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ब्रांडेड ठाठ-बाट और नए जमाने के धोबीघाट

महानगरों के साथ मझोले और छोटे शहरों में भी बढ़ रहा है संगठित लॉन्ड्री का बाजार, पारंपरिक धोबियों के बजाय माइक्रोलॉन्ड्री का जोर पकड़ रहा चलन

Last Updated- December 25, 2023 | 10:22 PM IST
Branded luxury and new age laundry

बेंगलूरु में एक नामी सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाले 30 साल के विराग (नाम बदला हुआ) को इस साल नोएडा आना पड़ा। यहां उन्हें सबसे पहली दिक्कत कपड़ों की धुलाई की हुई क्योंकि दफ्तर काफी दूर होने की वजह से उन्हें इसके लिए वक्त नहीं मिलता था और धोबी के हाथ से धुले कपड़ों की सफाई उन्हें कभी पसंद नहीं आई। मगर लॉन्ड्री स्टार्टअप कंपनियों के आसपास खुले स्टोर उनके लिए वरदान बनकर आए। विराग कहते हैं कि ये स्टार्टअप धोबियों के मुकाबले कुछ ज्यादा रकम लेते हैं मगर बहुत पेशेवर तरीके से कपड़े साफ करते हैं।

महानगरों और बड़े शहरों में अकेले रहने वाले युवाओं, नौकरीपेशा दंपती और बुजुर्गों के लिए कपड़े धोना और इस्तरी करना दिक्कत भरा हो सकता है। मगर अब राशन और सब्जी खरीदारी की तरह कपड़ों की धुलाई और ड्राईक्लीनिंग भी फोन पर ऐप्लिकेशन के जरिये कराई जा सकती है। टंबलड्राई, यूक्लीन, धोबीलाइट जैसे स्टार्टअप के गली-मुहल्ले खुलते स्टोर इसीलिए बढ़ रहे हैं। रेडसियर की 2021 में आई रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लॉन्ड्री का बाजार 2025 तक 15 अरब डॉलर का हो जाएगा। मगर इस उद्योग की कंपनियां बाजार का आकार कई गुना होती देख रही हैं।

तेज रफ्तार से विस्तार

दिल्ली की लॉन्ड्री कंपनी यूक्लीन ने 2017 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में महज दो स्टोर के साथ शुरुआत की थी मगर आज 133 शहरों में इसके 430 आउटलेट हैं। यूक्लीन के संस्थापक अरुणाभ सिन्हा का इस वित्त वर्ष के अंत तक स्टोरों की संख्या 650 कर लेने का लक्ष्य है। यूक्लीन के स्टोर नेपाल और बांग्लादेश में भी हैं और खाड़ी देशों में जाने की कोशिश हो रही है।

देश में इस उद्योग की सबसे बड़ी कंपनी टंबलड्राई है, जिसकी शुरुआत अप्रैल 2019 में नोएडा से हुई थी। कंपनी के सह-संस्थापक गौरव निगम बताते हैं कि इस समय करीब 260 शहरों में टंबलड्राई के 800 से ज्यादा स्टोर हैं और हर महीने 40 नए स्टोर जुड़ रहे हैं। टंबलड्राई का तुरंत विदेश जाने का इरादा नहीं है। निगम के मुताबिक वहां का बाजार समझने के बाद अगले साल अप्रैल-मई में स्टोर खोला जा सकता है। फिलहाल 2025 तक स्टोरों की संख्या 2,000 करने का उनका लक्ष्य है।

मगर धोबियों और ड्राईक्लीनरों से भरे भारतीय बाजार में माइक्रोलॉन्ड्री का विचार कैसे आया? सिंबायोसिस से एमबीए करने के बाद 2002 से एयरटेल और लावा जैसी कई कंपनियों में ऊंचे पदों पर काम कर चुके निगम बताते हैं कि काम के सिलसिले में उन्हें हर महीने 12-15 दिन चीन में गुजारने पड़ते थे। वहां उन्होंने सेल्फ सर्विस लॉन्ड्रोमेट देखे, जिनमें खुद कपड़े धोए जा सकते थे। वहीं से उन्हें माइक्रोलॉन्ड्री का विचार आया, जो नौकरीपेशा और व्यस्त लोगों के लिए कारगर हो सकता था।

आईआईटी बंबई से पढ़े अरुणाभ ने भी काम के सिलसिले में मलेशिया, इंडोनेशिया और फिलिपींस जैसे देशों में रहते हुए थोड़े-थोड़े फासले पर खुली माइक्रोलॉन्ड्री देखीं। भारत में धोबियों की धुलाई से अक्सर असंतुष्ट रहने वाले लोगों में उन्हें इसके ग्राहक दिखे और उन्होंने देश लौटकर महज 25 लाख रुपये में यूक्लीन शुरू कर दी। अरुणाभ का कहना है कि धोबियों से कपड़े धुलवाने वालों की आम शिकायत यही रहती है कि न तो पानी का पता रहता है और न ही डिटरजेंट की गुणवत्ता का। उसके अलावा कपड़े खराब होने या खोने का डर अलग रहता है। इसीलिए विकल्प के रूप में उभरे उनके जैसे स्टार्टअप तेजी से बढ़ रहे हैं।

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फ्रैंचाइज पर दारोमदार

ये कंपनियां पूरी तरह फ्रैंचाइज पर चलती हैं और फ्रैंचाइजी स्टोर के भीतर ही धुलाई, और इस्तरी आदि होती है। इसके लिए खास मशीनें होती हैं, जिनके निचले हिस्से में कपड़े धुलते हैं और ऊपरी हिस्से में सुखाए जाते हैं। जाहिर है कि इसके लिए बहुत जगह की जरूरत नहीं होती।

निगम बताते हैं कि टंबलड्राई के आम स्टोर के लिए 300 वर्गफुट की जरूरत होती है। लेकिन पहाड़ी इलाकों में जगह की किल्लत देखते हुए इससे कम स्थान में भी काम चला लिया जाता है। उनका काम पूरी तरह फ्रैंचाइज पर चलता है, जिसके लिए निवेशक को 25 लाख रुपये का एकबारगी खर्च करना पड़ता है। इस पर जीएसटी अलग से लगता है। इस रकम में दुकान जमाने, मशीन लगाने और ब्रांडिंग का काम टंबलड्राई खुद करती है और 6 लाख रुपये फ्रैंचाइज शुल्क भी शामिल होता है। उसके बाद हर महीने स्टोर से 7.5 फीसदी रॉयल्टी ली जाती है।

यूक्लीन 200 से 250 वर्गफुट के स्टोर के लिए 20 लाख रुपये में फ्रैंचाइज देती है, जिसमें 5 लाख रुपये फ्रैंचाइज शुल्क होता है।

अरुणाभ कहते हैं कि स्टोर खुलने के बाद तीन महीने तक कुछ नहीं लिया जाता और उसके बाद हर महीने 7 फीसदी रॉयल्टी ली जाती है। निगम की दलील है कि स्टोर खोलकर छोड़ने के बजाय उसे जमाने के लिए टंबलड्राई पूरा सहारा देती है, इसीलिए पहले महीने से ही वह रॉयल्टी लेते हैं। उनका कहना है कि जितनी रॉयल्टी ली जाती है, उसका 10 गुना खर्च भी किया जाता है। निगम का दावा है कि मुनाफा देखकर उनके 12 फीसदी से अधिक पार्टनर दूसरे इलाके की फ्रैंचाइज भी लेते हैं।

दोनों कंपनियां फ्रैंचाइजी के पास अपने प्रशिक्षित कर्मचारी भेजती हैं, जो स्टोर का पूरा काम संभालते हैं। उनका वेतन फ्रैंचाइजी ही देते हैं। कंपनियां मशीन भी खुद ही लगवाती हैं। टंबलड्राई कपड़ों की धुलाई के लिए कोरियाई कंपनी एलजी की आयातित मशीन लगाती है और नाजुक कपड़ों के लिए स्वीडन की कंपनी इलेक्ट्रोलक्स या फ्रांस की कंपनी डोमस की मशीन इस्तेमाल की जाती है।

यूक्लीन एलजी के अलावा अमेरिका की स्पीडक्वीन और चीन की ओएसिस से मशीन लेती हैं। ये सभी मशीनें पानी के मामले में काफी किफायती होती हैं। कंपनियों का दावा है कि घरेलू वॉशिंग मशीन अगर 6 किलो कपड़े धोने में 90 लीटर पानी लगाती है तो ये मशीनें 50 लीटर पानी में ही 10 किलो कपड़े धो डालती हैं।

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वोकल फॉर लोकल

मगर दोनों कंपनियां किसी बाहरी निवेशक के बजाय स्थानीय लोगों को ही फ्रैंचाइज देती हैं। निगम कहते हैं, ‘कपड़े धुलवाने के लिए कोई आलीशान मॉल में नहीं जाता। हमारे स्टोर गली-मुहल्लों या ऐसे शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में खुलते हैं, जहां लोग रोजमर्रा का सामान लेने आते रहते हैं। इसलिए स्थानीय लोगों को ही तरजीह दी जाती है।’

अरुणाभ का कहना है कि कपड़े धुलवाने कोई 10 किलोमीटर दूर नहीं जाता बल्कि दो-तीन किलोमीटर के दायरे में ही पहुंचता है। किसी भी व्यक्ति को उसके घर के दो-तीन किलोमीटर आसपास के लोग जानते ही हैं। इसीलिए वह समय देकर बढ़िया कारोबार चला सकता है।

शायद यही वजह है कि इन कंपनियों का कारोबार छोटे शहरों में भी फैल रहा है। टंबलड्राई के स्टोर बहराइच, गोंडा, बस्ती, मिर्जापुर जैसे छोटे शहरों में भी है। यूक्लीन भी मझोले और छोटे शहरों में पांव पसार रही है। धोबीलाइट दिल्ली-एनसीआर के अलावा हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा आदि में काम कर रही है। मिस्टर ब्लू के लॉन्ड्रोमेट पूर्वोत्तर भारत के अपेक्षाकृत छोटे शहरों में भी हैं। इसी तरह पिक माई लॉन्ड्री के आउटलेट दिल्ली, गुड़गांव, नोएडा, जयपुर, लखनऊ, राजकोट, हैदराबाद, इंदौर, सिलिगुड़ी आदि में चल रहे हैं।

निगम का कहना है कि छोटे शहरों में किराये और वेतन पर कम खर्च होता है, इसलिए वहां धुलाई और ड्राईक्लीनिंग दिल्ली-एनसीआर के मुकाबले सस्ती रखी जाती है। इसलिए ग्राहकों की कमी नहीं होती। यूक्लीन भी इन शहरों में सस्ती सेवा देती है।

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किफायती मगर बढ़िया

भारत में माइक्रोलॉन्ड्री कंपनियों की सबसे लोकप्रिय सेवा वॉश ऐंड फोल्ड है, जो 59 रुपये से 79 रुपये प्रति किलो तक होती है। अरुणाभ कहते हैं, ‘हमारी ‘लॉन्ड्री बाई द किलो’ सेवा में कर्मचारी घर जाकर तराजू पर कपड़े तोलता है और वजन की पर्ची दे आता है। इसमें वॉश ऐंड आयरन तथा वॉश ऐंड फोल्ड श्रेणियां होती हैं। हॉस्टल में रहने वाले छात्रों और टी-शर्ट, जींस पहनने वाले युवाओं में किफायती वॉश ऐंड फोल्ड लोकप्रिय है, जिसमें कपड़े धोने के बाद इस्तरी करने के बजाय मोड़कर दे दिए जाते हैं।’

निगम बताते हैं कि वजन के हिसाब से धुलाई, वॉश ऐंड फोल्ड और ड्राईक्लीनिंग के अलावा सॉफ्ट टॉय और जूतों की धुलाई टंबलड्राई की सबसे ज्यादा चलने वाली सेवा है। वह कहते हैं, ‘हमारे 800 स्टोरों में हर महीने कम से कम 10-12 हजार जूते साफ किए जाते हैं।’

तकरीबन सभी संगठित लॉन्ड्री कंपनियां कपड़ों की धुलाई 24 घंटे और ड्राईक्लीनिंग 72 घंटे में कर देती हैं। कुछ कंपनियां मासिक, तिमाही और छमाही पैकेज भी देती हैं, जिनमें कुछ और भी छूट मिल जाती है। ग्राहकों को कपड़े जल्द चाहिए तो अधिक पैसे लेकर उसका भी इंतजाम कर दिया जाता है। मसलन यूक्लीन की एक्सप्रेस सर्विस में 4 घंटे में ही कपड़े मिल जाते हैं मगर शुल्क दोगुना लिया जाता है।

संगठित लॉन्ड्री का कारोबार भी लगातार बढ़ रहा है। यूक्लीन का पिछले वित्त वर्ष में कारोबार 104 करोड़ रुपये था और चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही का प्रदर्शन देखकर अरुणाभ को कारोबार में 50 फीसदी इजाफे की उम्मीद है। टंबलड्राई का पिछले वित्त वर्ष का कारोबार 110-115 करोड़ रुपये था। निगम का कहना है कि इस बार यह 200 करोड़ रुपये के पार चला जाएगा।

First Published - December 25, 2023 | 9:34 PM IST

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