इन तस्वीरों पर गौर कीजिए: बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार द्वारा दिए गए पूरे पन्ने के विज्ञापन में सरकार खुद को राज्य के युवाओं का हितैषी बता रही है। राजनीतिक रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर ने इस साल की शुरुआत में बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) के प्रदर्शनकारी उम्मीदवारों के समर्थन में आमरण अनशन की घोषणा कर दी थी। विधान सभा चुनाव से कुछ सप्ताह पहले लोक सभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, ‘देश के युवा, यहां के छात्र, यहां की जेनजी- संविधान बचाएंगे, लोकतंत्र की रक्षा करेंगे और वोट चोरी रोकेंगे। मैं हमेशा उनके साथ खड़ा रहूंगा।’
बिहार में जेनजी का अनुपात 32.5 फीसदी पर देश में सबसे अधिक है। बिहार की नेपाल के साथ 726 किलोमीटर लंबी सीमा भी है जहां इसी महीने जेनजी के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन के कारण सत्ता परिवर्तन हुआ है। इस बीच, बिहार के युवाओं ने केवल दो राजनेताओं- राज्य में नीतीश कुमार और केंद्र में नरेंद्र मोदी- राजनीतिक स्थिरता देखी है। यह एक ऐसा मतदाता वर्ग है जो निर्णायक रूप से नतीजों को प्रभावित कर सकता है और हर बड़ा राजनीतिक खिलाड़ी इससे भलीभांति अवगत है।
राज्य में नीतीश कुमार की सरकार सत्ता विरोधी लहर का मुकाबला करने के लिए तमाम तरह के प्रलोभन की झड़ी लगा रही है। युवाओं को भी इससे अछूता नहीं रखा गया है। मुख्यमंत्री ने 18 सितंबर को बेरोजगार स्नातकों को दो साल तक करीब 1,000 रुपये प्रति माह वित्तीय सहायता देने की घोषणा की। उन्होंने अगले 5 वर्षों के दौरान 1 करोड़ नौकरियां देने का भी वादा किया। साथ ही बिहार में 12वीं कक्षा पूरी करने वाले छात्रों के लिए ब्याज मुक्त शिक्षा ऋण भी दिया। मगर ये वादे चुनावी मैदान में शायद पर्याप्त न हों।
इस साल के आरंभ में बीपीएससी परीक्षा में अनियमितताओं को लेकर प्रदर्शनकारियों ने पटना में कई सप्ताह तक डेरा डाल दिया था। प्रशांत किशोर और पूर्व उप-मुख्यमंत्री तथा राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव भी उसमें शामिल हुए थे।
बिहार में 15 से 29 आयु वर्ग के लोगों यानी जेनजी समूह में बेरोजगारी दर 14 फीसदी है। इतना ही नहीं प्रति व्यक्ति आय के मोर्चे पर भी वे देश में सबसे नीचे (2023-24 में करीब 60,180 रुपये) हैं।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या आर्थिक हताशा और बढ़ती आकांक्षाएं जातिगत निष्ठाओं पर हावी हो सकती हैं जो बिहार की राजनीति की बुनियाद है?
वरिष्ठ राजनीतिक रणनीतिकार एवं लेखक अंकित लाल का मानना है कि कोविड-19 वैश्विक महामारी के बाद बिहार के युवा अधिक महत्त्वाकांक्षी हो गए हैं। इसका श्रेय टिकटॉक (अब प्रतिबंधित) और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म को जाता है। उन्होंने कहा, ‘इन प्लेटफॉर्म ने उन्हें ऐसी संभावनाओं से रूबरू कराया है जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखी थीं। अब तेजस्वी और किशोर जैसे लोग उनके गुस्से का फायदा उठा रहे हैं। सरकार उनकी आकांक्षाओं और मोदी की अपील का फायदा उठाने की कोशिश कर रही है। मगर राजनीतिक व्यवस्था में निराशा का भाव है और जब लोग निराश महसूस करते हैं तो वे दूसरी तरफ देखते हैं। मुझे लगता है कि इस बार कई निर्दलीय उम्मीदवार जीतेंगे।’
किशोर की जन सुराज पार्टी (जसुपा) के एक सूत्र ने भी इससे सहमति जताई और सोशल मीडिया को सत्ता विरोधी लहर को बढ़ावा देने वाला बताया। उन्होंने कहा, ‘बिहार के युवा देख सकते हैं कि चेन्नई, हैदराबाद या बेंगलूरु के मुकाबले उनका राज्य कहां खड़ा है। मतदान करते समय वे इसे ध्यान में रखेंगे।’
जसुपा का दावा है कि वह जाति के आधार पर वोट नहीं बटोर रही है, जबकि राजद किशोर की ब्राह्मण पहचान को उजागर कर रही है। लाल ने बताया कि राजग से अलग-थलग पड़े कुछ ब्राह्मण युवा जसुपा की ओर आकर्षित हो रहे हैं। ऐसा इसलिए भी दिख रहा है क्योंकि पिछले कई दशक के बाद उनके समुदाय के किसी व्यक्ति को राजनीतिक प्रमुखता मिली है।
कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि किशोर और जसुपा खेल बिगाड़ सकते हैं। मगर उन्होंने यह भी कहा कि अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। लाल ने आगाह किया कि बीपीएससी वाला विरोध प्रदर्शन मायने रखता है, लेकिन वही एकमात्र मुद्दा नहीं होगा। उन्होंने कहा, ‘जब युवा मतदान करते हैं तो पारिवारिक वफादारी, सामुदायिक जुड़ाव और पड़ोस की भावना जैसे स्थानीय कारक भी मायने रखते हैं।’
राजनीतिक परामर्श फर्म शोटाइम कंसल्टिंग के सह-संस्थापक रॉबिन शर्मा ने कहा, ‘जेनजी को खुश करना मुश्किल है। इनमें कॉलेज के छात्र, नौकरी चाहने वाले और नए कर्मचारी शामिल होते हैं। वे ऑनलाइन रहते हैं और अपनी ताकत जानते हैं। बांग्लादेश और नेपाल को ही देखिए। अगर वे सड़कों पर उतर गए तो शासन को उखाड़ फेंक सकते हैं।’
समस्तीपुर से सांसद और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की नेता 27 वर्षीय शांभवी चौधरी लोक सभा की सबसे युवा सदस्य हैं। उन्होंने कहा कि युवा मतदाताओं को एकजुट करना राजग का मुख्य उद्देश्य है। उन्होंने कहा, ‘युवा मतदाता राजग के साथ हैं और इसमें कोई शक नहीं है। अगर हम उनसे 80-90 फीसदी वोट हासिल करते हैं तो हमें काफी फायदा होगा।’
इस बीच, विपक्ष सत्ता विरोधी लहर पर भरोसा कर रहा है। कांग्रेस के एक सर्वेक्षण के अनुसार, जेनजी का मोदी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रति लगाव बुजुर्ग मतदाताओं के मुकाबले कम है।
कांग्रेस के एक सूत्र ने कहा, ‘जेनज़ेड मोदी के शासनकाल में बड़ा हुआ है। उनके मन में मोदी के प्रति पहले जैसा सम्मान या प्यार नहीं है। इसका मतलब यह नहीं है कि वे अपने आप कांग्रेस के समर्थक हो गए हैं।’
राजद की राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रियंका भारती को भरोसा है कि सत्ता विरोधी लहर उनकी पार्टी के पक्ष में काम करेगी। उन्होंने पलायन के मुद्दे का उल्लेख करते हुए कहा, ‘युवा बिहार छोड़कर नहीं जाना चाहते। भाजपा और राजग रोजगार या अर्थव्यवस्था की बात नहीं कर सकते और इसलिए वे घुसपैठियों जैसे बेतुके बयान गढ़ रहे हैं।’
पिछले एक दशक में सोशल मीडिया राजनेताओं के राजनीतिक अभियान और छवि निर्माण गतिविधियों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन गया है।
वरिष्ठ राजनीतिक रणनीतिकार एवं लेखक अंकित लाल ने कहा कि शहरी बिहार में सोशल मीडिया की पहुंच लगभग 60 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्रों में 45 से 50 फीसदी आबादी तक है। हर पार्टी इसका इस्तेमाल करती है, लेकिन उनकी रणनीतियां अलग-अलग होती हैं। उन्होंने बताया, ‘भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस में काफी सुधार हुआ है। उसके स्थानीय कार्यकर्ताओं में ज्यादा ऊर्जा दिख रहा है। मगर व्हाट्सऐप पर भाजपा का ही वर्चस्व है। कांग्रेस ने इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर उसे पीछे छोड़ दिया है, लेकिन व्हाट्सऐप उसकी कमजोरी है।’
राजनीतिक परामर्श फर्म शोटाइम कंसल्टिंग के सह-संस्थापक रॉबिन शर्मा ने कहा कि राजनीतिक रणनीति में इंस्टाग्राम और यूट्यूब अब फेसबुक से आगे निकल गए हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं इंस्टाग्राम पर युवाओं को और यूट्यूब पर आम जनता को जोड़ता हूं।’
समस्तीपुर से सांसद और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की नेता शांभवी चौधरी सोशल मीडिया को मुख्य तौर पर सूचना के एक माध्यम के रूप में देखती हैं। उन्होंने कहा, ‘लोग मुख्य तौर पर विकास, अपने प्रतिनिधि के साथ जुड़ाव और जाति के आधार पर मतदान करेंगे। सोशल मीडिया यह तय करता है कि बाहरी दुनिया हमें किस प्रकार देखती है।’
कांग्रेस ने हाल में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के दौरान कथित वोट चोरी का मुकाबला करने के लिए सोशल मीडिया का भी सहारा लिया। पार्टी के एक सूत्र ने कहा, ‘हमने एसआईआर को बेअसर कर दिया है। वोट चोरी युवाओं के दिलों में स्वाभाविक रूप से गूंजती है क्योंकि यह उनके अधिकारों के हनन का मामला है। चाहे जमीनी स्तर पर हो या सोशल मीडिया पर, केवल सच बताने से हमें सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है।’
राहुल की क्षेत्रीय यूट्यूबरों और स्वतंत्र कंटेंट क्रिएटरों से बात करने की प्राथमिकता भी रंग लाई है। सूत्र ने कहा, ‘जेनज़ेड उन पर टीवी समाचार से अधिक भरोसा करता है।’
राजद के पास स्पष्ट तौर पर कोई सूचना प्रौद्योगिकी प्रकोष्ठ नहीं है। पटना के मरीन ड्राइव पर इंस्टाग्राम क्रिएटरों के साथ तेजस्वी के नाचने की एक वायरल रील का हवाला देते हुए भारती ने कहा, ‘हमारी पहुंच पार्टी के शुभचिंतकों से होती है। वह प्रासंगिक था और इसलिए चर्चित हो गया।’ इस बीच, जसुपा अपने मुख्य मुद्दे यानी प्रवासन पर भरोसा कर रही है। पार्टी सूत्र ने कहा, ‘हम अपना संदेश फैलाने के लिए 10,000 यूट्यूबर्स के साथ काम कर रहे हैं।’