भारत दो नए संयंत्रों की शुरुआत के मद्देनजर देसी उत्पादन को बढ़ावा देने और महत्वपूर्ण फार्मास्युटकल सामग्री के मामले में विशेष रूप से चीन से आयात पर अपनी निर्भरता को घटाकर आधा करने की कोशिश कर रहा है।
‘की स्टार्टिंग मटीरियल’ (केएसएम) और ‘एक्टिव फार्मास्युटिकल एंग्रेडिएंट’ (एपीआई) पर आयात निर्भरता कम करने के लिए बल्क ड्रग्स के वास्ते उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के तहत पिछले महीने दो संयंत्रों का उद्घाटन किया गया था।
इन संयंत्रों को पेनिसिलिन जी, 6-एपीए (6-एमिनोपेनिसिलनिक एसिड) और क्लैवुलैनिक एसिड के निर्माण के लिए निर्धारित किया गया है, जो कई सामान्य एंटीबायोटिक में इस्तेमाल किए जाने वाले महत्वपूर्ण अणु हैं। इनका उत्पादन देश में दो दशकों से भी ज्यादा वक्त से बंद पड़ा था।
ऑर्गनाइजेशन ऑफ फार्मास्युटिकल प्रोड्यूसर्स ऑफ इंडिया (ओपीपीआई) के महानिदेशक अनिल मताई ने कहा कि पेनिसिलिन जी और क्लैवुलैनिक एसिड ऐतिहासिक तौर पर मुख्य रूप से चीन से हासिल किए जाते रहे हैं, जिससे भारतीय दवा क्षेत्र बाहरी आपूर्ति की रुकावटों के प्रति संवेदनशील रहा है। इन संयंत्रों की शुरुआत से सरकार और उद्योग को उम्मीद है कि इन अणुओं के संबंध में आयात की निर्भरता लगभग 50 प्रतिशत कम हो जाएगी।
उम्मीद है कि अरविंदो फार्मा की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी की सहायक कंपनी लाइफियस फार्मा के स्वामित्व वाला पहला संयंत्र आंध्र प्रदेश के काकीनाडा में अपनी इकाई में 15,000 टन पेनिसिलिन जी का विनिर्माण करेगा। फार्मास्युटिकल्स विभाग द्वारा साझा किए गए आयात आंकड़ों के अनुसार भारत ने वित्त वर्ष 24 के दौरान पेनिसिलिन जी और 6-एपीए का क्रमशः 2,066 करोड़ रुपये और 3,490 करोड़ रुपये मूल्य का आयात किया। इसमें से चीनी आयात 77 प्रतिशत और 94.1 प्रतिशत रहा।
सरकार की एक सूचना में कहा गया है, ‘इस संयंत्र के चालू होने से पेनिसिलिन जी और 6-एपीए के मामले में भारत की आयात निर्भरता 50 प्रतिशत कम होने की उम्मीद है।’ कंपनी ने बयान में यह भी बताया कि लाइफियस द्वारा उत्पादित की जाने वाली 15,000 टन पेनिसिलिन जी में से 3,000 टन घरेलू बिक्री के लिए निर्धारित की गई है, जबकि अन्य 12,000 टन का इस्तेमाल 6,000 टन 6-एपीए बनाने के लिए किया जाएगा, जो एमोक्सिसिलिन, एम्पिसिलिन, पाइपेरासिलिन, सुलबैक्टम और टैजोबैक्टम जैसी आम एंटीबायोटिक की इंटरमीडिएट होती है।