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भारतवंशी अमेरिकियों की मजबूत स्थिति

अमेरिका के साथ रिश्तों को मजबूती प्रदान करने में भारतवंशी अमेरिकियों का बढ़ता प्रभाव बहुत अधिक मददगार साबित हो सकता है। बता रहे हैं

Last Updated- December 09, 2024 | 9:51 PM IST
Strong position of Indian-Americans भारतवंशी अमेरिकियों की मजबूत स्थिति

स्टैनफर्ड विश्वविद्यालय में 2022 में टाटा के सह प्रायोजन वाले एक इंडिया कॉन्फ्रेंस में अमेरिका की पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार कोंडोलीजा राइस ने सन 2000 के राष्ट्रपति चुनाव (उस समय जॉर्ज डब्ल्यू बुश राष्ट्रपति चुनाव लड़ रहे थे) की एक चकित करने वाली कहानी सुनाई। राष्ट्रपति के उम्मीदवार यानी बुश जूनियर को जब उन्होंने और उनकी टीम ने महत्त्वपूर्ण देशों की जानकारी दी तो भारत का नाम नहीं लिया गया। इस पर बुश ने पलटकर पूछा, ‘भारत का क्या?’ साथ ही उन्होंने कहा कि अपने निर्वाचन क्षेत्र टेक्सस में वह कई कुशल भारतीय चिकित्सकों, वकीलों और इंजीनियरों से मिल चुके हैं। उन्होंने राइस को भारत के बारे में जानकारी लेने के लिए कहा। भारतीय मूल के अमेरिकियों से प्रभावित होकर बुश को भारत में जो दिलचस्पी हुई थी, उसके कारण ही आगे चलकर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ उनका परमाणु समझौता हुआ। भारतीय मूल के अमेरिकियों ने ही उस समझौते को अंतिम रूप देने के लिए सीनेटरों तथा सांसदों को मनाया। तब से ही अमेरिका-भारत संबंध बेहतर होते जा रहे हैं।

अमेरिका में 1970 में करीब 5 लाख भारतीय रहते थे और बुश के राष्ट्रपति बनने तक 2000 मे यह संख्या बढ़कर 16 लाख हो गई थी। आज 50 लाख से अधिक भारतीय अमेरिकी हैं, जो वहां की आबादी का 1.4 फीसदी है। भारत के बाहर किसी भी अन्य देश में इससे ज्यादा भारतीय नहीं रहते। उनका आंकड़ा ही नहीं बढ़ा बल्कि उनकी कामयाबी भी अद्भुत रही है। भारतीय अमेरिकियों की औसत आय 2022 में 1.45 लाख डॉलर के करीब है, जो श्वेत आबादी की औसत आय से 50 फीसदी अधिक है। यहूदियों तथा दूसरे एशियाई देशों से आए लोगों के मुकाबले तो यह और भी अधिक है। वे सबसे शिक्षित भी हैं और उनमें से 82 फीसदी के पास डिग्री है। अमेरिका में नौ फीसदी चिकित्सक भारतीय हैं, शीर्ष आईटी कंपनियों को भारतीय चला रहे हैं और हाल ही में उन्होंने राजनीति में भी उल्लेखनीय प्रगति की है। भारतीय मूल की कमला हैरिस सीनेटर बनीं, उप राष्ट्रपति बनीं और फिर राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनीं। इसी तरह निकी हेली साउथ कैरोलाइना की गवर्नर बनीं, संयुक्त राष्ट्र में राजदूत बनीं और फिर रिपब्लिकन पार्टी से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार भी बनीं। उषा चिलुकुरी वेंस अगली सरकार में अमेरिका की सेकंड लेडी (उपराष्ट्रपति की पत्नी) होंगी।

हार्पर कॉलिंस से 2024 में प्रकाशित मीनाक्षी अहमद की शानदार पुस्तक ‘इंडियन जीनियस: द मीटियॉरिक राइज ऑफ इंडियंस इन अमेरिका’ में हेली समेत 19 सफल भारतीय अमेरिकियों का जीवन परिचय दिया गया है और मीनाक्षी मानती हैं कि इन सभी ने अलग रास्तों पर चलकर असाधारण सफलता हासिल की है। वह तीन वर्गों की बात करती हैं: टेकीज (प्रौद्योगिकी क्षेत्र से जुड़े लोग), मेडिसिन मेन (चिकित्सा से जुड़े लोग) और इन्फ्लुएंशर्स। टेकीज सबसे बड़ा वर्ग है, जिसमें कंवल रेखी, सुहास पाटिल, विनोद खोसला, संतोष मेहरोत्रा और विनोद धाम हैं। उनके साथ बकौल मीनाक्षी तीन ‘कंपनी मेन’: शांतनु नारायण, सत्य नडेला और निकेश अरोड़ा भी इसमें शामिल हैं।

रेखी का सबसे अहम योगदान था टीआईई ग्लोबल जैसे बेहतरीन समूह की स्थापना, जो भारतीय मूल के अमेरिकियों में उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया था। आज पूरी दुनिया में इसके 61 चैप्टर हैं। मेडिसिन मेन में दीपक चोपड़ा, अतुल गवांडे, सिद्धार्थ मुखर्जी, अब्राहम वर्गीज और दो बार अमेरिका के सर्जन जनरल रह चुके विवेक मूर्ति को जगह दी गई है।

अंतिम वर्ग यानी इन्फ्लुएंसर्स में चुनाव जीत चुके दो राजनेता निकी हेली और रो खन्ना के साथ नील कात्याल जैसे प्रमुख संवैधानिक अधिवक्ता और टीवी प्रस्तोता फरीद जकारिया शामिल हैं। मीनाक्षी अहमद अद्भुत सफलता हासिल करने वाली दो बहनों चंद्रिका टंडन और इंद्रा नूयी को भी अपनी पुस्तक में जगह देती हैं। नूयी पेप्सिको की सीईओ रह चुकी हैं और टंडन मैकिंजी में पार्टनर रहीं, अपनी बैंक पुनर्गठन कंपनी चलाई, संगीत के लिए दो बार एमी पुरस्कार में नामित हुईं और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में टंडन स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग की बुनियाद भी रखी।

भारतीय अन्य क्षेत्रों में भी कामयाब रहे हैं। उन्होंने नोबेल पुरस्कार जीते हैं। चिकित्सा में हर गोविंद खुराना, भौतिकी में सुब्रमण्यन चंद्रशेखर, रसायन में वेंकट रामकृष्णन और अर्थशास्त्र में अमर्त्य सेन और अभिजित बनर्जी को नोबेल से सम्मानित किया गया। ऑस्कर के लिए नामित फिल्मकार मनोज नाइट श्यामलन, अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला, विश्व बैंक के प्रेसिडेंट अजय बंगा, गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई और लेखिका झुम्पा लाहिड़ी भी अपनी छाप छोड़ने वाले भारतीयों में शामिल हैं।

इतने सारे भारतीय अमेरिकी कामयाब कैसे हुए? किताब बताती है कि इनमें से अधिकतर किसी खास पृष्ठभूमि से नहीं आए मगर शिक्षा, संकल्प, अपने कौशल और भावनाओं के बल पर इस मुकाम तक पहुंचे। कई ने आईआईटी और एम्स जैसे संस्थानों में किफायती मगर बेहतरीन शिक्षा हासिल की। वे भारत में भी फल-फूल सकते थे लेकिन उनकी प्रतिभा को असली कामयाबी अमेरिका में मिली, जहां योग्यता की कद्र है और जोखिम लेने को प्रोत्साहित किया जाता है।

इसके उलट जैसा ऐपल के सह-संस्थापक स्टीव वोजनियाक पुस्तक में कहते हैं, भारत में नवाचार और जोखिम को बढ़ावा नहीं दिया जाता। अपेक्षाकृत कामयाब भारतीय आईटी कंपनियां भी शोध एवं विकास पर बहुत कम पैसे खर्च करती हैं और उनके नाम पर कोई वैश्विक नवाचार नहीं है। यह संस्कृति कुछ हद तक बदल रही है और हुरुन के ग्लोबल यूनिकॉर्न इंडेक्स में भारत को अमेरिका तथा चीन के बाद तीसरा स्थान मिला है।

हालांकि भारतीय अमेरिकियों के लिए सब कुछ अच्छा नहीं है। अमेरिका में अवैध प्रवासियों की तीसरी सबसे बड़ी संख्या भारत से ही है। वहां करीब 8 लाख अवैध भारतीय हैं। वे अपने परिवार का पैसा बहाकर या कर्ज लेकर बेहद खतरनाक तरीकों से अमेरिका पहुंच रहे हैं। उनमें से कई तो रास्ते में ही जान गंवा देते हैं और तमाम मुश्किलें झेलकर जो अमेरिका पहुंचते भी हैं, उनमें से कई का खेतों, मोटेल्स या रेस्तरां में शोषण होता है। ऐसे अवैध तरीकों से आने वालों पर ट्रंप प्रशासन सख्ती बरतेगा। वह मेक्सिको और कनाडा को धमकी दे ही चुके हैं कि अगर उन्होंने अपनी सीमाओं पर काबू नहीं किया तो उनके सामान पर 25 फीसदी शुल्क लगाया जाएगा।

1980 और 1990 के दशक में कई भारतीय चिकित्सक और इंजीनियर अमेरिका तथा अन्य अमीर देशों में बस गए थे। तब प्रतिभा पलायन पर चिंता जताई जा रही ती। मगर अब दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ रहा है और भारतीय वहां से बड़ी मात्रा में धन भेज रहे हैं। साथ दोनों देशों के संबंध मजबूत होने के साथ ही भारत के लोग न केवल बड़ी मात्रा में धन अपने देश भेज रहे हैं।

साथ ही वे भारतीय स्टार्टअप और सामाजिक कार्यक्रमों में भी निवेश कर रहे हैं, जिससे चिंता खत्म हो गई है। बल्कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने तो 2003 में प्रवासी भारतीय सम्मान भी शुरू कर दिया, जिसका मकसद विदेशों में रहने वाले भारतीयों के योगदान को सम्मानित करना था। महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने की स्मृति में हर साल 9 जनवरी को यह पुरस्कार दिया जाता है।

अब भारत विकास क्रम में आगे बढ़ रहा है तो कुछ ही लोग भारत छोड़ना चाहेंगे और ज्यादा से ज्यादा संख्या में भारतीय अमेरिकी अपने देश लौटकर उसे अपने ज्ञान तथा विशेषज्ञता का फायदा देना चाहेंगे। छोटे पैमाने पर यह सिलसिला शुरू भी हो चुका है। परंतु जब तक अमेरिका कानूनी तरीके से आने वाले प्रवासियों के मामले में भी सख्ती नहीं बरतता तब तक अमेरिका में भारतीयों की तादाद बढ़ती जाएगी। उनकी बढ़ती संपदा, प्रभाव और राजनीतिक कद भारत के बारे में अमेरिकी नीतियां तय करने में अहम भूमिका निभाएंगे। वे उस रिश्ते को भी मजबूत करेंगे, जिसे जॉर्ज बुश ने 2000 में पहचाना और बताया था।

First Published - December 9, 2024 | 9:45 PM IST

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