विशेषज्ञों का कहना है कि आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस (एआई) नियम पर अमेरिका का हाल का आदेश नवोन्मेष और नागरिकों के हिस के बीच संतुलन स्थापित करने की एक कवायद है और भारत इससे सीख सकता है। इस आदेश से भारत सहित विश्व में उभरती तकनीकों के नियमन को लेकर बहस को नए सिरे से गति मिली है।
द डायलॉग के सीनियर प्रोग्राम मैनेजर कमलेश शेकर ने कहा, ‘अमेरिकी व्यवस्था नवोन्मेष के पहलुओं और उपभोक्ताओं के कल्याण की रक्षा दोनों के बीच संतुलन स्थापित करना पसंद करती है। दरअसल इससे उनकी सुरक्षा सुनिश्चित होती है जिसमें निजता या भेदभाव का मसला नहीं है। इसलिए मुझे लगता है कि इससे मुख्य रूप से यह सीखा जा सकता है कि संतुलित तरीका कैसे अपनाया जाए।’
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा हस्ताक्षरित कार्यकारी आदेश में फेडरल एजेंसियों को निर्देश दिया गया है कि एआई व्यवस्था के लिए नए सुरक्षा मानक तैयार करें। इसमें डेवलपरों के लिए यह जरूरी होगा कि वे सुरक्षा परीक्षण परिणाम के साथ अन्य अहम सूचनाएं अमेरिका की सरकार के साथ साझा करें।
इसके अलावा नैशनल इंस्टीट्यूट आफ आर्टीफिशल इंटेलिजेंस को एआई के सुरक्षित इस्तेमाल के लिए सुरक्षा घेरा तैयार करना होगा। कट्स इंटरनैशनल के डायरेक्टर अनमोल कुलकर्णी ने कहा कि इंडिया एआई रिपोर्ट की ज्यादातर सिफारिशें तकनीकी प्रकृति की हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि विकासशील देश होने के कारण भारत एआई को नियमन में लाने के मामले में असमान स्थिति में है। उनका कहना है कि सरकार को यूरोपीय संघ और अमेरिका के नियमन के जोखिम आधारित तरीके के अनुशरण की जगह समग्र दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।