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कैंसर के लिए हो कम से कम 20 लाख रुपये का बीमा

साथ में होने वाले दूसरे खर्चों के लिए बीमा संग कोई फिक्स्ड बेनिफिट प्लान रहेगा कारगर

Last Updated- December 25, 2023 | 9:10 PM IST
Cancer

कैंसर ऐसा घातक रोग है, जो मरीज को शारीरिक कष्ट तो देता ही है, उसकी जमा-पूंजी में सेंध लगा देता है। 2020 में लगभग 27 लाख लोगों को कैंसर था। आंकड़े बताते हैं कि हर साल इसके करीब 13.9 लाख नए मरीजों का पता लगता है और 8.5 लाख इसकी वजह से दम तोड़ देते हैं। इसलिए हर किसी के पास इस बीमारी से भरपूर सुरक्षा के साधन होने ही चाहिए।

विभिन्न प्रकार के बीमा

कैंसर से सुरक्षा के लिए कई तरह की बीमा पॉलिसी मौजूद हैं। सबसे पहले फिक्स्ड बेनिफिट कैंसर पॉलिसी हैं। फ्यूचर जेनराली इंडिया लाइफ इंश्योरेंस कंपनी में मुख्य बीमा अधिकारी पेउली दास बताती हैं, ‘इस पॉलिसी में कैंसर का पता चलता है तो बीमा कराने वाले को बीमारी की गंभीरता या स्टेज के हिसाब से एकमुश्त रकम दे दी जाती है।’ मिलने वाली रकम इस बात पर निर्भर करती है कि बीमारी का पता किस स्टेज में चला।

दूसरी कैंसर पॉलिसी उन लोगों के हिसाब से बनाई जाती हैं, जिनके पास कोई इनडेम्निटी कवर नहीं होता और जिन्हें पहले से ही कैंसर होता है। पॉलिसीबाजार के बिजनेस हेड (स्वास्थ्य बीमा) सिद्धार्थ सिंघल कहते हैं, ‘उन्हें सामान्य स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी मिलनी मुश्किल होती है और वे बीमा कवर देने के लिए तैयार इन खास पॉलिसियों का सहारा ले सकते हैं।’

तीसरा विकल्प क्रिटिकल इलनेस कवर यानी गंभीर बीमारी के लिए बीमा होता है। ये फिक्स्ड बेनिफिट पॉलिसी होती हैं, जिनके दायरे में आने वाली कैंसर समेत किसी भी गंभीर बीमारी का पता चलने पर एकमुश्त रकम दे दी जाती है।

चौथी पॉलिसी सामान्य स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी होती हैं, जिनमें कैंसर को भी कवर किया जाता है। सिंघल बताते हैं, ‘यदि कोई व्यक्ति स्वास्थ्य बीमा लेते समय स्वस्थ होता है मगर बाद में उसे कैंसर का पता चलता है तो अस्पताल में होने वाला उसका खर्च इस पॉलिसी के तहत मिल जाएगा।’

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किफायती पॉलिसी

फिक्स्ड बेनिफिट कैंसर बीमा पॉलिसी काफी किफायती होती हैं। दास बताते हैं, ‘इनमें प्रीमियम सामान्य स्वास्थ्य बीमा के मुकाबले काफी कम होते हैं और 5 या 10 साल की गारंटी भी मिलती है।’

कभी-कभी इनमें आय का लाभ भी मिलता है। दास समझाते हैं, ‘बीमा कंपनी आगे की स्टेज के कैंसर का पता चलने पर कुल एश्योर्ड राशि के 2 फीसदी के बराबर रकम हर महीने देती है और यह भुगतान 60 महीने तक किया जाता है।’ इस तरह ये पॉलिसी एक तरह से आय का साधन भी बन जाती हैं।

सना इंश्योरेंस ब्रोकर्स के सह संस्थापक और सेल्स तथा सर्विस प्रमुख नयन आनंद गोस्वामी कहते हैं, ‘अटेंडेंट के खर्च जैसे कई खर्च निकल आते हैं, जो इनडेम्निटी बीमा पॉलिसी में कवर नहीं होते। फिक्स्ड बेनिफिट प्लान में ये खर्च भी शामिल होते हैं।’ वह कहते हैं कि पॉलिसी से मिलने वाली मासिक राशि का इस्तेमाल वैकल्पिक चिकित्सा में किया जा सकता है, जो अस्पताल में भर्ती होने पर मिलने वाले बीमा कवर में नहीं आती या बहुत कम आती है।

कैंसर के लिए खास इनडेम्निटी कवर लेने पर पॉलिसीधारक को इस बीमारी की सूरत में संपूर्ण बीमा मिल जाएगा। पॉलिसीबॉस के कार्यकारी निदेशक अपार कासलीवाल कहते हैं, ‘सामान्य स्वास्थ्य बीमा कवर में किसी खास इलाज या ऑपरेशन आदि के लिए तय सीमा तक ही खर्च का दावा किया जा सकता है। कैंसर केयर प्लान में सभी संभव उपचार और सभी स्टेज का खर्च दिया जाता है।’

इन बीमा पॉलिसियों पर आयकर अधिनियम की धारा 80डी के तहत कर छूट का दावा भी किया जा सकता है।

सीमित विकल्प

कोई व्यक्ति यदि कैंसर हो जाने के बाद इनडेम्निटी बीमा कवर चाहता है तो उसके पास कैंसर के लिए खास इनडेम्निटी वाली कुछेक बीमा पॉलिसी ही होंगी। सिंघल बताते हैं, ‘इन पॉलिसियों में दूसरी सीमाएं भी हो सकती हैं। हो सकता है कि 10-15 लाख रुपये से अधिक का बीमा ही नहीं किया जाए। हो सकता है कि इसमें असीमित ‘रीस्टोर’ का फायदा नहीं मिले, जिसमें एक ही साल में कई बार अस्पताल में भर्ती होने पर बीमा का लाभ लिया जा सकता है।’

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पहले लें इनडेम्निटी कवर

सबसे पहले आपको इनडेम्निटी बीमा कवर खरीद लेना चाहिए ताकि अस्पताल में भर्ती होने का खर्च आपको बीमा कंपनी से मिल जाए। इसके बाद फिक्स्ड बेनिफिट प्लान लीजिए ताकि आपको साथ में जुड़े दूसरे खर्चों की चिंता से मुक्ति मिल जाए। अगर आप कैंसर कवर ले रहे हैं तो आपको अधिक बीमा राशि वाली पॉलिसी मिल सकती है। क्रिटिकल इलनेस बीमा लेते हैं तो उसी प्रीमियम में आपको कम राशि का बीमा मिलेगा, लेकिन उसमें कैंसर के अलावा दूसरी गंभीर बीमारियों का बीमा भी होगा।

याद रहे कि फिक्स्ड बेनिफिट प्लान कभी इनडेम्निटी प्लान की जगह नहीं ले सकता। गोस्वामी समझाते हैं, ‘यह उस समय आपका सहारा बनेगा, जब कोई बड़ी बीमारी हो जाएगी और खर्च बहुत बढ़ जाएगा।’

कैंसर का बीमा ले रहे हैं तो बीमा राशि किसी भी सूरत में कम मत रखिए क्योंकि इसके इलाज में आम तौर पर बहुत पैसा खर्च होता है। फिक्स्ड बेनिफिट प्लान लेते समय जितनी संभव हो उतनी लंबी अवधि चुनें। दास आगाह करते हुए समझाते हैं कि बीमा लेते समय पहले से मौजूद किसी भी बीमारी के बारे में बताने से चूकें नहीं।

First Published - December 25, 2023 | 9:10 PM IST

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