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Opinion: यूपी के आर्थिक उभार को धार्मिक पर्यटन की धार

उत्तर प्रदेश के आर्थिक उभार में धार्मिक पर्यटन की भी अहम भूमिका होगी और यह एक स्वागत योग्य घटनाक्रम है। इस विषय में विस्तार से जानकारी प्रदान कर रहे हैं आर जगन्नाथन

Last Updated- January 05, 2024 | 9:32 PM IST
Ram Mandir

सन 1980 के दशक के उत्तरार्द्ध से ही भारत नियति के साथ एक नए साक्षात्कार की राह पर है। मंडल राजनीति के उभार और राम जन्मभूमि आंदोलन की इसमें अहम भूमिका रही है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 1998 से 2004 के बीच राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के पहले कार्यकाल के दौरान दोनों के बीच की संपूरकता के चरम पर पहुंचने का पूरा लाभ उठाया।

हालांकि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के कार्यकाल के दौरान इसकी धार कुछ कम हुई लेकिन नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इसने एक बार फिर गति पकड़ी है। नियति से दूसरा साक्षात्कार उस समय पहली बड़ी मंजिल को छुएगा जब आगामी 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर की प्रतिष्ठा होगी।

इस आलेख में हम अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के आर्थिक और सामाजिक प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करेंगे जो इस प्राचीन शहर की तात्कालिकता से परे होगा। आर्थिक प्रभाव महत्वपूर्ण होगा। इसका संबंध उन 85,000 करोड़ रुपयों के अधोसंरचना निवेश से नहीं है जिसकी योजना अयोध्या और उसके आसपास बनाई गई है। इसमें करीब 1,200 एकड़ में विस्तारित एक नए शहर की योजना भी शामिल है।

अगर भारत को अगले कुछ वर्षों में 5 लाख करोड़ डॉलर की और 2030 के मध्य तक 10 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना है तो यह काम केवल महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, दिल्ली-हरियाणा और तेलंगाना जैसे राज्यों के भरोसे नहीं हो सकता। इस चुनौती पर उत्तर प्रदेश और बिहार को भी खरा उतरना होगा।

राज्य सकल घरेलू उत्पाद के मामले में उत्तर प्रदेश शीर्ष पांच राज्यों में शामिल है लेकिन पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च और सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अनुसार अनुमानित प्रति व्यक्ति आय के मामले में 2023-24 में यह अंतिम पांच राज्यों में रहा। शीर्ष पांच राज्यों में महाराष्ट्र और तमिलनाडु ने इस वर्ष 39 लाख करोड़ रुपये और 28 लाख करोड़ रुपये का सकल घरेलू उत्पाद रहने का अनुमान जताया है।

अगले तीन राज्यों गुजरात, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश का आंकड़ा 24-25 लाख करोड़ रुपये का है। उत्तर प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय 83,000 रुपये के निराशाजनक स्तर पर है जो राष्ट्रीय औसत से तो कम है ही पड़ोसी हिंदी भाषी राज्य हरियाणा से भी कम है।

अगले कुछ वर्ष में अयोध्या प्रमुख धार्मिक केंद्र के रूप में उभरेगा और उत्तर प्रदेश के लिए वृद्धि और आय का नया वाहक बनेगा। प्रदेश का पश्चिमी हिस्सा पहले ही स्टार्ट अप और विनिर्माण का केंद्र है। इसका श्रेय नोएडा को जाता है जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का हिस्सा है। बीते कुछ दशकों में गुरुग्राम और हरियाणा ने दिल्ली से नजदीकी का फायदा उठाया है और आने वाले दशक नोएडा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हैं। इसकी एक वजह राज्य की राजनीतिक स्थिरता है तो दूसरी वजह एक्सप्रेस वे तथा नए हवाई अड्‌डों की स्थापना।

उत्तर प्रदेश में आर्थिक और राजनीतिक केंद्र पूर्व की ओर खिसक रहा है। प्राचीन भारत में भी अयोध्या और पाटिलीपुत्र (वर्तमान पटना) केंद्र थे। दिल्ली-आगरा और फतेहपुर सीकरी के पर्यटन के स्वर्णिम त्रिकोण के बाद अब पूर्व में अयोध्या-प्रयागराज और काशी नए त्रिकोण के रूप में उभरेंगे।

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अयोध्या की क्षमता को बढ़ाचढ़ाकर पेश करना मुश्किल है। इसलिए नहीं कि भगवान राम के साम्राज्य की राजधानी का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। मेरा अनुमान है कि अगर सऊदी अरब केवल मक्का और मदीना के रूप में दो मुस्लिम धार्मिक शहरों के जरिये तेल से इतर पर्यटन आधारित व्यवस्था कायम कर सकता है तो अयोध्या में यह क्षमता है कि वह एक दशक के भीतर दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र बन सके।

मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि सऊदी अरब का पर्यटन जहां दुनिया भर के मुस्लिमों पर निर्भर है जो हज और उमरा के लिए आते हैं (सभी मुस्लिम इतने सक्षम नहीं हैं) वहीं अयोध्या दुनिया के सबसे बड़े हिंदू आबादी वाले देश की धार्मिक जरूरतों का ध्यान रखेगा। भारतीयों की बड़ी आबादी को न
बाहर जाना होगा न ही बहुत अधिक खर्च करना होगा।

सऊदी अरब में सालाना करीब 1.6 से 1.7 करोड़ पर्यटक आते हैं। अयोध्या में हर महीने करीब 45 लाख पर्यटकों यानी सालाना 5.4 करोड़ पर्यटकों के आने की उम्मीद है। यह तिरुपति के सालाना तीन करोड़ पर्यटकों से अधिक होगा। अगर हम मान लें कि प्रति व्यक्ति 2,500 रुपये खर्च किए जाएंगे तो भी यह राशि 13,500 करोड़ रुपये से अधिक होगी। यह न्यूनतम अनुमान है क्योंकि कई भारतीय और विदेशी पर्यटक इसकी 10 से 20 गुना तक राशि खर्च करेंगे यानी यह राशि करीब 20,000 करोड़ रुपये तक जा सकती है।

विश्व यात्रा एवं पर्यटन परिषद का अनुमान है कि सऊदी अरब के जीडीपी में पर्यटन की हिस्सेदारी 2032 तक बढ़कर 17 फीसदी हो जाएगी जबकि भारत के जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी फिलहाल केवल सात फीसदी है। उत्तर भारत में धार्मिक पर्यटन
बढ़ने के साथ यह हिस्सेदारी तेजी से बढ़ सकती है।

ट्रैवेल एजेंट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक 2028 या 2029 तक पर्यटन क्षेत्र देश के जीडीपी में 512 अरब डॉलर का योगदान करेगा और इस दौरान 5.8 करोड़ रोजगार तैयार होंगे। अगर उत्तर प्रदेश में अयोध्या के साथ-साथ काशी और मथुरा में भी धार्मिक पर्यटन आरंभ हो जाता है तो यह आंकड़ा बढ़ भी सकता है।

कोविड के पहले देश के जीडीपी में पर्यटन का योगदान सात फीसदी था जिसे बहुत आसानी से बढ़ाया जा सकता है। इस दिशा में उत्तर प्रदेश अग्रणी भूमिका निभा सकता है। किसी न किसी मोड़ पर उसे महाराष्ट्र के बाद देश की दूसरे नंबर की अर्थव्यवस्था बनना होगा। वह अपने जननांकीय लाभ और धार्मिक आकर्षण की बदौलत ऐसा कर सकता है।

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इससे सामाजिक सौहार्द बढ़ाने में भी मदद मिलेगी जो पिछले कुछ समय में राम जन्मभूमि को लेकर उपजे हिंदू-मुस्लिम संघर्ष तथा काशी और मथुरा को लेकर कानूनी कार्रवाई से बिगड़ा है। वास्तव में हिंदू-मुस्लिम रिश्तों को असली नुकसान अयोध्या मुद्दे के कारण नहीं बल्कि वामपंथी इतिहासकारों के कारण हुआ जिन्होंने इस्लामिक शासन के दौरान मंदिरों को तोड़े जाने को लेकर झूठा कथानक गढ़ने का प्रयास किया। इसके चलते ही बाबरी मस्जिद के नीचे हिंदू मंदिर की मौजूदगी को लेकर नकार का भाव पैदा हुआ। यही बात काशी और मथुरा पर भी लागू होती है।

उम्मीद की जानी चाहिए कि आम हिंदू और मुस्लिम इस बात को समझेंगे कि अतीत में इस्लाम को मानने वालों द्वारा मूर्तियां तोड़ने को नकार कर सौहार्दपूर्ण रिश्ते नहीं बन सकते। सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 370 के मामले में जिस प्रकार के सत्य और सुलह आयोग की बात कही है वह उत्तर प्रदेश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। खासकर यह देखते हुए कि उत्तर प्रदेश के मुसलमान मोहम्मद अली जिन्ना की पाकिस्तान परियोजना के केंद्र में थे। विभाजन का सबसे अधिक समर्थन उन इलाकों से हुआ जो आज उत्तर प्रदेश में आते हैं।

अयोध्या मामले का निर्णय देने वाले सर्वोच्च न्यायालय के पीठ को शायद अहसास हो गया था कि हिंदुओं और मुसलमानों को ऐतिहासिक अविश्वास से पार पाना होगा। यही वजह है कि उन्हें लगा कि मंदिर और मस्जिद के लिए अलग-अलग स्थान आवंटित करने के साथ समय का अंतराल बेहतर काम करेगा। अगर अयोध्या के निकट प्रस्तावित नई मस्जिद भी योजना के मुताबिक बनती है तो वहां भी बड़ी तादाद में श्रद्धालु पहुंचेंगे और वह भी उत्तर प्रदेश के आर्थिक उभार में मदद करेगी।

First Published - January 5, 2024 | 9:32 PM IST

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