केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने केंद्र और राज्य की सरकारी बिजली उत्पादक कंपनियों तथा राज्य के बिजली/ऊर्जा विभागों से उन परियोजनाओं को चुनने का आग्रह किया है जो दिवाला प्रक्रिया से गुजर रही हैं।
बिजली की बढ़ती मांग को ध्यान में रखते कई राज्य अधिक बिजली स्रोतों की तलाश में हैं ऐसे में ऊर्जा मंत्रालय ने इन संकटग्रस्त बिजली संयंत्रों के तेजी से कायाकल्प करने और बिजली की आपूर्ति बढ़ाने के विचार के साथ ऐसी पेशकश की है।
केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा 1 नवंबर को दिए गए सुझाव में कहा गया, ‘यह अनुरोध किया जाता है कि सरकारी बिजली उत्पादक कंपनियां, उन संकटग्रस्त बिजली संयंत्रों की कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) में हिस्सा लें जो संबंधित राज्यों की क्षमता बढ़ाने वाली योजनाओं के लिहाज से रणनीतिक और वाणिज्यिक रूप से महत्वपूर्ण हैं।’
राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) का फायदा यह है कि दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी), 2016 में किसी इकाई के दर्जे में सुधार का ठप्पा लग जाता है।
वित्त मंत्रालय की 2018 की संकटग्रस्त परिसंपत्तियों की मूल सूची में 2 लाख करोड़ रुपये मूल्य वाली 34 बिजली उत्पादन परियोजनाएं थीं। इनमें से 11 का समाधान कर्जदाताओं की कर्ज पुनर्गठन योजनाओं के जरिये किया गया है।
इन परियोजनाओं में जेपी का प्रयागराज भी शामिल है, जिसे टाटा पावर और आईसीआईसीआई बैंक ने संयुक्त उद्यम के तौर पर खरीदा था। वहीं लैंको तीस्ता जलविद्युत परियोजना का अधिग्रहण सरकारी कंपनी एनएचपीसी ने किया था और रतन इंडिया पावर की अमरावती बिजली परियोजना गोल्डमैन सैक्स के नेतृत्व वाले कंसोर्टियम को बेच दिया गया था।
अदाणी पावर ने जीएमआर की छत्तीसगढ़ बिजली परियोजना और अवंता समूह की कोरबा वेस्ट बिजली परियोजना खरीदी है। इसी पहल के तहत ही ऊर्जा और कोयला मंत्रालय ने कोयले की कमी या बिजली खरीद समझौतों की कमी जैसी चुनौतियां झेल रहे संयंत्रों में सुधार करने के लिए दो योजनाएं, कोयला आपूर्ति के लिए ‘शक्ति’ और मध्यम अवधि की बिजली खरीद समझौतों के लिए ‘दीप’ योजना की शुरुआत की है।
इसके बावजूद अब भी एक दर्जन से अधिक परियोजनाएं एनसीएलटी में हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एनटीपीसी ने एनसीएलटी के माध्यम से ही झाबुआ पावर का अधिग्रहण किया है। कंपनी ने बार-बार कहा है कि वह केवल उन्हीं परिसंपत्तियों को खरीदेगी जो एनसीएलटी में हैं।
बिजली क्षेत्र से जुड़ी इन ज्यादातर परियोजनाओं के लिए कर्ज, सार्वजनिक क्षेत्र की गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी), पीएफसी और आरईसी ने दिया था। आरईसी की 13,000 करोड़ रुपये की 14 परिसंपत्तियां एनसीएलटी में हैं। वहीं एनसीएलटी में पीएफसी की 14,000 करोड़ रुपये की 13 परिसंपत्तियां हैं। (आरईसी और पीएफसी के बीच कुछ सामान्य परिसंपत्तियां भीं हैं)।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि बिजली क्षेत्र की करीब 24 परिसंपत्तियां अब भी संकट में हैं और एनसीएलटी के भीतर या बाहर कोई समाधान निकालने में असफल रही हैं। अधिकारियों ने कहा कि जिन संकटग्रस्त संयंत्रों या परियोजनाओं का समाधान नहीं निकला है उनमें से 11 गीगावॉट क्षमता की करीब 10 संपत्तियां हैं और इन्हें कोई खरीदार मिलने की संभावना नहीं है।
एक एनबीएफसी के अधिकारी ने बताया कि सरकारी बिजली उत्पादन कंपनियों के लिए यह प्रस्ताव काफी आकर्षक है क्योंकि ये परिसंपत्तियां नए बिजली प्लांट बनाए जाने के मुकाबले काफी सस्ते होंगे।
बिजली मंत्रालय ने कहा कि संकटग्रस्त प्लांट को मुख्य रूप से अपर्याप्त पूंजी निवेश, कोयले की आपूर्ति में कमी या बाधा, बिजली खरीद समझौतों में लंबा समय लगने जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।