भी कमी आई है।
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हालांकि शुद्ध पेरोल संयोजन में नए सदस्यों (18 से 28 आयु समूह) में वित्त वर्ष 19 के 76.8 फीसदी से गिरकर वित्त वर्ष 23 में 62.9 फीसदी हो गई। इससे यह उजागर होता है कि युवाओं को औपचारिक रोजगार प्राप्त को फिर प्राप्त करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। युवा जब एक बार नौकरी छोड़ देते हैं तो उन्हें फिर औपचारिक रोजगार प्राप्त करने में अधिक समय लगता है।
इस विषमता के बारे में रोजगार अर्थशास्त्री ने कहा, ‘अभी भी भारत के श्रम बाजारों में रोजगार का सृजन चुनौती है। हालांकि EPFO के आंकड़े उत्साहवर्धक है और यह भारत में कामकाजी वर्ग के एक छोटे से हिस्से के बारे में बताते हैं। देश की ज्यादातर आबादी अनौपचारिक क्षेत्र के कम उत्पादन वाले कार्यों, कम पारिश्रमिक और कम कुशल नौकरियों में हैं। यह आबादी इनमें (सर्वेक्षणों में) शामिल नहीं होती है।
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लिहाजा यह सरकारी आंकड़ों में उजागर ही नहीं होती है। लिहाजा यह जरूरी है कि सरकार प्रमुख क्षेत्रों जैसे विनिर्माण, निर्माण, सेवा आदि में सार्थक रूप से रोजगार सृजन करे। इससे युवाओं को वास्तविक रूप में सार्थक रोजगार मिल सकेगा।’