श्रम विभाग द्वारा विभिन्न राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में 2019 में फैक्टरियों की जांच करीब 3 गुना बढ़कर 13 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई है। श्रम ब्यूरो द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक, श्रम विभाग द्वारा 2019 में की गई कुल जांच 85,558 हो गई, जो 2018 में 28,489 थी।
फैक्टरियों की जांच के बारे में श्रम ब्यूरो द्वारा जारी आंकड़े राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के आंकड़ों का संकलन होता है। यह फैक्टरी अधिनियम, 1948 के तहत तैयार किया जाता है, जिसके मुताबिक सभी पंजीकृत फैक्टरियों को अपने स्थानीय श्रम आयुक्तों को सालाना वैधानिक रिटर्न और प्रशासनिक रिपोर्ट दाखिल करनी होती है।
2006 में 92,261 जांच की गई थी, जो 2019 में की गई जांच की संख्या की तुलना में अधिक है।
कुल 2,34,696 पंजीकृत फैक्टरियों में से 69,328 फैक्टरियों (29.5 प्रतिशत) की जांच 2019 में सिर्फ एक बार हुई, जबकि 15,272 (6.5 प्रतिशत) फैक्टरियों की जांच 2 बार और 584 फैक्टरियों (0.2 प्रतिशत) की जांच 3 बार की गई।
श्रम विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अधिनियम के तहत तैयार नियम के तहत इंस्पेक्टर स्तर के कर्मचारी को किसी कामगार, ट्रेड यूनियन, निजी व्यक्ति आदि की शिकायत की जांच करनी होती है।
उन्होंने कहा, ‘इंसपेक्टर स्वविवेक से किसी फैक्टरी पर किसी उल्लंघन के मामले को स्वतः संज्ञान में लेकर जांच नहीं कर सकते हैं। औपचारिक शिकायत मिलने पर ही विभाग द्वारा कार्रवाई की जाती है। जांच की संख्या बढ़ने का मतलब यह है कि उल्लंघन के ज्यादा मामलों की सूचना उस साल के दौरान आई है।’
हालांकि इंपैक्ट ऐंड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के विजिटिंग प्रोफेसर केआर श्याम सुंदर ने कहा कि इस बढ़ोतरी की मुख्य वजह बड़े औद्योगिक राज्य हो सकते हैं, जिन्होंने संभवतः पहले आंकड़े दाखिल नहीं किए हों और इस साल ऐसा किया हो। इसकी वजह से श्रम ब्यूरो के आंकड़ों में उतार चढ़ाव होता है।
उन्होंने कहा, ‘इस तरह के उल्लंघन ज्यादातर छोटे और मझोले स्तर के श्रम केंद्रित उद्यमों द्वारा किए जाते हैं, जो घरों में चलने वाली इकाइयां होती हैं और अधिनियम के प्रावधानों का पालन करने के लिए उनके पास संसाधन नहीं होते हैं। ज्यादातर शिकायतें सुरक्षा और पर्यावरण संबंधी प्रावधानों को लेकर आती हैं। तमिलनाडु जैसे प्रमुख औद्योगिक राज्य, जहां छोटे उद्यमों के बड़े क्लस्टर हैं, ने 2019 में आंकड़े जुटाए हैं, जो शिकायतों की जांच में बढ़ोतरी की वजह हो सकती है।’
इसके अलावा 2019 में दोषसिद्धि के मामले भी बढ़कर 5,722 हो गए हैं, जो 2018 के 2,630 की तुलना में दोगुना है।
अधिकारी ने कहा, ‘सामान्यतया इंसपेक्टर नियम के उल्लंघन के मामले में प्रबंधन को नोटिस भेजता है। अगर प्रबंधन इसका अनुपालन करने में विफल होता है तो उल्लंघन करने वाले के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाती है। सामान्यतया वे अनुपालन करते हैं और दोबारा उल्लंघन करने वाले कुछ लोगों को सजा मिलती है।’
आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) की जनरल सेक्रेटरी अमरजीत कौर ने कहा कि जांच और दोषसिद्धि की संख्या में बढ़ोतरी कामगारों के अधिकार का सम्मान न करने की प्रवृत्ति को दिखाता है, जो हाल के वर्षों में बढ़ा है।
उन्होंने कहा कि यह वक्त है, जब सरकार को इस मसले को संज्ञान में लेकर फैक्टरी इंस्पेक्टरों को ज्यादा अधिकार देना चाहिए, जिससे कानून का उल्लंघन करने वालों पर काबू पाया जा सके।