facebookmetapixel
परमाणु दौड़ में फिर उतरा अमेरिका! 33 साल बाद टेस्ट का आदेश, ट्रंप बोले – हमें करना ही पड़ाStock Market today: फेड ने घटाई दरें! GIFT निफ्टी लुढ़का, अदाणी पावर-एनटीपीसी के नतीजों पर नजरStocks to Watch today: कोल इंडिया, विप्रो, एलएंडटी समेत ये 10 बड़े स्टॉक रहेंगे फोकस मेंLIC ने टाटा कंज्यूमर और डाबर में बढ़ाई हिस्सेदारी – जानिए क्या है वजहBFSI Summit: भारत का वित्तीय क्षेत्र सबसे मजबूत स्थिति में, सरकार और आरबीआई ने दी जिम्मेदार वृद्धि की नसीहत2025 बनेगा भारत के इतिहास का सबसे बड़ा आईपीओ वर्ष, BFSI समिट में बोले विदेशी बैंकरBFSI Summit: अधिग्रहण के लिए धन मुहैया कराने में नए अवसर देख रहा है बैंकिंग उद्योगBSFI Summit: ‘एमएफआई के दबाव से जल्द बाहर निकल आएंगे स्मॉल फाइनैंस बैंक’BFSI Summit: दुनिया के शीर्ष 20 में से भारत को कम से कम 2 देसी बैंकों की जरूरतBFSI Summit: तकनीक पर सबसे ज्यादा खर्च करने वालों में शुमार है स्टेट बैंक- शेट्टी

Editorial: आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए पूंजीगत व्यय पर जोर

विश्व बैंक ने 104 अर्थव्यवस्थाओं का अध्ययन किया जिनमें सन 1950 से 2022 के बीच के 35 विकसित तथा 69 उभरते बाजार तथा विकासशील देश शामिल थे।

Last Updated- January 10, 2024 | 10:30 PM IST

सरकार महामारी खत्म होने के बाद आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए पूंजीगत व्यय (Capital expenditure) पर जोर दे रही है। इसके पीछे विचार यह है कि सरकारी पूंजीगत व्यय की सहायता से न केवल जरूरी अधोसंरचना का निर्माण होगा बल्कि आर्थिक गतिविधियों को भी बल मिलेगा जो निजी क्षेत्र को निवेश के लिए प्रेरित करेगा।

बहरहाल कई राज्य इस मामले में पीछे रह गए हैं और वर्ष के लिए तय लक्ष्य के चौथाई हिस्से तक ही पहुंच सके हैं। आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने में निवेश की भूमिका, विश्व बैंक के एक व्यापक अध्ययन में एक बार फिर रेखांकित हुई है। यह अध्ययन ताजातरीन वैश्विक आर्थिक संभावना रिपोर्ट में प्रकाशित हुआ है। शेष विश्व की तरह भारत में भी वैश्विक वित्तीय संकट के बाद निवेश बुरी तरह प्रभावित हुआ।

भारत का सामना दोहरी बैलेंस शीट की समस्या से था जहां कॉरपोरेट और बैंकों की बैलेंस शीट दोनों दबाव में थीं। अब हम उस दौर से पूरी तरह उबर चुके हैं और निजी निवेश में भी सुधार के संकेत हैं। हालांकि अभी यह देखना होगा कि यह कितना टिकाऊ साबित होता है।

विश्व बैंक ने 104 अर्थव्यवस्थाओं का अध्ययन किया जिनमें सन 1950 से 2022 के बीच के 35 विकसित तथा 69 उभरते बाजार तथा विकासशील देश शामिल थे। जैसा कि अध्ययन बताता है निवेश की गति बढ़ाने के दौरान उभरते बाजारों तथा विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में उत्पादन वृद्धि सालाना 5.9 फीसदी बढ़ी। यह अन्य वर्षों से 1.9 फीसदी अधिक थी।

अनुभवजन्य विश्लेषण तथा रिपोर्ट में शामिल केस अध्ययन, निवेश दर बढ़ाने में नीतियों की भूमिका को लेकर तीन प्रमुख पर्यवेक्षण प्रस्तुत करते हैं जिनका यहां जिक्र करना उचित होगा।

पहला, वृहद आर्थिक स्थिरता में सुधार करने वाले नीतिगत हस्तक्षेप मसलन राजकोषीय घाटा कम करने की कोशिश तथा मुद्रास्फीति को लक्षित करना तथा ढांचागत सुधार आदि सभी निवेश बढ़ाने में मददगार साबित हुए हैं। इसमें अंतरराष्ट्रीय व्यापार को सहज बनाने तथा पूंजी की आवक सुनिश्चित करने वाले हस्तक्षेप भी शामिल हैं।

दूसरा, विशिष्ट नीतिगत हस्तक्षेपों की अपनी भूमिका होती है लेकिन नीतिगत हस्तक्षेपों का एक व्यापक पैकेज जो अधिक वृहद आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करता हो तथा ढांचागत मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करता हो, वह निवेश वृद्धि की संभावनाओं में इजाफा करने का रुख रखता है।

तीसरा है संस्थानों की भूमिका, उदाहरण के लिए उनका सही ढंग से काम करना और स्वतंत्र विधिक व्यवस्था बहुत महत्वपूर्ण हैं। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि एक सक्रिय न्यायिक व्यवस्था निवेशकों और उद्यमियों में विश्वास पैदा करती है क्योंकि अनुबंधों को लागू करना आसान होता है।

इस संदर्भ में यह ध्यान देने लायक है कि भारत में वृहद आर्थिक स्थिरता अपेक्षाकृत अच्छे स्तर पर है। चाहे जो भी हो मगर उसे राजकोषीय स्थिति दुरुस्त करने की जरूरत है। हालांकि बढ़ा हुआ राजकोषीय घाटा एक हद तक उच्च सरकारी पूंजीगत व्यय की वजह से है जो निवेश बढ़ाने की कोशिश में किया जाता है।

सरकार को जल्दी ही एक कठिन नीतिगत प्रश्न का उत्तर देना होगा: आखिर किस मोड़ पर उसे निजी क्षेत्र के लिए गुंजाइश बनानी शुरू करनी चाहिए? बाहरी मोर्चे पर जहां भारत की पूंजी गतिशीलता अच्छी खासी है वहीं व्यापार के मोर्चे पर हाल के वर्षों में टैरिफ में इजाफे के कारण कुछ उलट देखने को मिला है, जिसके बारे में कुछ अर्थशास्त्री मानते हैं कि वह दीर्घकालिक वृद्धि को प्रभावित कर सकता है।

भारत में जहां स्वतंत्र न्यायपालिका है वहीं अनुबंध प्रवर्तन की उसकी क्षमता वांछित स्तर की नहीं रही है। इसे विश्व बैंक की कारोबारी सुगमता रैंकिंग (अब बंद) में भी देखा जा सकता था।

अध्ययन ने इस बात को भी रेखांकित किया कि कैसे भारत द्वारा सन 1990 के दशक में शुरू किए गए सुधारों ने उस दशक में वृद्धि और निवेश को बढ़ावा दिया। चूंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था के निकट भविष्य में धीमी गति से विकसित होने की उम्मीद है तथा हाल के वर्षों में दुनिया भर में निवेश वृद्धि की गति धीमी पड़ी है तो ऐसे में भारतीय नीति निर्माताओं को एक अतिरिक्त कदम उठाते हुए मध्यम अवधि में वृद्धि और निवेश को सुविधा प्रदान करनी पड़ सकती है।

First Published - January 10, 2024 | 10:21 PM IST

संबंधित पोस्ट