फ्रांस में भारतीय पैरालिंपिक दल ने अपने शानदार प्रदर्शन से सबका मन मोह लिया है। पैरालिंपिक में भारतीय दल ने कुल 29 पदक झटक लिए, जिनमें 7 स्वर्ण, 9 रजत और 13 कांस्य पदक शामिल हैं। इस सराहनीय प्रदर्शन के साथ ही पेरिस पैरालिंपिक में भारतीय दल का सफल अभियान अपने मुकाम तक पहुंच गया। यह भारतीय पैरालिंपिक खिलाड़ियों का अब तक का श्रेष्ठ प्रदर्शन है।
पेरिस में निशानेबाजी में अवनी लेखरा और भाला फेंकने में सुमित अंतिल ने इस बार भी स्वर्ण पदक हासिल किए। वहीं, तीरंदाजी में हरविंदर सिंह, ट्रैक-इन-फील्ड में प्रीति पाल और बैडमिंटन में नीतेश कुमार ने भी ऐतिहासिक सफलता दर्ज की।
पिस्तौल निशानेबाजी में कांस्य पदक पर कब्जा करने वाली रुबीना फ्रांसिस कहती हैं, ‘पैरालिंपिक और इनमें भाग लेने वाले खिलाड़ियों, दोनों के दिन बदले हैं। सुविधाओं से लेकर धन की उपलब्धता सभी लिहाज से स्थिति पहले से बेहतर हुई हैं।’ पदक जीतने की खुशी फ्रांसिस के चेहरे पर साफ झलक रही थी। उन्होंने कहा, ‘हमने ओलिंपिक में पदक जीते हैं और अब मानों ऐसा लग रहा है कि हम मशहूर हस्ती बन गए हैं।’
निशानेबाज एवं पैरालिंपिक पदक विजेता मोना अग्रवाल कहती हैं कि जमीनी स्तर पर खिलाड़ियों को तत्काल समर्थन देने की जरूरत हैं। ‘खेलो इंडिया’ स्कीम से लाभान्विन हुईं अग्रवाल कहती हैं, ‘अब मैं पदक जीत चुकी हूं। मुझे पता है कि मुझे अब हर तरफ से पूरा समर्थन मिलेगा। मगर हमें उन लोगों के बारे में भी सोचना चाहिए कि जिन्होंने अभी बस अपने सफर की शुरुआत की है? ब्रांड या सरकार जो भी उन्हें मदद देना चाहते हैं वे जल्द से जल्द आगे आएं।’
अग्रवाल ने कहा कि अगर उन्हें शुरुआत में ही मदद मिली होती तो शायद वह और अच्छा प्रदर्शन कर पातीं। उन्होंने कहा, ‘मुझे कोई समर्थन नहीं था और न ही कोई और जरिया था मगर ‘खेलो इंडिया’ से काफी मदद मिली। कम से कम मुझे महीने के 10,000 रुपये तो मिल रहे थे जिससे मैं खेल से जुड़ी अपनी जरूरतें पूरी कर रही थीं।’
हालांकि, पैरा-एथलीट सरकार और ओलिंपिक गोल्ड क्वेस्ट एवं गो स्पोर्ट्स जैसे गैर-सरकारी संगठनों से मिलने वाले सहयोग मिलने की बात कर रह हैं मगर वे यह भी मानते हैं कि ब्रांड अभी भी पैरालिंपिक के साथ नहीं जुड़ रहे हैं। अवनी लेखरा कहती हैं, ‘ब्रांड के साथ सौदे या उनकी तरफ से मिलने वाले सहयोग के लिहाज से सामान्य एथलीट और पैरा-एथलीटों के बीच बड़ा अंतर है। हम जैसे खिलाड़ियों के लिए भी उन्हें आगे आना चाहिए।’
वैसे ब्रांड भारतीय पैरालिंपिक समिति के साथ साझेदारी करने के लिए आगे आ रहे हैं मगर व्यक्तिगत खिलाड़ी के साथ वे काफी कम जुड़ पाए हैं। आईओएस स्पोर्ट्स के संस्थापक एवं प्रबंध निदेशक नवीन तोमर कहते हैं, इसे लेकर बातें तो हो रही हैं मगर उनका जुड़ाव अल्प अवधि तक के लिए रहता है।
तोमर कहते हैं, ‘फिलहाल जो साझेदारियां हो रही हैं वे बड़ी नहीं कही जा सकतीं और न इनकी तुलना हो सकती है। आईओएस स्पोर्ट्स सुमित अंतिल और निषाद कुमार जैसे पैरा-एथलीटों के सहित कई एथलीटों के साथ काम कर रही है।’
बेसलाइन वेंचर्स के सह-संस्थापक विशाल जैसन कहते हैं, ‘ब्रांड के साथ जुड़ाव की बात करें तो पैरा-एथलीटों के मामले में इसकी कमी रही है मगर पदक जीतने का सिलसिला बेहतर रहा है। इन खिलाड़ियों के साथ साथ ब्रांडों के लिए दिलचस्पी बढ़ाने के सभी कारण मौजूद हैं।’ जैसन का कहना है कि इस समय काफी पूछताछ एवं चर्चा हो रही है।
क्या वैश्विक स्तर पर एथलीटों को सारी सुविधाएं देने के लिए सरकार से मिल रहा समर्थन पर्याप्त है? विशेषज्ञ और खिलाड़ी इससे समहत नहीं हैं, खासकर पैरा-स्पोर्ट्स के लिए तो बिल्कुल नहीं जहां विशेष उपकरणों एवं सुविधाओं की जरूरत होती है।
पूर्व पैरालिंपिक खिलाड़ी विभास सेन कहते हैं, ‘प्रशिक्षण, उपकरण और यात्रा के लिए कंपनियां चाहें तो रकम का इंतजाम कर सकती है।’ सेन ने कहा कि खेल में करियर के बाद की संभावनाओं एवं मार्गदर्शन से जुड़े कार्यों की गुंजाइशों का पता लगाकर कंपनियां पैरा-एथलीटों की मदद कर सकती हैं। पेरिस पैरालिंपिक मे पैरा शूटर एवं रजत पदक विजेता मनीष नरवाल का कहना है कि पैरा स्पोर्ट्स में दिलचस्पी लेने में कंपनियों को और 4-5 साल लग सकते हैं। नरवाल कहते हैं, ‘ओजीएक्यू और गो स्पोर्ट्स और सरकार की पहल के कारण एथलीटों को रकम आदि के लिए बहुत अधिक चिंता करने की जरूरत नहीं है।’
वर्ष 2006 में एशियाई खेल में ट्रैक-इन-फील्ड में स्वर्ण पदक जीतने वाले बलवंत सिंह कहते हैं कि जब वह वापस देश लौटे तो उन्हें सरकार से 1 लाख रुपये पुरस्कार के रूप में मिले। मगर सामान्य एथलीटों को 10 लाख रुपये दिए गए। सिंह कहते हैं, ‘यह कई वर्षों की कानूनी लड़ाई थी। अब पुरस्कार की रकम बराबर हो गई है। पहले प्रशिक्षण हासिल करना किसी चुनौती से कम नहीं था। जिसको जहां जगह मिलती थी वहीं शुरू हो जाते थे।’
हालांकि, सिंह भी मानते हैं कि अब हालात पहले से बेहतर हुए हैं। वह कहते हैं, ‘अब पैरा-एथलीटों की भी मीडिया में चर्चा हो रही है और लोगों की उनमें दिलचस्पी जगी है। इन खेलों को लेकर जानकारियां भी बढ़ी हैं। पैरा एथलीटों की मदद के लिए आवश्यक बुनियादा ढांचा भी पहले से काफी बेहतर हुआ है।’
पैरा-तीरंदाज एवं पेरिस पैरालिंपिक में पदक झटकने वाले राकेश शर्मा कहते हैं, ‘जब 2017 में मैंने तीरंदाजी का अभ्यास शुरू किया तो इस खेल के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी थी, पैरा एथलीट की बात तो ही छोड़ दीजिए। कोई समझ नहीं पा रहा था कि यह क्या बला है। इसमें लोगों की दिलचस्पी होने में बहुत समय लगा।’
‘खेलो इंडिया’ की शुरुआत 2018 में हुई थी मगर पैरा एथलीट के लिए योजना 2023 में शुरू हुई। सिंह कहते हैं, ‘पहले चुनौतियां अलग थीं क्योंकि ढांचागत, रकम, पहचान आदि से जुड़ी कई मुश्किलें थीं। मगर अब स्थित अलग है। फिर भी राज्य संगठनों में टकराव बढ़ने से संसाधनों का पूर्ण इस्तेमाल नहीं हो पाता है।’ उन्होंने कहा कि प्रायोजन का उद्देश्य अब लोक प्रचार अधिक हो गया है।
नई दिल्ली के सिरी फोर्ट खेल परिसर में 20 वर्षीय अबीबा अली निशानेबाजी का अभ्यास करती हैं। अली कहती हैं, ‘2015 में एक दुर्घटना का शिकार होने के कारण उनका भविष्य अधर में लटक गया था। मगर अब मेरा लक्ष्य मिल गया है और वह ओलिंपिक। मैं अवनी से सीख ले रही हूं।’
अली बैडमिंटन और बास्केटबॉल सहित कई खेलों में हाथ आजमा रही थीं। मगर दुर्घटना के कारण वह लाचार हो गईं और व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ गया। वह कहती हैं, ‘मैं अपने लिए विकल्पों की तलाश कर रही थीं तभी अवनी से जुड़ी कहानियां सुनकर मैं उत्साहित हुई। जब अवनी ने टोक्यो में स्वर्ण पदक जीता तो फिर सब स्पष्ट हो गया। मैंने निशानेबाजी का अपना लक्ष्य बना लिया।’
भारत ने टोक्यो पैरालिंपिक में कुल 19 पदक जीते थे। भारत ने 2016 में रियो में आयोजित पैरालिंपिक में 4 पदक झटके थे। फ्रांसिस और नरवाल दोनों इस बात से सहमत हैं कि टोक्यो ओलिंपिक ने लोगों की नजरों में पैरा-एथलीटों की छवि बदल कर रख दी। तब से हालात लगातार सुधर रहे हैं।
जैसन कहते हैं, ‘दुनिया की श्रेष्ट खेल प्रतियोगिताओं में पैरा एथलीटों का प्रदर्शन लगातार शानदार रहा है। खासकर पिछले दो ओलिंपिक में पैरा एथलीटों के प्रदर्शन ने बड़े ब्रांडों का ध्यान भी अपनी तरफ खींचा है। अब वे दीर्घ अवधि के लिए इस खेल और पैरा-एथलीटों के साथ जुड़ने के लिए तत्पर हैं।’