देश में आत्महत्या के मामलों में दिहाड़ी मजदूरों की तादाद सबसे अधिक दर्ज की जा रही है। साल 2023 में दिहाड़ी मजदूरों ने सबसे अधिक आत्महत्या की। जानकारों का कहना है कि दिहाड़ी मजदूरों को कम वेतन, काम में अस्थिरता और बिना किसी सुरक्षा कवच के एक अनिश्चित वास्तविकता से जूझना पड़ता है।
साल 2023 के दौरान देश में आत्महत्या के कुल मामलों दिहाड़ी मजदूरों की हिस्सेदारी एक चौथाई से अधिक रही। साल 2019 से देखा जाए तो दिहाड़ी पर काम करने वालों द्वारा की गई आत्महत्या के मामले 45 फीसदी बढ़कर 2023 में 47,170 हो गए।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से हाल में जारी ‘भारत में अपराध 2023’ रिपोर्ट के विश्लेषण से पता चलता है कि आत्महत्या के कुल मामलों में दिहाड़ी श्रमिकों की हिस्सेदारी बढ़कर 27.5 फीसदी हो गई। एक साल पहले यह आंकड़ा 26.4 फीसदी रहा था। इस प्रकार दिहाड़ी श्रमिक आत्महत्या से सबसे अधिक प्रभावित समूह बन गया।
पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद् प्रणब सेन ने इस संकट के शहरी पहलू की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘कोविड के बाद लघु एवं मझोले क्षेत्रों को तगड़ा झटका लगा। इससे उन्हें तमाम कर्मचारियों को नौकरी से निकालना पड़ा।’ उन्होंने कहा कि बड़ी कंपनियों में भी तमाम लोग अस्थायी कर्मचारी थे जिन्हें मांग में गिरावट के कारण नौकरी से निकाल दिया गया। ऐसे में कई दिहाड़ी श्रमिक बेरोजगार हो गए और काम की अनिश्चितता बढ़ती ही गई।
रिपोर्ट में ग्रामीण संकट पर भी प्रकाश डाला गया है। हालांकि 2023 में खेती-किसानी से जुड़े लोगों में आत्महत्या की दर घटकर 10,786 रह गई जो एक साल पहले के मुकाबले 4.5 फीसदी की गिरावट है। मगर इस क्षेत्र पर करीबी नजर डालने से एक बड़ा अंतर दिखाई देता है।
सभी प्रकार के कृषक समुदायों द्वारा की गई आत्महत्या की हिस्सेदारी 2023 में घटकर 6.3 फीसदी रह गई जो एक साल पहले 6.6 फीसदी थी। इससे व्यापक स्तर पर कुछ स्थिरता का संकेत मिलता है। साल 2023 तक 5 वर्षों की अवधि में किसानों द्वारा की गई आत्महत्या के मामलों में 21 फीसदी की कमी आई जबकि खेतिहर मजदूरों द्वारा की गई आत्महत्या के मामले 41 फीसदी बढ़ गए। कृषकों को सहायता योजनाओं या ऋण राहत से लाभ हुआ होगा लेकिन दैनिक मजदूरी पर निर्भर श्रमिक अभी भी बदतर होते ग्रामीण संकट में फंसे हुए हैं।
सेन ने इस ग्रामीण असंतुलन का संबंध महामारी के बाद के प्रवासन से जोड़ा। उन्होंने कहा, ‘साल 2020 के बाद शहरों से प्रवासी मजदूरों की वापसी ने श्रम बाजारों को अस्त-व्यस्त कर दिया। यह अभी भी जारी है। एक ही असुरक्षित काम के लिए कई लोग प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। इससे भूमिहीन मजदूरों की संख्या बढ़ रही है।’
एनसीआरबी के आंकड़ों से इस बात की पुष्टि होती है कि आजीविका का संकट अब केवल खेतों तक ही सीमित नहीं रह गया है। श्रमिक लंबे समय से इसका संकेत दे रहे हैं।