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बेमेल मांग-आपूर्ति जैसी परिस्थितियों में फंस सकता है सीमेंट उद्योग

Last Updated- December 10, 2022 | 10:26 PM IST

साल 2009 के अंत तक भारतीय सीमेंट उद्योग 460 लाख टन की अतिरिक्त क्षमता लगाएगी।
पिछले साल सीमेंट उत्पादन क्षमता में 180 लाख टन जोड़ा गया था। भारतीय सीमेंट उद्योग की क्षमता, जो चीन के बाद विश्व में दूसरी सबसे बड़ी है, इस साल के अंत तक बढ़ कर 2,530 लाख टन होने की ओर अग्रसर है।
हालांकि, आर्थिक गतिविधियां मध्दम होने के समय में क्षमता विस्तार किए जाने से थोड़े समय तक मांग और आपूर्ति बेमेल बनी रहेगी। इससे निश्चय ही सीमेंट की कीमतों पर दवाब बढ़ेगा और हाल में कीमतों में हुई बढ़ोतरी, खास तौर से दक्षिण भारत में, अस्थायी भी साबित हो सकती है।
नई क्षमताएं जोड़े जाने से दूसरी स्थिति यह होगी कि जब तक मांग उद्योग की आपूर्ति क्षमताओं से मेंल नहीं खाते हैं तब तक उत्पादक नई क्षमताओं का पूरी तरह इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे। बाजार में तेजी और उद्योग द्वारा आधुनिक ड्राई प्रक्रिया तकनीक का इस्तेमाल किए जाने के कारण पिछले साल उत्पादन क्षमता का 96 प्रतिशत इस्तेमाल में लाया गया था।
लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में उच्च उत्पादन क्षमता का प्रयोग बरकरार रहने वाला नहीं है। जब तक आर्थिक मंदी पूरी तरह उजागर नहीं हुआ था (साल 2008 की अंतिम तिमाही में) भारतीय सीमेंट की मांग 10 प्रतिशत या उससे अधिक की वार्षिक दर से बढ़ रही थी। इसे देश की बुनियादी परियोजनाओं और घरों के निर्माण से काफी मदद मिली।
साल 2012 में समाप्त हो रहे चालू पंचवर्षीय योजना के तहत बुनियादी क्षेत्र में 500 अरब डॉलर का निवेश किया जाना है। इसके साथ-साथ इस वास्तविकता को जान कर कि आवास क्षेत्र में इससे भी बड़े निवेश की आवश्यकता होगी सीमेंट कंपनियों ने ग्रीनफील्ड और ब्राउनफील्ड दोनों तरीकों से आक्रामक रूप से क्षमता विस्तार करना शुरू कर दिया है। परिणामस्वरूप एक साल के दौरान ही क्षमता अत्यधिक बढ़ाई जा रही है।
गोल्डमैन सैक्स ग्लोबल ईसीएस रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, भारत में घरों की मांग आपूर्ति के मुकाबले 3 करोड़ इकाई अधिक है। आईसीआरए कहता है कि आवास क्षेत्र, जिसकी हिस्सेदारी सीमेंट की खपत में लगभग 50 फीसदी की है, मांग की प्रमुख वजह बना रहेगा। साल 2012 तक ग्रामीण भारत को 4 करोड़ 74 लाख आवासीय इकाईयों और शहरी क्षेत्रों को 2 करोड़ 65 लाख आवासीय इकाईयों की आवश्यकता होगी।
पिछली अधिक आपूर्ति और संभावति खरीदारों को संस्थागत मदद नहीं मिलने से भी आवास विकास प्रभावित हुआ है। अन्य देशों की भांति भारत सरकार भी अर्थव्यवस्था में नकदी का प्रवाह बढ़ा रही है ताकि बुनियादी परियोजनाओं और रियल्टी के क्षेत्र, जिन पर आर्थिक मंदी का सर्वाधिक असर हुआ है, फंड के अभाव में पिछड़े न रह जाएं। खुशी की बात है कि सरकार के इस कदम ने भले ही धीरे-धीरे लेकिन अपना परिणाम दिखाना शुरू कर दिया है और यह हाल में सीमेंट की बिक्री में आई तेजी से देखा जा सकता है।
केसोराम इंडस्ट्रीज के निदेशक एस के पारिक कहते हैं कि अगर बढ़ती उत्पादन लागत और सीमेंट कीमतों में कमी से उत्पादकों का लाभ दवाब में आता है तो विलय एवं अधिग्रहण के जरिये क्षमता समेकन की संभावनाएं बढ़ेंगी। इस कारण से बीते समय में उद्योग की क्षमता के एक बड़े हिस्से का समेकन हुआ था।
पारिक के अनुसार ए वी बिड़ला समूह इसमें मुख्य प्रतिभागी था। वर्तमान परिस्थितियां चाहे जो भी हों वैश्विक सीमेंट समूहों के लिए भारत अभी भी अपार संभावनाओं का बाजार है।
जैसा कि देखा गया है, प्रत्येक विदेशी समूह भारतीय सीमेंट उद्योग जगत में अपने पांव अधिग्रहण के रास्ते जमा रहा है। इसकी वजह यह है कि होल्सिम और लाफार्ज जैसे समूह भारत के जटिल बाजार में मिल चलाने और सीमेंट के विपणन का बना बनाया अनुभव चाहते हैं। उसके बाद वे खास तौर से ग्रीनफील्ड विस्तार के जरिये नई क्षमता बनाने की सोचेंगे।

First Published - March 31, 2009 | 10:38 PM IST

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