विगत एक वर्ष के दौरान वैश्विक स्तर पर वृहद आर्थिक हालात सुधरे हैं। वर्ष 2024 से निरंतर वृद्धि का सिलसिला शुरू होने की संभावना है। बता रहे हैं अजय शाह
एक वर्ष पहले विश्व में असामान्य अनिश्चितता की स्थिति थी। दुनिया की विकसित अर्थव्यवस्थाओं में महंगाई की दशा-दिशा की थाह पाना मुश्किल लग रहा था और अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व किसी भी सीमा तक नीतिगत दरें बढ़ाने के लिए तैयार दिख रहा था।
नीतिगत दरें लगातार बढ़ने से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर पड़ने की आशंका प्रबल हो रही थी। इसी दौरान रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया, दूसरी तरफ चीन का आर्थिक दबदबा दुनिया में कम होता प्रतीत हुआ।
हालांकि, विगत एक वर्ष में चरम पर पहुंच चुकी अनिश्चितता कम हुई है और परिस्थितियां धीरे-धीरे सामान्य होने की दिशा में बढ़ती दिख रही हैं। इससे हमें भारत में कंपनियों एवं आम लोगों के समक्ष चुनौतियों को समझने में और यहां से भविष्य की रणनीति बनाने में सहायता मिलेगी।
वर्ष 2021 के अंत तक यह स्पष्ट हो गया था कि वैश्विक अर्थव्यवस्था कठिन परिस्थितियों से गुजर रही है। मूल्य स्थिरता बनाए रखने के लिए स्थापित आधारभूत ढांचे सवालों के घेरे में आते प्रतीत हुए और ऐसा लगने लगा कि 1983 के बाद अर्जित विश्वसनीयता की रक्षा के लिए केंद्रीय बैंकों के पास नीतिगत दरें बढ़ाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचा है।
हालांकि इसके साथ यह भी लगने लगा कि पूरी दुनिया में ब्याज दरें बढ़ने से वैश्विक अर्थव्यवस्था के अब तक अज्ञात मोर्चों पर भी मुश्किलें बढ़ जाएंगी। इसके बाद हालात दो कारणों से और बिगड़ गए। रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया और चीन ने दमनकारी उपायों से ‘शून्य कोविड नीति’ लागू करने का प्रयास शुरू कर दिया।
इस अवधि के दौरान अनिश्चितता चरम पर थी और हरेक चुनौती के तार एक दूसरे से उलझे हुए थे। दुनिया जिन समस्याओं (कोविड महामारी, महंगाई, रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन के घटते रसूख) से जूझ रही थी वे अभूतपूर्व थीं, इसलिए उनसे निपटने के तरीके भी हमारे पास तैयार नहीं थे।
जिन रणनीतियों के साथ हम दुनिया में विभिन्न समस्याओं से जूझते आ रहे थे वे भी इन मामलों में विश्वसनीय प्रतीत नहीं हो रहे थे। फरवरी 2022 एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ। इस महीने अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरें बढ़ाने का सिलसिला शुरू कर दिया और रूस ने यूक्रेन पर धावा बोल दिया। इस दौरान भारत से होने वाला निर्यात थम सा गया।
अब हम पीछे मुड़ कर देखने और स्थिति का आकलन करने की स्थिति में आ गए हैं। इस समय दुनिया जिस मोड़ पर है वहां से इतना तो कहा जा सकता है कि अनिश्चितता काफी हद तक कम हो गई है।
परिस्थितियां विपरीत होते देख दुनिया के विकसित देशों के केंद्रीय बैंकों ने महंगाई नियंत्रित करने के लिए अभियान शुरू कर दिया। मोटे तौर पर महंगाई नियंत्रित करने के उपाय कारगर साबित हुए।
मौद्रिक नीति कड़ी करने से कुछ दिक्कत जरूर हुई मगर यह भी सच है कि इस प्रक्रिया में अक्सर ऐसा होता है। विकसित देशों में ऊंची ब्याज दरें क्रिप्टोकरेंसी की मुश्किलों, भारत में स्टार्टअप इकाइयों की दिक्कतों और पिछले एक साल में तकनीकी कंपनियों जैसे एमेजॉन (-35 प्रतिशत), गूगल (-25 प्रतिशत), मेटा (-15 प्रतिशत), ऐपल (-10 प्रतिशत) के शेयरों में आई गिरावट की मुख्य वजह हैं।
वैश्विक अर्थव्यवस्था में हालात सामान्य होने के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं। चीन में उत्पादन सामान्य होने से आपूर्ति व्यवस्था में काफी सुधार हुआ है।
विकसित देशों में श्रम बल अब काम पर लौटने लगे हैं। हालांकि विकसित देशों में ब्याज दरों में अभी और बढ़ोतरी हो सकती है, इसलिए ऐसा लगता है कि 2024 तक महंगाई, ब्याज दरें और परिसंपत्ति कीमतें अधिक सहज स्थिति में जाएंगी।
जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था तो उस समय स्थिति विकट लग रही थी क्योंकि ऐसा लगा कि यूक्रेन आसानी से हथियार डाल देगा।
अगर यूक्रेन पर रूस का पूर्ण नियंत्रण हो जाता तो यह दूसरे युद्धों को जन्म दे सकता था, मसलन चीन भारत या ताइवान के खिलाफ आक्रामक रुख अपना सकता था या रूस पूर्वी यूरोप के दूसरे देशों पर चढ़ाई करने के लिए उत्साहित हो सकता था। मगर यूक्रेन में युद्ध लंबा खिंचने से रूस की कमजोरी साफ दिखने लगी है और यही वजह है कि फरवरी 2022 में उत्पन्न अनिश्चितता भरे हालात अब सुधरने लगे हैं।
अस्त्र-शस्त्रों का प्रदर्शन करना अलग बात है और अपनी सेना एवं युद्ध का साजो-सामान संगठित कर युद्ध करना एक अलग बात है। हालांकि युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है और परिणाम के बारे में फिलहाल निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है।
मगर एक बात स्पष्ट है कि यूक्रेन में रूस की विफलता ने दुनिया में लड़ाई शुरू करने की अन्य देशों की मंशा को जरूर कमजोर कर दिया है।
चीन में राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने अपनी जिद के साथ समझौता कर लिया और ‘शून्य कोविड नीति’ लागू करने के लिए लॉकडाउन लगाने की योजना आगे नहीं बढ़ाई।
कोविड महामारी से बचाव के लिए दूसरे देशों में बने प्रभावी टीकों के बजाय स्वदेशी टीके को लेकर चीन में पैदा हुए राष्ट्रवाद ने वहां की सरकार की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाया है।
चीन में हालात अब भी सामान्य नहीं हैं मगर चीजें बेहतर होने की उम्मीद अब बंधने लगी है। चीन में कमजोर हो चुका शी चिनफिंग प्रशासन अपनी साख बचाने और खोई लोकप्रियता हासिल करने के लिए राष्ट्रवाद का पत्ता खेलता रहेगा मगर यूक्रेन में रूस का अनुभव चीन में सरकार के इन प्रयासों को नियंत्रण में रखेगा।
इन तीनों कारकों से वित्तीय बाजारों को राहत मिली है। शेयर बाजारों में अनिश्चितताओं को दर्शाने वाला ‘वीआईएक्स’ पिछले साल की तुलना में कम है और अमेरिका में ब्याज दरों में अनिश्चितता को दर्शाने वाला सूचकांक ‘मूव’ भी निचले स्तर पर आ चुका है। वृहद आर्थिक हालात के संभलने से वर्ष 2024 से निरंतर वृद्धि का दौर शुरू होने की जमीन तैयार करने में मदद मिलनी चाहिए।
वृहद आर्थिक हालात में बदलाव और इन्हें दुरुस्त करने के लिए किए गए उपायों से सीधे प्रभावित हुए लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है और मैं उनका दर्द समझ सकता हूं। मगर यह भी सच है कि वृहद आर्थिक नीति कुछ इसी तरह काम करती है। दुनिया में मांग-आपूर्ति का संतुलन बिगड़ गया था मगर विकसित देशों में ब्याज दरें बढ़ाने से यह समस्या दूर करने में मदद मिली। विकसित बाजारों में ब्याज दरें बढ़ाने से मांग में कमी एकसमान नहीं आती है और इसका असर कुछ जगहों पर अधिक दिखता है।
कई महत्त्वपूर्ण कारोबारी खंडों जैसे रियल एस्टेट, कंप्यूटर प्रोग्राम, सलाहकार, वरिष्ठ प्रबंधक और कंपनी के मूल्यांकन आदि में कीमतें वाजिब दिख रही हैं। पिछले कुछ वर्षों में कई कच्चे माल के दाम पहुंच से बाहर हो गए थे और ग्राहकों के भुगतान करने की क्षमता कमजोर पड़ गई थी और शेयरों पर प्रतिफल भी कमजोर पड़ गया था।
इन परिस्थितियों के दौरान कारोबारी रणनीति बनाने के लिए शेयर मूल्यांकन तय करने में एक जादुई सोच की जरूरत थी। सभी को पता था कि ऐसा लंबे समय तक नहीं चलेगा इसलिए अफरा-तफरी की स्थिति पैदा हो गई और लोग रकम निकाल कर भागने लगे।
मगर अब शेयरों की कीमतों में सुधार के बाद उन क्षेत्रों में कारोबारी योजनाएं तैयार करना संभव हो गया है जहां कच्चे माल की लागत, शेयरों पर प्रतिफल कारोबार के मूल्यांकन में अच्छा तालमेल दिख रहा है।
प्रत्येक आर्थिक हलचल के कुछ अच्छे परिणाम निकलते हैं। भारत में स्टार्टअप इकाइयों की बाढ़ आने के बाद अब कंप्यूटर इंजीनियरिंग क्षमता बढ़ गई है। भारत में ऐसे किशोर दुनिया के किसी भी हिस्से से ज्यादा हैं जो गूगल फ्लटर के बारे में अधिक जानते हैं।
एक दशक पहले आकर्षक एवं महंगे दिखने वाले कारोबारी समाधान (क्लाउड आधारित डायनैमिक साइजिंग, एपीआई आधारित कनेक्शन आदि) भारत में विभिन्न कंपनियों के लिए अब सहज उपलब्ध हो रहे हैं।
कारोबार स्थापित करने का यह एक अच्छा समय है। इस समय कच्चे माल की कीमतें पूर्व की तुलना में सस्ती हैं। इस अवसर का लाभ उठाकर गुणवत्तापूर्ण उत्पादन कर शानदार कामकाजी मुनाफा मार्जिन अर्जित किया जा सकता है।
(लेखक एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता हैं)