1 अगस्त 2025 से अमेरिका ने भारत से आने वाले कई प्रोडक्ट पर 25% तक का नया “जवाबी टैक्स” (Reciprocal Tariff) लगाने की घोषणा की है। यह फैसला अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की ओर से ऐसे समय पर आया है, जब भारत और अमेरिका के बीच क्लीन एनर्जी, डिजिटल व्यापार और रक्षा सहयोग को लेकर पांच दौर की बातचीत हो चुकी थी। यह फैसला न सिर्फ व्यापारिक रिश्तों में खटास ला सकता है, बल्कि इससे भारत की GDP ग्रोथ, एक्सपोर्ट बिज़नेस, सेक्टर वाइज कमाई और विदेशी निवेश के फ्लो पर भी गहरा असर पड़ने की आशंका है।
PL Capital द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक, साल 2023-24 (FY24) में भारत ने अमेरिका को $80.8 बिलियन का माल और $184.2 बिलियन की सेवाओं के जरिए कमाई की, यानी कुल मिलाकर $265 बिलियन का निर्यात हुआ। माल के निर्यात में प्रमुख उत्पाद थे:
इस भारी अंतर से अमेरिका को व्यापार घाटा हो रहा है, जो इस टैरिफ के पीछे एक अहम कारण माना जा रहा है।
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PL Capital के रिसर्च डायरेक्टर अमनीश अग्रवाल का कहना है कि यह विवाद सिर्फ व्यापार का नहीं, बल्कि राजनीति और रणनीति से भी जुड़ा है। अमेरिका चाहता है कि भारत अपने बाजार को GM (जेनेटिकली मॉडिफाइड) फसलों और विदेशी डेयरी प्रोडक्ट्स के लिए खोले। लेकिन भारत की 60% ग्रामीण आबादी खेती और पशुपालन पर ही निर्भर है, इसलिए यह इतना आसान नहीं है।
इसके अलावा, भारत की रूस के साथ डिफेंस और एनर्जी डील, BRICS और RIC जैसे समूहों में बढ़ती भागीदारी, और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे सैन्य मिशनों से भी अमेरिका थोड़ा असहज महसूस कर रहा है। ट्रंप की कड़ी प्रतिक्रिया इन्हीं बातों की नाराज़गी को दिखाती है।
एमके Global की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका ने भले ही भारत पर 25% से ज्यादा टैरिफ (टैक्स) लगा दिए हों, लेकिन यह व्यापार विवाद अभी खत्म नहीं हुआ है। यह मामला सिर्फ व्यापार का नहीं, बल्कि राजनीति और रणनीति से भी जुड़ा है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत और अमेरिका के बीच आगे चलकर कोई समझौता हो सकता है। लेकिन उन्होंने यह भी बताया कि जो देश अब तक अमेरिका से समझौता कर चुके हैं, उन्हें भी अमेरिका ने भारी टैक्स से नहीं बचाया, चाहे उन्होंने कितनी भी रियायतें दी हों।
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भारत की अर्थव्यवस्था दूसरे एशियाई देशों की तुलना में निर्यात (एक्सपोर्ट) पर कम निर्भर है। इसके बावजूद, अगर एशिया में आर्थिक मंदी आती है, तो भारत भी उसका असर झेलेगा। दुनियाभर में व्यापार व्यवस्था में जो बदलाव हो रहे हैं, वे बहुत आसान नहीं होंगे। आने वाले समय में शेयर बाजार, करेंसी और कैपिटल फ्लो में भारी उतार-चढ़ाव आ सकता है। इसका सीधा असर भारतीय रुपये (INR) पर पड़ेगा और रिजर्व बैंक (RBI) को अपनी नीतियों में बदलाव करना पड़ सकता है। RBI को कई तरह के घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच संतुलन बनाना होगा। वो भी तब जब उसकी मौद्रिक नीति धीरे-धीरे ढीली हो रही है।
Alpha Money के मैनेजिंग पार्टनर ज्योति प्रकाश कहते हैं, “25% टैरिफ की वजह से GDP ग्रोथ पर 20-30 बेसिस पॉइंट्स का असर पड़ सकता है। EPS (Earnings Per Share) में भी हल्की गिरावट आएगी। लेकिन हमें उम्मीद है कि अगले 6 महीनों में कोई ट्रेड डील हो जाएगी और टैरिफ दर घटकर 15% के आसपास आ सकती है।”
वह आगे कहते हैं कि भारत की कॉरपोरेट प्रॉफिटेबिलिटी और GDP ग्रोथ के बीच गहरा संबंध है, जो अन्य देशों से अलग है।
वेंचुरा सिक्योरिटीज के रिसर्च हेड विनीत बोलिंजकर का कहना है कि अमेरिका द्वारा लगाया गया 25% टैरिफ और रूस से रक्षा व तेल व्यापार को लेकर संभावित पेनल्टी भारत की निर्यात अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती है। 2024 में अमेरिका ने भारत से फार्मा को छोड़कर 75 अरब डॉलर के सामान आयात किए थे। ऐसे में टेक्सटाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और रत्न-आभूषण सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं।
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वह मानते हैं कि भारत की प्रतिस्पर्धा पर दबाव बढ़ेगा, लेकिन चीन (54% टैरिफ) और वियतनाम (46%) की तुलना में भारत की स्थिति फिर भी बेहतर है। फार्मा सेक्टर को फिलहाल राहत मिली है, लेकिन अमेरिकी कानून CAATSA के चलते भविष्य में व्यापक पाबंदियां लग सकती हैं। उन्होंने कहा कि भारत को अपने ट्रेड सरप्लस और आर्थिक स्थिरता को बनाए रखने के लिए निर्यात डायवर्सिफिकेशन और नए व्यापार समझौते तेजी से करने होंगे।
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पीएल कैपिटल द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक, भारत का कुल निर्यात (एक्सपोर्ट) उसकी GDP का सिर्फ 21.8% है, जबकि वैश्विक औसत 29.3% है। अन्य देशों की तुलना करें तो वियतनाम में यह अनुपात 87.2%, जर्मनी में 43.4% और साउथ कोरिया में 44% है। ऐसे में भारत को अपने एक्सपोर्ट बेस को मजबूत करने के लिए नई अंतरराष्ट्रीय मार्केट्स तलाशनी होंगी। इसके साथ ही, भारत को फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स (FTA) यानी दूसरे देशों से आसान व्यापार समझौते तेजी से करने होंगे। साथ ही RoDTEP जैसी स्कीम्स को मजबूत बनाना होगा, जिससे एक्सपोर्ट करने वाली कंपनियों को टैक्स और ड्यूटी का पैसा वापस मिले। इससे भारत का सामान विदेशों में सस्ता और ज्यादा कॉम्पिटिटिव बन पाएगा।
PL कैपिटल के रिसर्च डायरेक्टर अमनीश अग्रवाल का मानना है कि भारत सरकार डेयरी, कृषि और रक्षा क्षेत्र के कुछ अमेरिकी उत्पादों पर जवाबी टैक्स लगाने पर विचार कर सकती है, लेकिन फिलहाल वह ट्रेड डील की संभावनाओं को खुला रखना चाहती है ताकि कूटनीतिक बातचीत के रास्ते बंद न हों।