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लेखक : आर जगन्नाथन

आज का अखबार, लेख

बड़े बैंक चाहिए या अधिक फुर्तीले बैंक? तकनीकी बदलाव के बीच बदलाव के लिए तैयार सेक्टर

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि सरकार भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के साथ इस बारे में चर्चा कर रही है कि विलय की पिछली प्रक्रिया में बाकी रह गए छह सरकारी बैंकों का समेकन किया जाए। इन बैंकों में बैंक ऑफ इंडिया जैसा बड़ा बैंक भी शामिल है और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, […]

आज का अखबार, लेख

आज की दुनिया में ट्रंप का जी2 सपना महज कागजी, वैश्विक प्रभाव से रहित

चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ अपनी हालिया बैठक में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने दो महाशक्तियों (जी2) के नेतृत्व वाली एक नई विश्व व्यवस्था की संभावना जताई। उनका कहना यह था कि ये दो महाशक्तियां मिलकर दुनिया पर राज कर सकती हैं और यह तय कर सकती हैं कि सभी के लिए क्या […]

आज का अखबार, लेख

विकास के लिए जरूरी: भारत के अरबपतियों का निवेश और लाखपतियों की वापसी

अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के दोबारा सत्ता संभालने और दो अंतहीन युद्धों (यूक्रेन और गाजा में) के बाद व्यापार, निवेश और सुरक्षा के लिए बाहरी हालात बिगड़ गए हैं। इन परिस्थितियों के बीच भारत को विकास और रोजगार के अवसर तैयार करने होंगे। इसकी तत्काल जरूरत इसलिए भी आन पड़ी है क्योंकि निर्यात जल्द संभलने […]

आज का अखबार, लेख

कॉरपोरेट जगत को नहीं बनाया जाना चाहिए निशाना, भरोसा ही उन्हें आगे बढ़ने में मदद करेगा

भारतीय कारोबारी जगत ने कई नाकामियों का सामना किया है, इसके बावजूद एक बात जो नहीं होनी चाहिए वह है राजनीतिक दलों या बुद्धिजीवियों द्वारा उन पर कीचड़ उछालना या उन्हें गलत ठहराना। जब बड़े राजनेता उन पर हमला करते हैं (इस समय राहुल गांधी और अतीत में अरविंद केजरीवाल ऐसा कर चुके हैं) तो […]

आज का अखबार, लेख

भारत की कूटनीति को दिखावे से आगे बढ़कर ठोस नीतियों पर ध्यान देना होगा

भारत एक ऐसा देश है जो जल्दी ही जापान को पछाड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है और शायद इस दशक के अंत तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था। परंतु कूटनीति के मामले में हम अपनी क्षमता से कमतर प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी को जहां दुनिया के उभरते नेता के […]

आज का अखबार, लेख

वोडाफोन संकट: ठोस उपायों की दरकार, विचारधारा की नहीं

राजनीति, अर्थव्यवस्था और समाज जब ज्यादा से ज्यादा पेचीदा और विविधता भरे होते जा रहे हैं तब नीति निर्माण के लिए वैचारिक चश्मे के इस्तेमाल का खास फायदा नहीं रह गया है। आज दुनिया के किसी भी देश को पूंजीवादी या साम्यवादी नहीं कहा जा सकता क्योंकि कोई भी देश इनकी मूल परिभाषा पर खरा […]

आज का अखबार, लेख

बिगड़ते माहौल में भारत के रक्षा क्षेत्र की दुविधाएं 

कश्मीर के पहलगाम में निर्दोष लोगों की हत्या और ऑपरेशन सिंदूर के बाद, भारत को एक कठोर वास्तविकता का सामना करना पड़ रहा है। भले ही हमने वह हासिल कर लिया जो करने का लक्ष्य रखा था, यानी पाकिस्तान आतंकवाद की भारी कीमत चुकाए लेकिन हमारे नीचे की जमीन भी खिसकी है। चीन ने अब […]

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जाति जनगणना और जातीय पहचान

विक्टर ह्यूगो का एक मशूहर कथन है- ‘उस विचार को कोई नहीं रोक सकता है जिसका वक्त आ चुका हो।’ इस कथन के साथ दिक्कत यह है कि यह हमें इसके आगे की बात नहीं बताता। कोई विचार अगर एक बार आजमाने के बाद उतना अच्छा नहीं साबित होता तब? यह भी कि किसी बुरे […]

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राजनीति और सत्ता का स्थानीयकरण जरूरी

ट्रंप के दौर में मची उथलपुथल ने हर देश को यह देखने का मौका दिया है कि उसकी आर्थिक नीतियां और सुधार अब भी सार्थक हैं या नहीं। कई टीकाकारों ने सरकार से अपनी संरक्षणवादी मानसिकता पर दोबारा विचार करने और कम शुल्क तथा अधिक होड़ के लिए तैयार रहने का आग्रह किया है। इस […]

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पश्चिम में जीवन: आधी हकीकत आधा फसाना

अरमान और उनसे जन्मे स्वप्न बहुत विचित्र होते हैं। वे इंसान को मुश्किल और कई बार तो असंभव या अवांछित काम करने के लिए कहते हैं चाहे लक्ष्य हकीकत से कोसों दूर मरीचिका की तरह ही क्यों न हो। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अवैध भारतीय प्रवासियों को हथकड़ी-बेड़ी में जकड़कर सेना के जहाज से […]

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