राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने 12 अक्टूबर को बिहार विधान सभा चुनाव के लिए सीट बंटवारे का एक फॉर्मूला तय किया और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) बराबरी पर आ गई। 243 सीटों में भाजपा-जदयू 101-101 सीटों पर मैदान में हैं, जबकि चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 29 और अन्य दलों को 6-6 सीटें दी गई हैं। पिछली बार के विधान सभा चुनाव में जदयू 115 सीटों पर चुनावी मैदान में थी। जनता दल यूनाइटेड के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय झा ने दरभंगा से टेलीफोन पर आदिति फडणीस को बताया कि कम सीटें मिलने के बावजूद जदयू पूरी ताकत से चुनावी मैदान में है और बिहार भी नई ऊंचाइयों की ओर बढ़ रहा है। बातचीत के प्रमुख अंश:
बिहार विधान सभा चुनाव के लिए सीटों का बंटवारा हो चुका है और अब उम्मीदवार अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र में पूरे दमखम के साथ मैदान में उतर चुके हैं। क्या आपको लगता है कि आपकी पार्टी ने बहुत ज्यादा सीटें गंवा दी हैं, जबकि बिहार में सरकार जदयू ही चला रही है?
इस बार सीटों के बंटवारे का प्रमुख आधार पिछले साल हुए लोक सभा चुनाव रहा, जिसमें बिहार की 40 सीटों पर भाजपा 17, जदयू 16 और अन्य सहयोगी दल बची सीटों पर मैदान में थे। हर पार्टी को कितनी सीटें मिलनी चाहिए यह तय करने यह अहम कारण था, जिसे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते। हर पार्टी को लगता है कि वह शक्तिशाली है और उसे ज्यादा सीटें मिलनी चाहिए, तब वह बेहतर प्रदर्शन कर पाएगी। मगर एक बार मसला सुलझ जाने के बाद हमें चुनाव में जीत हासिल करने पर अपनी पूरी ताकत झोंकनी होगी।
आपको नहीं लगता कि चिराग पासवान की लोजपा (रामविलास) को दी गई सीटों को लेकर आपकी पार्टी में असंतोष पैदा होगा, जो टकराव का कारण बन सकता है और अंततः गठबंधन को नुकसान पहुंचा सकता है?
नहीं, मैदान पर इसका कोई असर नहीं होगा। हमने साथ बैठकर सीटों के बंटवारे पर चर्चा की है। यह कहीं से किसी फरमान का नतीजा नहीं है। पिछला चुनाव लोक सभा का था जिसमें चिराग पासवान गठबंधन सहयोगी के रूप में मैदान में थे। इससे पहले 2020 के विधान सभा चुनाव में वह गठबंधन का हिस्सा नहीं थे। अब वह दोबारा साथ हैं । इसलिए, गठबंधन एकजुट होकर जीत हासिल करने के लिए काम करेगा।
क्या यह सच नहीं है कि पिछले विधान सभा चुनावों में चिराग पासवान ने नकारात्मक भूमिका निभाई थी, जिससे जदयू को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था? आपको उसी पार्टी के आगे झुकना पड़ा है?
सार्वजनिक रूप से कुछ प्रभाव के लिए बहुत सी बातें कहीं जाती हैं। चिराग पासवान ही क्यों, यहां तक कि कई भाजपा नेताओं ने भी बहुत कुछ कहा है। हां, इससे भ्रम की स्थिति पैदा हुई जो जदयू के लिए नुकसानदेह रही, लेकिन तब से हम उससे बहुत आगे निकल आए हैं। वे बातें अब इतिहास की बात हो गई हैं।
एक पार्टी के तौर पर जदयू, भाजपा से अलग है। भाजपा के साथ आने में आपको अपनी नीतियों से कितना समझौता करना पड़ा?
अगर हमारा एजेंडा भाजपा से अलग न होता तो हम सब एक ही पार्टी में होते। हर पार्टी की अपनी प्राथमिकताएं, अपनी मान्यताएं होती हैं। यह पहली बार नहीं है जब हम भाजपा के साथ गठबंधन कर रहे हैं। बीच के कुछ साल को अगर छोड़ दिया जाए तो हम 30 साल से सहयोगी हैं। इसलिए, हम उन्हें जानते हैं और वे हमें जानते हैं।
अगर एक बार फिर गठबंधन के तौर पर आप सत्ता में आते हैं, तो शासन और प्रशासन में आपका एजेंडा क्या होगा?
बिहार विकास के नए दौर से गुजर रहा है। जब नीतीश पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, तब जमीनी स्तर पर बुनियादी सुविधाएं भी मौजूद नहीं थीं। बिज़नेस स्टैंडर्ड ने भी यहां की जमीनी हालात के बारे में ‘कानून-व्यवस्था का अभाव, प्रशासन की बदहाली, बुनियादी ढांचे का अभाव’ रिपोर्ट की थी। अब बिहार की सड़कें भारत के किसी भी अन्य राज्य जितनी अच्छी हैं। बिजली क्षेत्र में सुधार हुआ है।
कनेक्टिविटी, कानून-व्यवस्था, लैंगिक न्याय। बिहार अब उन सभी चीजों के लिए खड़ा है जो उन वर्षों में पूरी तरह से गायब थीं जब यह जंगल राज में था। केंद्र सरकार भी रचनात्मक सहयोग के जरिये इसमें मदद कर रही है।
यह सच है कि हम एक विशेष श्रेणी के राज्य का दर्जा चाहते थे, लेकिन उस श्रेणी को ही समाप्त कर दिया गया है। इसके बावजूद, हमें केंद्र से धन और सहायता मिल रही है। इसके अलावा, अगला चरण बिहार का औद्योगीकरण है। हमें निवेश हासिल करना होगा और रोजगार प्रदान करने वाले उद्योग स्थापित करना होगा। बिहार सरकार उद्योगों को देने के लिए लगातार जमीन अधिग्रहण कर रही है। अगर इससे पर्याप्त रोजगार मिलता है तो हम निवेशकों को मुफ्त जमीन देने के लिए भी तैयार हैं। अगले पांच वर्षों में औद्योगिक विकास को प्रमुखता दी जाएगी।
साथ कौशल विकास पर भी हमारा जोर रहेगा। हमारी आबादी युवा है। बिहार के युवा प्रतिभाशाली हैं, उद्यमशील हैं, कड़ी मेहनत करते हैं। अगर हम एक व्यापक कौशल विकास कार्यक्रम शुरू कर सकें, तो वे किसी से कम नहीं होंगे।
नीतीश कुमार के बिना यह सब व्यर्थ हो सकता है। अब तो ऐसा लगता है कि उत्तराधिकार की कोई योजना नहीं है?
हम एक समाजवादी पार्टी हैं। यह संभवतः भारत की एकमात्र समाजवादी पार्टी है। बाकी सभी पारिवारिक पार्टियां हैं। नीतीश कुमार भारत के एकमात्र समाजवादी नेता हैं जो सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। वे बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं। उन्होंने कभी भी अपने परिवार को सरकार में शामिल नहीं किया। उनके नेतृत्व में चुनाव लड़कर वे हमारी पार्टी और बिहार को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे।
चूंकि आपकी पार्टी सामाजिक न्याय के मुद्दों के प्रति इतनी सजग रही है क्या राष्ट्रीय जनता दल (राजद) आपके लिए भाजपा से बेहतर नहीं है?
हमारा सामाजिक एजेंडा (राजद के साथ) कभी नहीं जम पाया। राजद नेतृत्व के कुकृत्यों के खिलाफ बनी एक पार्टी जदयू है। एक समय था जब बिहार में हालात इतने खराब थे कि आपको खुद को बिहारी कहने में शर्म आती थी। 1994 में सब कुछ बदल गया। हां, हम कुछ वर्षों तक राजद के साथ थे, लेकिन गठबंधन के छह महीने बाद, मुझे याद है कि नीतीश ने कहा था कि राजद नहीं बदल सकता। राज्य के निर्माण में वर्षों लग गए। अगर हम राजद के साथ गठबंधन में बने रहते, तो छह महीनों में सब कुछ बिखर जाता। वर्ष 2005 में हम भाजपा के साथ थे और सुशील मोदी के साथ मिलकर बिहार ने अपने पुनरुत्थान को मजबूत किया। सामाजिक न्याय क्या है। निश्चित रूप से यह सिर्फ एक परिवार को सशक्त बनाना भर नहीं है।
प्रशांत किशोर की जन सुराज बिहार में सबसे नई पार्टी है। कहा जा रहा है कि अगर मुकाबला कड़ा रहा, तो इससे सबसे अधिक फायदा उन्हें ही होगा।
नतीजे 14 नवंबर को आएंगे। देखते हैं क्या होता है। बिहार में द्विध्रुवीय राजनीति की परंपरा रही है। मुझे इसमें कोई बदलाव नजर नहीं आता है।