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अमेरिका और सऊदी अरब की नजर भारत के कच्चे तेल आयात पर, दोनों बड़ी हिस्सेदारी हथियाने की जुगत में

वैश्विक आपूर्ति के बीच, अमेरिका भारत के लिए सस्ता तेल सप्लायर बनकर उभर रहा है, जो सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों को चुनौती दे रहा है, जबकि रूस का तेल अभी भी सबसे सस्ता है

Last Updated- October 18, 2025 | 2:57 PM IST
crude oil
प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

दुनिया में सबसे तेजी से तेल की खपत बढ़ाने वाले देश भारत के लिए अमेरिका और सऊदी अरब के नेतृत्व वाले खाड़ी देश क्रूड ऑयल के आयात में बड़ा हिस्सा हथियाने की रेस में हैं। इस बीच, वॉशिंगटन भारत पर अपने सबसे बड़े तेल सप्लायर रूस से खरीदारी रोकने का दबाव बढ़ा रहा है।

वैश्विक स्तर पर तेल की अधिक आपूर्ति की वजह से अमेरिकी क्रूड ऑयल की कीमतें अब मिडिल ईस्ट के तेल के करीब पहुंच रही हैं। सीनियर इंडस्ट्री सूत्रों, कीमतों के दस्तावेजों और शिपिंग डेटा के मुताबिक, इससे भारतीय रिफाइनरियों के लिए अमेरिकी तेल खरीदना आर्थिक रूप से फायदेमंद हो रहा है, न कि सिर्फ राजनीतिक दबाव की वजह से।

इसके जवाब में, भारत का तीसरा सबसे बड़ा तेल सप्लायर सऊदी अरब, जो मिडिल ईस्ट के अन्य तेल ग्रेड्स के लिए टोन सेट करता है, ने अपनी रणनीति बदली है। सऊदी अरब ने नवंबर के लिए एशिया में अपने “अरब मीडियम” और “अरब हेवी” क्रूड की आधिकारिक बिक्री कीमत (OSP) में 30 सेंट प्रति बैरल की कटौती की है, जबकि बाकी क्रूड ग्रेड्स की कीमतें अक्टूबर के मुकाबले स्थिर रखी हैं।

भारत की रिफाइनरियों का गणित और बाजार का खेल

भारतीय रिफाइनरियां ज्यादा मीडियम और सॉर (खट्टे) ग्रेड्स के तेल को प्रोसेस करने के लिए बनी हैं, जबकि लाइट और स्वीट (मीठे) तेल की प्रोसेसिंग कम होती है।

Kpler के विश्लेषक जोहान्स राउबाल ने कहा, “हाल की कीमतों में बदलाव से तेल की अधिक आपूर्ति की पुष्टि होती है। सऊदी अरामको के बाद, इराक और कुवैत ने भी सभी क्षेत्रों में अपनी OSPs कम की हैं, जो दिखाता है कि तेल की कोई कमी नहीं है।”

अमेरिका-चीन के बीच फिर से शुरू हुए व्यापारिक तनाव ने तेल की कीमतों में भारी गिरावट ला दी है। शुक्रवार को ब्रेंट और WTI (वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट) की कीमतें 60 डॉलर प्रति बैरल से नीचे चली गईं। इसके साथ ही, गाजा में सीजफायर की वजह से तेल पर जोखिम प्रीमियम भी खत्म हो गया है।

Also Read: अमेरिकी कच्चा तेल महंगा, भारत रिफाइनरियों को लग रहा अधिक माल ढुलाई खर्च और समय

अमेरिका बना भारत का चौथा सप्लायर

Kpler के डेटा के मुताबिक, अमेरिका से भारत को तेल की सप्लाई 6,10,000 बैरल प्रतिदिन (b/d) तक पहुंच गई है, जो भारत का चौथा सबसे बड़ा सप्लायर बन गया है। इसमें भारत के आयात में अमेरिका की हिस्सेदारी 12 फीसदी की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई।

ये बढ़ोतरी सितंबर के 2,07,000 b/d से हुई है और इसका कुछ असर संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के तेल पर पड़ा है, जो इस महीने 3,73,000 b/d रहा, जबकि सितंबर में ये 5,81,000 b/d था। फरवरी 2021 में अमेरिकी तेल की सप्लाई 5,92,000 b/d के रिकॉर्ड स्तर पर थी। रूस अभी भी 17 लाख b/d के साथ पहले नंबर पर है और उसकी बाजार हिस्सेदारी 34 फीसदी है।

सऊदी अरब 7,88,000 b/d के साथ 16 फीसदी हिस्सेदारी रखता है। महीने के अंत तक ये आंकड़े बदल सकते हैं।

भारत की रिफाइनिंग सेक्टर के दो अधिकारियों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि सस्ता अमेरिकी क्रूड ऑयल और प्रतिस्पर्धी शिपिंग रेट्स की वजह से हाल में ऑर्डर बढ़े हैं। एक सरकारी रिफाइनर के ट्रेडर ने कहा कि WTI, जो अमेरिका का बेंचमार्क है, मिडिल ईस्ट के करीब होने के बावजूद UAE के मुरबन जैसे हल्के तेल के मुकाबले सस्ता पड़ रहा है। एक अन्य अधिकारी ने कहा कि रियायती रूसी तेल को ठुकराना सरकारी रिफाइनरियों के लिए मुश्किल है, क्योंकि इससे जांच का डर रहता है।

ट्रेडर का मानना है कि अगले कुछ महीनों में WTI की औसत कीमत 60 डॉलर प्रति बैरल रहेगी, क्योंकि आपूर्ति पर्याप्त है। इसलिए अमेरिकी तेल की खरीदारी मजबूत रहेगी।

उन्होंने कहा कि अमेरिकी तेल की सस्ती कीमतें सरकारी रिफाइनरियों को ज्यादा खरीदारी के लिए प्रोत्साहित करती हैं, क्योंकि निजी रिफाइनरियों के उलट, उन्हें सबसे सस्ता तेल खरीदने की बाध्यता होती है। पिछले हफ्ते WTI की कीमत 58 डॉलर प्रति बैरल तक गिर गई।

अमेरिकी तेल हुआ था सस्ता!

भारतीय कस्टम्स डेटा के मुताबिक, अगस्त में भारत को भेजे गए अमेरिकी तेल की डिलीवर बेसिस कीमत जुलाई के 70 डॉलर से 4 डॉलर प्रति बैरल कम हो गई। जनवरी-अगस्त के औसत से ये 9 डॉलर प्रति बैरल सस्ता था। खास बात ये है कि अगस्त में अमेरिका ने भारत के प्रमुख सप्लायर्स में सबसे सस्ता तेल दिया, जो पिछले कुछ सालों में नहीं देखा गया।

अगस्त में अमेरिकी तेल इराक के तेल के बराबर सस्ता था। ये सऊदी अरब और UAE के तेल से 6 डॉलर और रियायती रूसी तेल से 1 डॉलर सस्ता था।

जनवरी-अगस्त में अमेरिकी तेल सबसे महंगा था, जिसका औसत 79 डॉलर रहा। इस दौरान इराक और रूस का तेल सबसे सस्ता था, और सऊदी अरब का तेल औसतन 76 डॉलर प्रति बैरल रहा।

अमेरिकी तेल में आमतौर पर प्रीमियम कीमत वाले हल्के, मीठे और उच्च गुणवत्ता वाले तेल के साथ-साथ सस्ते, गंदे और अम्लीय कनाडाई तेल शामिल होते हैं, जो अमेरिकी बंदरगाहों से स्पॉट टर्म्स पर भेजे जाते हैं। ऑर्डर दो महीने पहले दिए जाते हैं और यात्रा में 45 दिन लगते हैं, क्योंकि जहाजों को अफ्रीका के रास्ते जाना पड़ता है, क्योंकि छोटा लेकिन संघर्षग्रस्त स्वेज नहर रास्ता टाला जाता है।

First Published - October 18, 2025 | 2:57 PM IST

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