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Work-life Balance: भारत में वर्क लाइफ बैलैंस महिलाओं की नौकरियों पर भारी, पुरुषों पर असर कम

Work-Life Balance: रिपोर्ट में पाया गया कि महिलाओं के नौकरी छोड़ने के तीन मुख्य कारण वेतन, करियर ऑपर्चुनिटी और वर्क-लाइफ बैलेंस है

Last Updated- February 22, 2024 | 6:16 PM IST
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एक हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में नौकरीपेशा महिलाएं पुरुषों की तुलना में वर्क-लाइफ बैलेंस को लेकर ज्यादा चिंतित हैं। “वीमेन इन इंडिया इंक HR मैनेजर्स सर्वे रिपोर्ट” से पता चलता है कि 34% महिलाएं वर्क-लाइफ बैलेंस के मुद्दों के कारण अपनी नौकरी छोड़ देती हैं, जबकि यह केवल 4% पुरुषों के लिए सच है।

द उदैती फाउंडेशन द्वारा गोदरेज DEi लैब्स, सेंटर फॉर इकोनॉमिक डेटा एंड एनालिसिस, अशोका यूनिवर्सिटी और दासरा के सहयोग से आयोजित रिपोर्ट में 200 सीनियर मानव संसाधन मैनेजरों (human resource managers) का सर्वे किया गया।

महिलाओं के नौकरी छोड़ने के तीन मुख्य कारण

रिपोर्ट में पाया गया कि महिलाओं के नौकरी छोड़ने के तीन मुख्य कारण वेतन, करियर ऑपर्चुनिटी और वर्क-लाइफ बैलेंस है, जबकि पुरुषों के लिए, यह मुख्य रूप से वेतन और करियर ऑपर्चुनिटी है। इसके चलते वर्कफोर्स में महिलाओं को बनाए रखने के लिए टार्गेटेड पॉलिसी बनाने की जरूरत को इंगित करता है।

इसके अतिरिक्त, रिपोर्ट से पता चला है कि हायरिंग मैनेजर अक्सर नौकरी पर रखने के दौरान उनकी उम्र और मैरेटियल स्टेटस को देखते हैं। पुरुषों में इन चीजों को कम देखा जाता है। जिससे अधिक महिलाओं की नियुक्ति में बाधा आ सकती है।

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हायरिंग के दौरान महिलाओं का वैवाहिक स्टेटस एक बड़ी वजह

रिपोर्ट में बताया गया है कि 38% मानव संसाधन मैनेजर (human resource managers) महिलाओं के वैवाहिक स्टेटस को ध्यान में रखते हैं, जबकि केवल 22% पुरुष उम्मीदवारों के लिए ऐसा करते हैं। इसी तरह, जब उम्र और लोकेशन की बात आती है, तो 43% और 26% मैनेजर्स महिलाओं के लिए इन फैक्टर्स पर विचार करते हैं, जबकि पुरुषों के लिए क्रमशः 39% और 21% ही इस बात पर विचार करते हैं।

दूसरी ओर, मानव संसाधन मैनेजर (human resource managers) महिलाओं (73% और 72%) की तुलना में पुरुषों की एजुकेशन बैकग्राउंड और वर्क एक्सपीरियंस (79% और 80%) पर ज्यादा विचार करते हैं।

यौन उत्पीड़न के मुद्दों को संबोधित करने पर कंपनियां बरत रहीं ढिलाई

सर्वे में भाग लेने वालों में से 59% ने कहा कि उनकी कंपनियों ने यौन उत्पीड़न के मुद्दों को संबोधित करने के लिए कानून के अनुसार आंतरिक शिकायत समितियों का गठन नहीं किया है। इसका मतलब है कि वर्कप्लेस पर महिलाओं के लिए ऐसी चिंताओं से निपटने के लिए बहुत कम व्यवस्था की गई है।

वकील श्रुति विद्यासागर ने बताया कि उचित प्रक्रियाओं के बिना, लोग समस्याओं की रिपोर्ट करने में संकोच कर सकते हैं, जो वर्कप्लेस सुरक्षा के प्रति चिंता की कमी को दर्शाता है।

इसके अतिरिक्त, रिपोर्ट में बताया गया है कि 36% कंपनियां मातृत्व अवकाश ( maternity leave) बेनिफिट ऑफर नहीं करती हैं, यह पुरुषों और महिलाओं के बीच असमानता को दर्शाता है।

अशोका विश्वविद्यालय की प्रोफेसर अश्विनी देशपांडे ने कहा कि महिलाओं को नौकरी ढूंढने और आगे बढ़ने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि नियोक्ताओं की महत्वपूर्ण भूमिका है कि वे महिलाओं को रोजगार, रिटेंशन और वर्कफोर्स में री-एंट्री का समर्थन करने के उपायों को लागू करें।

First Published - February 22, 2024 | 6:16 PM IST

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