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In Parliament: ‘DVT कहीं बड़ी कंपनियों के MSMEs अधिग्रहण का जरिया ना बन जाए: संसदीय समिति

DVT एक ऐसी सीमा है, जिसके पार जाने वाले अधिग्रहण या विलय के मामलों में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) की पूर्व स्वीकृति आवश्यक होती है।

Last Updated- August 11, 2025 | 8:34 PM IST
Budget session of Parliament

संसद की स्थायी वित्त समिति (Standing Committee on Finance) ने सोमवार को “भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) की बदलती भूमिका, विशेष रूप से डिजिटल अर्थव्यवस्था में” विषय पर अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की। समिति ने कई अहम सिफारिशें करते हुए चेताया है कि वर्तमान में लागू 2,000 करोड़ रुपये की डील वैल्यू थ्रेशोल्ड (DVT) की सीमा कहीं MSME कंपनियों के बड़े कॉरपोरेशनों द्वारा बिना जांच के अधिग्रहण का जरिया न बन जाए।

DVT एक ऐसी सीमा है, जिसके पार जाने वाले अधिग्रहण या विलय के मामलों में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) की पूर्व स्वीकृति आवश्यक होती है। फिलहाल यह सीमा ₹2,000 करोड़ तय है। इसका उद्देश्य यह है कि बड़े कारोबारी सौदों की प्रतिस्पर्धा पर संभावित प्रभाव की जांच की जा सके।

रिपोर्ट में कहा गया है कि “यह पुनर्समीक्षा बेहद आवश्यक है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मौजूदा थ्रेशोल्ड अनजाने में MSMEs के अधिग्रहण को CCI की निगरानी से बाहर न कर दे, जिससे बाजार में एकाधिकार (monopoly) या द्वैधाधिकार (duopoly) की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।”

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समिति ने सुझाव दिया है कि यदि बाज़ार अध्ययन संकेत दें, तो एमएसएमई से जुड़े अधिग्रहण मामलों के लिए DVT को और कम किया जा सकता है। रिपोर्ट में CCI की वर्तमान कार्यशैली को “पोस्टमार्टम” बताते हुए कहा गया कि आयोग को डिजिटल बाज़ार की तेज़ी से बदलती प्रकृति को देखते हुए एक सक्रिय (proactive) भूमिका निभाने की जरूरत है।

  • सेक्टर-विशिष्ट मार्केट स्टडीज़ को नए व्यापार मॉडलों और तकनीकी बदलावों के अनुरूप उभरते क्षेत्रों में बढ़ाया जाए। 
  • इन अध्ययनों से प्राप्त निष्कर्ष नीतिगत हस्तक्षेपों (policy interventions) का आधार बनें।

समिति ने कहा कि CCI को प्रमुख डिजिटल कंपनियों द्वारा की जा रही गहरी छूट (deep discounting) और शिकारी मूल्य निर्धारण (predatory pricing) पर जांच जारी रखनी चाहिए। समिति ने सुझाव दिए कि ऐसे व्यापारिक व्यवहारों को प्रतिस्पर्धा विरोधी (anti-competitive) घोषित करने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश बनाए जाएं। छोटे व्यापारियों को डेटा तक पहुंच उपलब्ध कराई जाए, ताकि वे बड़ी डिजिटल कंपनियों से मुकाबला कर सकें।

रिपोर्ट के मुताबिक कुल ₹20,350.46 करोड़ के जुर्माने में से, ₹18,512.28 करोड़ की वसूली अदालतों में अटकी हुई है या खारिज हो चुकी है। ₹1,838.19 करोड़ ‘वास्तव में वसूलने योग्य’ है, जिसमें से ₹1,823.57 करोड़ (लगभग 99.2%) वसूले जा चुके हैं। यह आंकड़ा दिखाता है कि “CCI अदालतों में चुनौती न दिए गए मामलों में कुशलता से जुर्माना वसूल रहा है, लेकिन **लंबी कानूनी प्रक्रिया इसकी समग्र प्रभावशीलता को कमजोर करती है।”

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समिति ने सुझाव दिया कि मिनिस्ट्री ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स (MCA) और CCI को मिलकर ऐसे उपाय तलाशने चाहिए जिससे डिजिटल मामलों में न्यायिक देरी को कम किया जा सके और आदेशों को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सके। समिति ने कहा कि डिजिटल कॉम्पिटिशन बिल में प्रस्तावित प्रावधान वैश्विक मानकों के अनुरूप हैं, लेकिन इनका कार्यान्वयन चरणबद्ध, साक्ष्य-आधारित और संतुलित होना चाहिए। CCI की संस्थागत क्षमता, नवाचार पर संभावित प्रभाव और MSME पर अनुपालन बोझ जैसे मुद्दों को ध्यान में रखा जाए।

वित्त पर स्थायी समिति की यह रिपोर्ट इस बात पर बल देती है कि तेज़ी से बदलती डिजिटल अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा को बनाए रखना अब सिर्फ पारंपरिक निगरानी का मामला नहीं रहा। सरकार और CCI को न केवल नीतियों की समीक्षा करनी चाहिए, बल्कि उन्हें भविष्य के लिए तैयार भी करना चाहिए, ताकि नवाचार, निष्पक्षता और पारदर्शिता कायम रह सके।

(एजेंसी इनपुट के साथ)

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First Published - August 11, 2025 | 8:21 PM IST

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