वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) अधिकारियों ने करीब एक हजार बहुराष्ट्रीय फर्मों की भारतीय इकाइयों को कर नोटिस भेजा है। जीएसटी विभाग ने इन कंपनियों को अपने विदेशी प्रवर्तक द्वारा ‘विदेशी अधिकारियों’ को किए गए वेतन भत्तों के भुगतान पर 18 फीसदी की दर से कर चुकाने के लिए कहा है।
जीएसटी विभाग की ओर से हाल के हफ्तों में वित्त वर्ष 2018 से वित्त वर्ष 2022 के बीच की अवधि के लिए हरेक बहुराष्ट्रीय कंपनी को 1 करोड़ से लेकर 150 करोड़ रुपये तक का कर नोटिस भेजा गया है।
मामले की जानकारी रखने वाले एक अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों की भारतीय इकाइयों में काम करने वाले विदेशी अधिकारियों को विदेशी प्रवर्तकों द्वारा किए जाने वाले भुगतान पर जीएसटी की देनदारी बनती है। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा बहुराष्ट्रीय कंपनियों की स्थानीय इकाइयों की ऑडिट के दौरान सामने आया।
इनमें स्मार्टफोन, वाहन, सॉफ्टवेयर, एफएमसीजी और कॉस्मेटिक्स आदि क्षेत्र की कंपनियां शामिल हैं।
उक्त अधिकारी ने बताया, ‘इनमें से कई मामलों में वित्त वर्ष में 2018 में किए गए भुगतान के लिए नोटिस भेजे गए हैं। हालांकि वित्त वर्ष 19, 20, 21 और 22 के लिए भी कर नोटिस जारी किए गए हैं। कंपनियों को कर मांग पर जवाब देने के लिए 30 दिन की मोहलत दी गई है।’
जीएसटी अधिकारियों का मानना है कि विदेशी अधिकारियों को वेतन या भत्ते का आंशिक या पूरा भुगतान विदेशी कंपनी द्वारा किया जाता है, जिसकी बाद में प्रवर्तक कंपनी की भारतीय इकाई अदायगी करती है। यह व्यवस्था श्रमबल की आपूर्ति की तरह है और जीएसटी के तहत इस पर कर देनदारी बनती है।
इस व्यवस्था के तहत रोजगार अनुबंध विदेशी कंपनी के साथ होता है, भले ही भारतीय कंपनियों का ऐसे विदेशी अधिकारियों पर नियंत्रण हो।
अधिकारी ने कहा कि यह उनके अपने घरेलू देश के सामाजिक सुरक्षा के लाभ को बनाए रखने के लिए होता है जहां उनका परिवार रहता है। हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि जहां वेतन का भुगतान सीधे तौर पर भारतीय कंपनियों द्वारा किया जाता है और यह रीइंबर्स नहीं किया जाता है तो उन पर जीएसटी नहीं लगेगा क्योंकि ऐसे मामलों में विदेशी अधिकारी को भारतीय कंपनी का कार्मिक माना जाता है।
नॉर्दर्न ऑपरेटिंग सिस्टम (एनओएस) मामले में मई 2022 में सर्वोच्च अदालत के फैसले से बहुराष्ट्रीय कंपनियों की सहायक इकाइयों पर कर मांग के मामले बढ़े हैं। अदालत ने फैसले में कहा था कि विदेशी समूह द्वारा भारतीय इकाई में कर्मचारियों की प्रतिनियुक्ति श्रमबल की आपूर्ति सेवा के दायरे में आती है और इस पर रिवर्स चार्ज व्यवस्था के तहत भारतीय फर्म द्वारा सेवा कर की देनदारी बनती है।
यह निर्णय सेवा कर (जीएसटी से पहले के दौर में) से संबंधित था लेकिन जीएसटी में भी यह निहित है। विदेशी कर्मचारियों की प्रतिनियुक्ति और विदेश में वेतन भुगतान उद्योग में सामान्य चलन है और यह अभी भी जारी है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद उद्योग की राय अलग-अलग थी। कुछ कंपनियों ने जीएसटी का भुगतान कर क्रेडिट का दावा किया है लेकिन ब्याज को लेकर मामला न्यायिक विचाराधीन है। कुछ कंपनियों ने कर का भुगतान नहीं किया है और अपने को एनओएस मामले से इतर बताते हुए वे कानूनी लड़ाई की तैयारी में हैं।
केपीएमजी में अप्रत्यक्ष कर के प्रमुख और पार्टनर अभिषेक जैन ने कहा, ‘एनओएस मामले में अदालत के फैसले को आधार बनाते हुए राजस्व विभाग ने कई कंपनियों को कारण बताओ नोटिस जारी किए हैं और उन्हें भारत में प्रतिनियुक्त विदेशी अधिकारियों के वेतन-भत्तों के भुगतान पर जीएसटी चुकाने के लिए कहा जा रहा है।’ उद्योग तथ्यों का आकलन कर उचित कदम उठाएगा।
डेलॉयट इंडिया में पार्टनर एम एस मणि ने कहा, ‘विदेशी प्रतिनियुक्ति के मामले में जीएसटी का आकलन सावधानी से करने की जरूरत है क्योंकि व्यवस्था की शर्तों में मुआवजा, भूमिका और जिम्मेदारियां और कर्मचारियों पर नियंत्रण का भी ध्यान रखना होगा।’