बाजार कारोबारियों का कहना है कि अप्रैल में एक्सचेंज-ट्रेडेड मुद्रा डेरिवेटिव कारोबार में बड़ी गिरावट आई क्योंकि इससे जुड़े एक्सपोजर को अनिवार्य करने वाले नियमों के लागू होने से पहले खुदरा निवेशकों ने अपनी पोजीशन घटा दीं।
एनएसई (NSE) पर अप्रैल में मुद्रा वायदा एवं विकल्प का औसत दैनिक कारोबार (ADTV) 20,646 करोड़ रुपये रहा जो मार्च के 1.56 लाख करोड़ रुपये से 87 प्रतिशत कम है। इस बीच, बीएसई के लिए एडीटीवी 75 प्रतिशत घटकर 1,481 करोड़ रुपये रहा जबकि मेट्रोपॉलिटन स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया (एमएसईआई) के लिए यह 81 प्रतिशत घटकर 354 करोड़ रुपये रहा।
भारतीय रिजर्व बैंक ने एक्सचेंज-ट्रेडेड मुद्रा डेरिवेटिव के लिए इन नियमों पर अमल 3 मई तक टाल दिया था। पहले इन मानकों को 5 अप्रैल से लागू किए जाने की योजना थी। नए नियमों के तहत एनएसई और बीएसई पर कारोबार वाले रुपया-केंद्रित मुद्रा सौदों के लिए अब उसमें निहित एक्सपोजर जरूरी किया गया है।
हालांकि कारोबारियों को 10 करोड़ डॉलर तक की पोजीशन के लिए इससे जुड़े एक्सपोजर का प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं है लेकिन उन्हें ऐसे किसी एक्सपोजर के होने की पुष्टि करनी होगी।
सीआर फॉरेक्स के प्रबंध निदेशक अमित पाबरी ने कहा, ‘4 अप्रैल से कारोबार करीब 70-80 प्रतिशत तक घट गया। बाजार में तरलता घट गई।’ उन्होंने कहा कि 3 मई के बाद कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि सभी पोजीशन निपटा ली गई हैं।
मुद्रा वायदा में लेनदेन मुख्य रूप से उन खुदरा कारोबारियों द्वारा किए जाते थे जो ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) बाजारों में लेनदेन नहीं कर सकते थे क्योंकि बैंक संबंधित जोखिम का प्रमाण मांगते थे, जो उनके पास नहीं होता था। इन खुदरा सौदों की भागीदारी कुल लेनदेन में 80 प्रतिशत से ज्यादा थी।
एक्सचेंज-ट्रेडेड मुद्रा वायदा की तरलता में भी उनका बड़ा योगदान रहा है। शुरू में जब अगस्त 2008 में मुद्रा वायदा कारोबार शुरू हुआ तो आरबीआई ने विदेशी विनिमय दर के जोखिम की हेजिंग या अन्य उद्देश्यों के लिए डॉलर/रुपया मुद्रा वायदा में लेनदेन की अनुमति दी थी।