भारत सरकार सैटेलाइट इंटरनेट कंपनियों से स्पेक्ट्रम इस्तेमाल के लिए ज्यादा फीस लेने का प्लान कर रही है। न्यूज वेबसाइट द इकोनॉमिक टाइम्स टेलीकॉम डिपार्टमेंट (DoT) ने सुझाव दिया है कि ये कंपनियां अपनी एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) का 5 फीसदी चुकाएं। पहले टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (Trai) ने 4 फीसदी का सुझाव दिया था। अगर कैबिनेट की मंजूरी मिल गई, तो एलन मस्क की स्टारलिंक और अमेजन कुइपर जैसी ग्लोबल कंपनियों से लेकर जियो सैटेलाइट जैसी देसी कंपनियों पर असर पड़ेगा।
अधिकारियों ने इकोनॉमिक टाइम्स को बताया कि DoT अपना रिवाइज्ड प्रपोजल Trai को भेजेगा, जो इसे रिव्यू करेगा। फिर फाइनल सिफारिशें कैबिनेट के पास जाएंगी। Trai ने 4 फीसदी AGR के साथ शहरों में हर ग्राहक से सालाना 500 रुपये एक्स्ट्रा चार्ज का आइडिया दिया था, ताकि सैटेलाइट कंपनियां गांवों में सर्विस बढ़ाएं। लेकिन DoT ने इसे ठुकरा दिया। वजह? शहर-गांव के आधार पर 500 रुपये का चार्ज लागू करना, चेक करना और ऑडिट करना बहुत मुश्किल होगा। एक अधिकारी ने कहा, “ऐसा सिस्टम बनाना प्रैक्टिकल नहीं। इसलिए AGR का फ्लैट 5 फीसदी चार्ज बेहतर रहेगा।”
DoT का मानना है कि सैटेलाइट इंटरनेट अब सिर्फ बिजनेस क्लाइंट्स तक सीमित नहीं रहेगा। स्टारलिंक, अमेजन कुइपर, eutelsat वनवेब और जियो सैटेलाइट जैसी नॉन-जीएसओ कंपनियां आम घरों तक ब्रॉडबैंड पहुंचाएंगी। इससे मार्केट और कमाई दोनों बढ़ेंगी, इसलिए ज्यादा फीस वसूलना सही है। अभी सिर्फ जीएसओ ऑपरेटर्स जैसे ह्यूजेस और नेल्को सर्विस दे रहे हैं, जो ज्यादातर बिजनेस को टारगेट करते हैं। इनकी फीस AGR का 3-4 फीसदी है।
भारत का स्पेस इकोनॉमी 2033 तक 44 अरब डॉलर का हो जाएगा, जो ग्लोबल मार्केट का 8 फीसदी होगा। IN-SPACe की रिपोर्ट के मुताबिक। अभी सैटकॉम का सालाना रेवेन्यू ऑपर्चुनिटी करीब 1 अरब डॉलर है।
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स्टारलिंक, वनवेब और जियो सैटेलाइट को सर्विस शुरू करने के परमिट मिल चुके हैं, लेकिन स्पेक्ट्रम तभी मिलेगा जब प्राइसिंग फाइनल हो। अमेजन कुइपर को अभी अप्रूवल का इंतजार है। टेलीकॉम एक्ट के तहत जीएसओ और नॉन-जीएसओ दोनों को एडमिनिस्ट्रेटिव तरीके से स्पेक्ट्रम अलॉट होगा।
Trai ने सुझाया था कि डिजिटल भारत निधि (DBN, पहले USO फंड) से 20,000-50,000 रुपये के सैटेलाइट टर्मिनल्स पर सब्सिडी दी जाए, ताकि गरीब इलाकों में इस्तेमाल बढ़े। DoT ने इसे रिजेक्ट कर दिया। कहा कि DBN में डायरेक्ट सब्सिडी बांटने का कोई सिस्टम ही नहीं है। बाकी Trai के ज्यादातर सुझावों से DoT सहमत है। सिर्फ स्पेक्ट्रम प्राइसिंग और DBN सब्सिडी पर दोबारा चर्चा होगी।
Trai के जवाब के बाद DoT प्राइसिंग और अलॉटमेंट रूल्स फाइनल करेगा। स्पेक्ट्रम देने के नियम जल्द बनने वाले हैं, जिससे देसी-विदेशी कंपनियों को क्लैरिटी मिलेगी। ये कदम भारत को सैटेलाइट इंटरनेट के मामले में आगे ले जाएंगे, खासकर गांवों तक कनेक्टिविटी पहुंचाने में।