भारत का बैंकिंग क्षेत्र एक अनूठी स्थिति का सामना कर रहा है। मुनाफे, बैलेंस शीट,गैर निष्पादित संपत्ति की स्थिति मौजूदा दौर से बेहतर कभी नहीं रही है। वहीं बड़ी कंपनियों की ओर से कर्ज की सुस्त मांग इस अच्छी खबर में दाग लगा रहा है और खुदरा क्षेत्र की मांग भी स्थिर है। बैंकर इस बात से सहमत हैं कि विलय के लिए धन मुहैया कराने की अनुमति से भारत की बैंकिंग क्षेत्र में वृद्धि और मुनाफे का एक नया द्वार खुला है। इससे भारत के बैंकिंग मॉडल में नई खोज के अवसर बढ़े हैं, जो परंपरागत रूप से कॉरपोरेट ऋण, परियोजनाओं के लिए ऋण और खुदरा ऋण मुहैया कराता रहा है।
‘क्या बैंकिंग मॉडल पर पुनर्विचार करने का समय आ गया है?’इस विषय पर बिज़नेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई इनसाइट समिट में बात करते हुए बैंकिंग के प्रमुखों ने कहा कि नया आविष्कार उद्योग में चलने वाली सतत प्रक्रिया है और उद्योग इसे लगातार स्वीकार कर रहा है। बैंकरों ने कहा कि बैंकों की तमाम गतिविधियों में से एक ऋणदेना भी है और उनके पास शुद्ध ब्याज आय (एनआईआई) बढ़ाने के अन्य साधन भी है।
येस बैंक के सीईओ और एमडी प्रशांत कुमार ने परिचर्चा के दौरान कहा, ‘ऐसा नहीं है कि कंपनियों ने बैंकों से उधार लेना बंद कर दिया है। हाल की तिमाहियों में मझोले बाजार की कंपनियों और छोटे व मझोले उद्योगों ने ऋण के क्षेत्र में नए अवसर खोले हैं। वित्त वर्ष 2026 की दूसरी तिमाही में कंपनियों की ओर से ऋण की मांग बढ़ी है, जिसकी वजह जीएसटी दरों में कटौती के कारण आर्थिक गतिविधियों में तेजी है। विभिन्न क्षेत्रों में अवसरों के साथ आज के बैंक ग्राहकों की जरूरतें पूरी करने में अधिक बेहतर स्थिति में हैं।’
फेडरल बैंक के एमडी और सीईओ केवीएस मणियन ने कहा कि बैंकों में बदलाव एक सतत प्रक्रिया है, लेकिन अब सामान्य से अधिक तेजी से चक्र बदल रहा है। उन्होंने कहा, ‘हाल के नियामकीय बदलावों ने वृद्धि के नए अवसर खोले हैं। इसमें अधिग्रहण और पूंजी बाजार के लिए धन मुहैया कराना शामलि है, जो पहले नहीं था। हालांकि, जैसे-जैसे अवसर का रूप बदलता है, बैंकों को अलग तरह से सोचना होगा और विशेषज्ञता पर विचार करना होगा।’
इंडसइंड बैंक के एमडी और सीईओ राजीव आनंद ने कहा कि कंपनियों की ओर से नई उधारी लेने में सुस्ती कोई आश्चर्य की बात नहीं है। कंपनियां पिछले 5-6 साल से अपने कर्ज में कमी ला रही हैं और उनके पास नकदी की आवक में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। इसकी वजह से बाहर से लंबी अवधि के लिए धन लेने की जरूरत कम हुई है। इसके अलावा कंपनियों को कई नए स्रोतों से धन जुटाने के रास्ते खुले हैं।
उन्होंने कहा, ‘एक बैंक के तौर पर हमें हर तरह के ग्राहकों को सेवाएं देने में सक्षम होना चाहिए। इस हिसाब से कभी आप एनआईआई बनाएंगे, जो ऋण पर निर्भर है। एक समय के बाद आपको अपने बैलेंस शीट का इस्तेमाल आमदनी कमाने के लिए करना होगा। एक ऐसा वक्त भी हो सकता है, जब आपको अपने ग्राहकों से लेनदेन में अधिक सक्षम बनाने की जरूरत होगी।’
आनंद का कहना है कि कॉरपोरेट हमसे ऋण लेंगे या नहीं, यह अटकलबाजी है, क्योंकि क्योंकि बैंकों का कॉरपोरेट ग्राहकों के साथ संबंध उनके द्वारा दिए जाने वाले ऋणों के अलावा और भी व्यापक हो गया है। कॉरपोरेट बैंकिंग बैंकों की बैलेंस शीट का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनी रहेगी, लेकिन उधार देना कभी भी पर्याप्त नहीं होगा। बैंकर इस बात से भी सहमत हैं कि बैंकों को अधिग्रहण के लिए धन मुहैया कराने की अनुमति मिलने के रिजर्व बैंक के फैसले से बैंकिक उद्योग के विकास में मदद मिलेगी।
मणियन ने कहा, ‘अधिग्रहण फाइनैंसिंग लंबे समय से उद्योग की मांग रही है। हमें खुशी है कि रिजर्व बैंक ने आखिरकार इसकी अनुमति दे दी है। यदि हम चाहते हैं कि अर्थव्यवस्था 7 से 8 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़े तो बैंक ऋण को 13 से 14 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ने की जरूरत है। मुझे लगता है कि केंद्रीय बैंक के हाल के बदलावों के बाद यह संभव हो रहा है।’आनंद का कहना है कि अधिग्रहण के लिए धन मुहैया कराने की अनुमति मिलने से मुनाफा कमाने का एक नया रास्ता खुला है, जिससे अब तक विदेशी बैंकों को ही लाभ हो रहा था।