सुप्रीम कोर्ट ने वोडाफोन आइडिया (Vi), भारती एयरटेल और टाटा टेलीसर्विसेज द्वारा दायर की गई उन याचिकाओं को खारिज कर दिया है, जिनमें समायोजित सकल राजस्व (AGR) बकाया में ब्याज, जुर्माना और जुर्माने पर ब्याज माफ करने की मांग की गई थी।
न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने इन याचिकाओं को “ग़लतफहमी पर आधारित” बताते हुए कहा कि यदि केंद्र सरकार इन कंपनियों को राहत देना चाहती है, तो अदालत इसमें कोई बाधा नहीं डालेगी। न्यायमूर्ति पारदीवाला ने स्पष्ट कहा, “अगर सरकार आपकी मदद करना चाहती है, तो हम इसमें बाधा नहीं बनेंगे।”
वोडाफोन आइडिया (Vi) के लिए हाल ही में आया अदालत का फैसला बड़ी मुश्किलें खड़ी कर सकता है। पहले से ही वित्तीय संकट से जूझ रही कंपनी ने हाल ही में कहा था कि अगर उसे सरकारी राहत नहीं मिली तो वह वित्त वर्ष 2025-26 के बाद तक टिक नहीं पाएगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला कंपनी को दिवालिया होने की कगार पर ला सकता है। इसके साथ ही, अदालत की उस टिप्पणी ने भी चिंता बढ़ा दी है जिसमें सरकार की ओर से मदद पर सवाल उठाया गया है।
दूरसंचार विभाग (DoT) के अधिकारियों का कहना है कि सरकार अब वोडाफोन आइडिया में और हिस्सेदारी लेने के पक्ष में नहीं है। इससे कंपनी को मिलने वाली संभावित मदद पर संशय गहराता जा रहा है।
कोर्ट ने Vi की याचिका पर नाराजगी जताते हुए कड़ी टिप्पणी की। बेंच ने कहा, “हम याचिका देखकर हैरान हैं। बहुत परेशान हैं। किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी से ऐसी उम्मीद नहीं थी। हम इसे खारिज करेंगे।”
वोडाफोन आइडिया (Vi) ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि केंद्र सरकार उनकी कंपनी को राहत नहीं दे सकती क्योंकि पहले के सुप्रीम कोर्ट के फैसले इस पर रोक लगाते हैं। कंपनी की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने अदालत को बताया कि सरकार कंपनी की 50 प्रतिशत हिस्सेदार है, फिर भी उन्होंने सहायता करने से मना कर दिया।
रोहतगी ने कहा, “सरकार ने यह नहीं कहा कि वे हमारे आवेदन पर विचार नहीं करेंगे, बल्कि उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले की वजह से मदद नहीं कर सकते।”
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में कहा, “हमने सिर्फ यह कहा है कि माननीय न्यायालय के पिछले फैसले के चलते हम इस मुद्दे की जांच नहीं कर सकते।”
इस बीच, दूरसंचार विभाग (DoT) के अधिकारियों ने भी संकेत दिया है कि सरकार अपनी हिस्सेदारी और नहीं बढ़ाना चाहती क्योंकि इससे वोडाफोन आइडिया एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी बन जाएगी।
Vi ने दूरसंचार विभाग (DoT) से AGR की गणना दोबारा करने और अन्य राहतों की मांग की थी, लेकिन विभाग ने इसे ठुकरा दिया है। एक अधिकारी ने बताया कि यह मामला पहले ही सुप्रीम कोर्ट के 2020 के फैसले में तय हो चुका है, इसलिए अब किसी तरह की रियायत संभव नहीं है।
हाल ही में वोडाफोन आइडिया ने अपने ₹36,950 करोड़ के स्पेक्ट्रम बकाया को शेयर में बदल दिया है। इसके बाद भारत सरकार की कंपनी में हिस्सेदारी बढ़कर 48.9% हो गई है, जो पहले 22.6% थी। हालांकि इससे कंपनी को थोड़ी राहत जरूर मिली, लेकिन AGR बकाया पर कोई छूट नहीं दी गई है।
मई की शुरुआत में वोडाफोन आइडिया ने अपने प्रमोटर ग्रुप — आदित्य बिड़ला समूह और ब्रिटेन की वोडाफोन ग्रुप — के लिए शेयरधारकों के समझौते में बदलाव किया है। अब कंपनी में उनके प्रबंधन और नियंत्रण अधिकार बने रहें, इसके लिए क्वालिफाइंग हिस्सेदारी की सीमा घटाई गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी में टेलिकॉम कंपनियों की पुनर्विचार याचिकाएं खारिज कर दी हैं। ये याचिकाएं 2021 के उस फैसले के खिलाफ थीं, जिसमें अदालत ने AGR (एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू) बकाया की दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा की गई गणना को सही माना था और किसी भी प्रकार की संशोधन की मांग को खारिज कर दिया था।
कानूनी रास्ते अब बंद हो जाने के बाद वोडाफोन आइडिया की स्थिति सबसे कठिन मानी जा रही है। दूसरी ओर, भारती एयरटेल की वित्तीय स्थिति अपेक्षाकृत मजबूत बताई जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि वोडाफोन आइडिया की जीवित रहने की संभावना अब कई कदमों पर निर्भर करेगी—जैसे कि टैरिफ में भारी बढ़ोतरी, सरकारी सहायता, नेटवर्क में निवेश का सफल क्रियान्वयन और नया इक्विटी निवेश।
कानून विशेषज्ञ पार्थ कॉन्ट्रैक्टर के अनुसार, “2019 से सुप्रीम कोर्ट लगातार यही कह रहा है कि टेलिकॉम कंपनियों को पूरा बकाया, जुर्माना और ब्याज समेत चुकाना होगा। अब जबकि सभी कानूनी रास्ते बंद हो चुके हैं, सरकार के सामने चुनौती है कि वह न्यायालय के फैसलों का सम्मान करते हुए टेलिकॉम क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बनाए रखे।” गौरतलब है कि सरकार वोडाफोन आइडिया में पहले से ही 49 फीसदी हिस्सेदारी रखती है।
वकील शिव सप्रा का कहना है कि कंपनियों के पास अब केवल अदालत के आदेश का पालन करने का ही विकल्प बचा है। मौजूदा वित्तीय हालत और शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव को देखते हुए, इसका असर अंततः उपभोक्ताओं पर पड़ सकता है। हालांकि, अगर सरकार टेलिकॉम कंपनियों के इक्विटी प्रस्तावों को मंजूरी देती है या कोई राहत पैकेज देती है, तो तस्वीर बदल सकती है।