पिछली तिमाही में कंपनियों ने ग्राहकों को लुभाने के लिए इतना खर्च किया, जितना 2021 से किसी भी तिमाही में नहीं किया था। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के आंकड़े बताते हैं कि सितंबर 2024 में शुद्ध बिक्री के 0.39 फीसदी के बराबर रकम प्रचार और मार्केटिंग पर खर्च की गई। सितंबर 2023 में यह आंकड़ा 0.36 फीसदी और सितंबर 2022 में 0.3 फीसदी रहा था।
सब कंपनियां ऐसे खर्च के तिमाही आंकड़े नहीं बतातीं मगर जिन 3,000 से अधिक कंपनियों ने यह खर्च बताया है, उन्होंने सितंबर 2024 तिमाही में विज्ञापन और मार्केटिंग पर कुल 9,286.6 करोड़ रुपये खर्च किए। साल भर पहले यह आंकड़ा 8,479.3 करोड़ रुपये था और सितंबर 2022 में 7,242 करोड़ रुपये रहा था। नमूने में शामिल कंपनियों की संख्या कुछ कम-ज्यादा हो सकती है मगर यह उद्योग का मोटा रुझान बताता है।
खर्च में यह इजाफा तब हुआ है, जब खपत में कमी के कारण जुलाई-सितंबर तिमाही में आर्थिक वृद्धि कम होकर 5.4 फीसदी रह गई। पिछले दो साल में यह सबसे कम जीडीपी वृद्धि दर है। हिंदुस्तान यूनिलीवर (एचयूएल) और नेस्ले इंडिया सहित तमाम कंपनियों की बिक्री सुस्त पड़ी है क्योंकि 5 फीसदी से ऊपर महंगाई उपभोक्ताओं के लिए बोझ बन रही है।
सलाहकार फर्म निहिलेंट के ग्लोबल चीफ क्रिएटिव ऑफिसर और विज्ञापन जगत के पुराने माहिर केवी श्रीधर ने कहा, ‘हर कोई किसी भी तरह पैसा कमाने की जुगत में भिड़ा है।’ नरमी आती तो औसत उपभोक्ता आम तौर पर खर्च करने की अपनी क्षमता पर संदेह करने लगता है। हौसले में ऐसी कोई भी गिरावट थामने के लिए ऐसे वक्त में विज्ञापन तथा मार्केटिंग विभाग अपनी कोशिशें दोहरी कर देते हैं। श्रीधर को लगता है कि इन कोशिशों के कारण ही खर्च बढ़ा है।
कंज्यूमर एवं रिटेल सलाहकार फर्म थर्ड आईसाइट के संस्थापक देवांशु दत्ता ने कहा, ‘देहात से अच्छी मांग दिख रही है मगर मध्य वर्ग तंगी में है।’ उन्होंने कहा कि भारतीय उपभोक्ताओं के सबसे ऊपरी तबके पर मंदी का कोई असर नहीं होता और सबसे निचले तबके को सरकारी मदद मिल रही है। मगर भारतीय उपभोक्ताओं में एक बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले मध्यवर्ग की खरीदने की क्षमता काफी कम होती है। ऐसे में मध्य वर्ग की आय बढ़े तो वह खपत का बड़ा स्रोत बन जाता है। लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं दिख रहा।
दत्ता ने कहा, ‘इस समय शहरी मध्यवर्ग दबाव में है और अगली 2-3 तिमाहियों में मुझे स्थिति बदलती भी नहीं दिखती। जिन कंपनियों की बैलेंस शीट मजबूत है और जो मांग तैयार कर सकती हैं, वे ज्यादा खर्च करेंगी।’ आंकड़े दिखा रहे हैं कि छह प्रमुख कंज्यूमर कंपनियों में से चार की परिचालन आय का जितना प्रतिशत विज्ञापन पर खर्च हुआ है उतना साल भर पहले की तिमाही में नहीं हुआ था।
इनमें कोलगेट पामोलिव (इंडिया), डाबर इंडिया, पीऐंडजी हाइजीन ऐंड हेल्थ केयर और हैवेल्स इंडिया शामिल हैं। गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स और हिंदुस्तान यूनिलीवर का विज्ञापन-मार्केटिंग खर्च पिछले साल के मुकाबले परिचालन राजस्व का कम हिस्सा है। नमूने में शामिल कंपनियों के बीच पीऐंडजी के विज्ञापन एवं मार्केटिंग खर्च में सबसे अधिक वृद्धि दिखी।
पीऐंडजी के प्रवक्ता ने सितंबर में विश्लेषकों से बातचीत के दौरान कहा कि उपभोक्ताओं को उत्पादों में आ रहे नएपन के बारे में बताने के लिए पिछले कुछ समय में विज्ञापन पर अधिक खर्च किया जा रहा है। विश्लेषण में शामिल अन्य कंपनियों ने पूछे जाने पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं की।