स्मॉल फाइनैंस बैंकों (एसएफबी) के सूक्ष्म वित्त पोर्टफोलियो (एमएफआई) पर दबाव आने वाले महीनों में कम होने की संभावना है क्योंकि इस क्षेत्र को अगली दो-तीन तिमाहियों में संकट से बाहर निकलने की उम्मीद है। बुधवार को बिजनेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई सम्मेलन में दो स्मॉल फाइनैंस बैंकों के प्रमुखों ने यह बात कही।
क्या एसएफबी सार्वभौमिक बैंकों में परिवर्तित होने के लिए तैयार हैं? इस पर यूनिटी एसएफबी के एमडी और सीईओ इंद्रजीत कैमोत्रा ने कहा कि करीब 18 महीने पहले माइक्रोफाइनैंस उद्योग और स्व-नियामक संगठनों (एसआरओ) ने माना था कि यह एक समस्या है क्योंकि बैंकिंग उद्योग ने एक ही महिला को कई ऋण दिए (कभी-कभी एक व्यक्ति को पांच या सात ऋण), जो चुकाने की उसकी क्षमता से बहुत अधिक थे।
माइक्रोफाइनैंस उद्योग को यह समझने में कुछ तिमाहियां लग गईं कि हमने वाकई बहुत ज्यादा सख्ती बरती है। जब एसआरओ की बैठक हुई तो हमने तय किया कि हम एक ही महिला को तीन से ज्यादा ऋण नहीं देंगे और कुल ऋण 1.75 लाख रुपये से ज्यादा नहीं होगा। पिछले 12-15 महीनों से इस नियम का पालन किया जा रहा है और जहां पुराने खाते में चुकाने के लिए कई ऋण हैं, वहीं नए खाते में नए अंडरराइटिंग मानक हैं, जो ज्यादा समझदारी भरे हैं।
कैमोत्रा ने कहा कि माइक्रोफाइनैंस में 99 फीसदी से ज्यादा कर्ज़दार महिलाएं हैं और वे ऋण चुकाना चाहेंगी। उन्होंने कहा, समय के साथ पुराना खाता सिकुड़ता जा रहा है, समस्याएं छोटी होती जा रही हैं और नया खाता बढ़ता जा रहा है और अच्छे नतीजे दे रहा है। बुरे दौर से निकलकर अच्छे दौर (लेकिन अभी अच्छे दौर नहीं) की ओर बढ़ने का यही सही समय है। मैं कहूंगा कि एक या दो तिमाहियों में हम इस मुश्किल से बाहर निकल जाएंगे।
सूर्योदय एसएफबी के एमडी और सीईओ आर. भास्कर बाबू भी इस बात से सहमत दिखे। उनका मानना था कि सीख काफी गहरी रही है और अब समय आ गया है और हम मुश्किलों से बाहर निकलने वाले हैं। बाबू ने कहा, हमें एक ऐसा मॉडल बनाना होगा जहां ग्राहक हम पर भरोसा करें और हमें उन्हें सही पॉलिसी जैसे कि जीवन बीमा आदि दिलानी होगी और उनके साथ एक रिश्ता बनाना होगा। हमें ग्राहकों की ज़रूरतों के दोनों पहलुओं पर काम करना होगा।
पिछले कुछ वर्षों में जहां स्मॉल फाइनैंस बैंकों (एसएफबी) का तेजी से विकास हुआ है, वहीं उनके सूक्ष्म-वित्त पोर्टफोलियो ने उनकी परिसंपत्ति गुणवत्ता को प्रभावित किया है। एमएफआई खंड की सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (जीएनपीए) वित्त वर्ष 2024 के 3.2 फीसदी से बढ़कर वित्त वर्ष 2025 में 6.8 फीसदी हो गईं।
आरबीआई ने स्मॉल फाइनैंस बैंकों (एसएफबी) के लिए प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (पीएसएल) लक्ष्य को समायोजित शुद्ध बैंक ऋण (एएनबीसी) या ऑफ-बैलेंस शीट एक्सपोज़र (सीईओबीई) के समतुल्य ऋण के 75 फीसदी से घटाकर 60 फीसदी कर दिया है, जो भी जून 2025 में अधिक हो। इससे पूंजी मुक्त होने और सूक्ष्म वित्त से परे स्मॉल फाइनैंस बैंकों के विविधीकरण में तेजी आने की संभावना है। स्मॉल फाइनैंस बैंकों के कुल अग्रिमों में सूक्ष्म वित्त संस्थानों (एमएफआई) के ऋणों की हिस्सेदारी पहले ही वित्त वर्ष 2022 के 35 फीसदी से घटकर वित्त वर्ष 2025 में 24 फीसदी हो गई है।
दोनों पैनलिस्टों के अनुसार, स्मॉल फाइनैंस बैंक (एसएफबी) भी अपने उत्पादों में विविधता लाने की कोशिश कर रहे हैं – संपत्ति के बदले ऋण देने से लेकर (छोटे शहरों में), परिवारों के पास पड़े बेकार सोने को छोटे व्यवसायों के लिए कार्यशील पूंजी में बदलने के लिए स्वर्ण ऋण तक या उन लोगों के लिए क्रेडिट-बिल्डर कार्ड उपलब्ध कराने तक, जिनका क्रेडिट इतिहास नहीं है। उदाहरण के लिए, छात्रों को ऐसे कार्डों से लाभ हो सकता है, जहां उन्हें एक छोटी सी ऋण सीमा प्रदान की जाती है और वे इसका उपयोग अपने कौशल को निखारने के लिए कर सकते हैं।
कैमोत्रा ने कहा, एसएफबी नाम से तो छोटे हैं, लेकिन आकार में बहुत छोटे नहीं हैं। 11 एसएफबी के जरिये लगभग 3.5 करोड़ सक्रिय ग्राहकों को संभाला जाता है। 4 सदस्यों वाले परिवारों के हिसाब से लगभग 14 करोड़ लोग एसएफबी के ज़रिए जुड़े हैं।
उन्होंने कहा, हम परिवार को गरीबी के कुचक्र से निकालकर स्थिर जीवन की ओर ले जाते हैं। हम उन्हें गांव स्तर पर साहूकारों के जाल से मुक्त करते हैं। हालांकि ब्याज दर ज्यादा लग सकती है, लेकिन स्थानीय साहूकारों से उधार लेने पर मिलने वाली ब्याज दर का यह आधा ही होता है।