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विकास के लिए जरूरी: भारत के अरबपतियों का निवेश और लाखपतियों की वापसी

भारत में निवेश करने के लिए देश के अरबपतियों को वापस लाने और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने में अमीर लोगों को साथ लेना सरकार की प्राथमिकता सूची में होना चाहिए

Last Updated- October 03, 2025 | 12:10 AM IST
Indian Rich People

अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के दोबारा सत्ता संभालने और दो अंतहीन युद्धों (यूक्रेन और गाजा में) के बाद व्यापार, निवेश और सुरक्षा के लिए बाहरी हालात बिगड़ गए हैं। इन परिस्थितियों के बीच भारत को विकास और रोजगार के अवसर तैयार करने होंगे। इसकी तत्काल जरूरत इसलिए भी आन पड़ी है क्योंकि निर्यात जल्द संभलने वाला नहीं है और रक्षा आवश्यकताओं के लिए घरेलू स्तर पर अधिक निवेश की जरूरत होगी। इस कार्य में घरेलू पूंजी स्रोतों की अहम भूमिका होगी।

भारत के खिलाफ ट्रंप के कदम थमते नहीं दिख रहे हैं और रोज नई-नई मांगें रखी जा रही हैं। इसकी शुरुआत भारत से व्यापार में रियायत की मांगों (जिनमें ज्यादातर मान ली गईं) से हुई और फिर रूस से तेल खरीदने पर शुल्क लगा लगा दिया गया। इसके बाद ब्रांडेड दवाओं पर 100 फीसदी और अमेरिका के बाहर बनी फिल्मों पर भी (नए एच-1बी वीजा पर 1,00,000 डॉलर शुल्क की तो बात ही नहीं करना) शुल्क लगा दिए गए। इन बातों से यह निष्कर्ष निकल रहा है कि अमेरिका के कदम केवल एक व्यक्ति की सनक का परिणाम नहीं है बल्कि कहीं न कहीं पूरा अमेरिकी तंत्र चुपचाप इस कार्रवाई में शामिल हो गया है।

अब यह स्पष्ट है कि अमेरिका भारत को भविष्य के खतरे के रूप में देखता है और आर्थिक तरक्की में मदद नहीं करना चाहेगा। यही बात चीन पर भी लागू होती है। मौजूदा महाशक्ति और उसका प्रतिद्वंद्वी देश चीन दोनों ही भारत की आर्थिक रफ्तार को धीमा करने की कोशिश करने जा रहे हैं। भारत के उदय में किसी दूसरे वैश्विक गठबंधनों की भूमिका होगी और इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हमारी अपनी अंदरूनी ताकत इस कार्य में निर्णायक भूमिका निभाएगी।
हमें तकनीक (आर्टिफिशल इंटेलिजेंस, आदि), रक्षा, बुनियादी ढांचे, विनिर्माण और यहां तक कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और किफायती स्वास्थ्य सेवाओं जैसे बुनियादी क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में दीर्घकालिक पूंजी की आवश्यकता होगी।

राजकोषीय खपत को बढ़ावा देने के उपायों से अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने से घरेलू निवेश बढ़ सकता है मगर हम केवल वेंचर कैपिटल और निजी पूंजी (प्राइवेट इक्विटी) पर निर्भर नहीं रह सकते हैं। वास्तविक दीर्घकालिक पूंजी केवल सरकार और धनाढ्य यानी अमीर घरेलू निवेशकों से ही आ सकती है। उत्पादन-संबंधित प्रोत्साहन (पीएलआई) और डीप टेक एवं आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) क्षमताओं के निर्माण के लिए अन्य सब्सिडी के आवंटन से राजकोषीय बोझ बढ़ेगा। सुरक्षा हालात को देखते हुए जहाज, लड़ाकू विमानों और युद्धपोतों के निर्माण पर भारी निवेश की जरूरत होगी। इनके अलावा भारत को ईमेल, मैप और सोशल मीडिया जैसे बुनियादी उपकरणों की जरूरत है। इन सभी के साथ साइबर सुरक्षा में भी भारी निवेश की आवश्यकता है।

कई लोग सोचेंगे कि इस भारी भरकम निवेश का एक हिस्सा भारत के अरबपतियों की तरफ से क्यों नहीं आ रहा है, जिनकी सामूहिक संपत्ति अब नवीनतम ‘हुरुन ग्लोबल रिच लिस्ट, 2025 के अनुसार 1 लाख करोड़ डॉलर से अधिक है। भारत में 284 अरबपति हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि उनमें से अधिकांश की संपत्ति भारत में अधिक जरूरी क्षेत्रों में निवेश हो रही है या नहीं। इससे भी अफसोस की बात यह है कि भारत से धनाढ्य निवेशक तेजी से पलायन कर रहे हैं। नवीनतम ‘हेनली प्राइवेट वेल्थ माइग्रेशन रिपोर्ट’ के अनुसार इन अमीर निवेशकों में 3,500 इस साल भारत छोड़ देंगे। हालांकि, अच्छी बात यह है कि 2023 और 2024 की तुलना में यह सिलसिला कम हुआ है जब ये आंकड़े क्रमशः 5,100 और 4,300 थे। यह पश्चिमी देशों में बढ़ते आप्रवासन विरोधी भावना या मातृभूमि के लिए उभरे प्रेम के कारण हुआ है, यह फिलहाल किसी को नहीं मालूम है। जब आप भारत में दीर्घकालिक पूंजी की भारी भरकम जरूरत और भारतीय कंपनियों के बड़े प्रवर्तकों की पूंजी का एक बड़ा हिस्सा निवेश कंपनियों में हिस्सेदारी के रूप में अटके रहने पर विचार करते हैं तो तीन सवाल खड़े होते हैं।

पहला सवाल, प्रवर्तक देश के लिए अपने व्यक्तिगत धन (कंपनियों के पास उपलब्ध नकदी के उलट) का अधिक इस्तेमाल क्यों नहीं कर रहे हैं? दूसरा सवाल, क्या कारण है कि धनाढ्य निवेशक बड़ी संख्या में देश छोड़कर विदेश जा रहे हैं? क्या वे भारत में गुणवत्ता पूर्ण जीवन-शैली के अभाव में विदेश की ओर रुख कर रहे हैं? तीसरा सवाल, नकदी से भरपूर सूचीबद्ध सॉफ्टवेयर सेवा कंपनियां निवेशकों को भुगतान में आंशिक रूप से कमी कर इससे बचने वाली रकम दीर्घ अवधि के लिए निवेश क्यों नहीं कर रही हैं? हमारे अरबपतियों के पास न केवल अपने उत्तराधिकारियों के लिए बहुत सारा पैसा छोड़ने के लिए पर्याप्त संपत्ति है बल्कि दीर्घ अवधि की परियोजनाओं में निवेश करने के लिए भी अरबों रुपये उपलब्ध हैं। ये निवेश जोखिम भरे हो सकते हैं मगर सफल होने पर और भी अधिक संपत्ति निर्माण करने की क्षमता रखते हैं। हमारे पास इन सवालों के उत्तर नहीं हैं, लेकिन स्पष्ट रूप से सरकार को यह पता करने की जरूरत है कि वह इस वास्तविकता को पलटने के लिए क्या कर सकती है।

सबसे पहले, अरबपतियों के लिए इतनी अधिक संपत्तियां व्यक्तिगत शेयरधारिता में उलझा कर रखना समझ परे हैं जिनका उपयोग निवेश के लिए नहीं किया जा रहा है। प्रबंधन नियंत्रण महत्त्वपूर्ण है, लेकिन निश्चित रूप से निष्क्रिय कागजी संपत्ति अपने पास रखना शायद ही कोई समझदारी वाला कदम है। मुकेश अंबानी के पास रिलायंस इंडस्ट्रीज में 49 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी है जिसका मूल्य (यानी, उनका हिस्सा) मौजूदा बाजार मूल्यों पर 9 लाख करोड़ रुपये से अधिक होगा। डीप टेक या दीर्घ अवधि की परियोजनाओं में निवेश के लिए इस संपत्ति का 10-20 फीसदी हिस्सा उपयोग करने से कंपनी पर उनके नियंत्रण में आखिर कितना फर्क आ जाएगा? यदि आवश्यक हो तो सरकार उनके प्रबंधन के लिए संस्थागत समर्थन की गारंटी दे सकती है बशर्ते कंपनी कुछ परिचालन मानकों को पूरा करे। जो बात अंबानी पर लागू होती है वही गौतम अदाणी, टाटा या बिड़ला या बड़ी सूचना-तकनीकी कंपनियों (जिनके पास पहले ही काफी नकदी है) पर भी लागू होती है। जहां तक अमीर निवेशकों यानी एचएनआई को वापस लाने का सवाल है तो मेरा मानना है कि उन्हें भारत में निवेश करने में कोई समस्या नहीं है, लेकिन यहां रहने से उनकी जीवन-शैली पर असर होता है। यहां शहरी व्यवस्था उम्दा नहीं है और सरकारी अधिकारियों एवं नियामकों के साथ निपटने में रोज परेशानी आती है।

जब उच्च-मध्य वर्ग के लोग खराब व्यवस्था से निपटने के लिए पुख्ता सुरक्षा-व्यवस्था वाली सोसाइटी में रहने का तरीका खोज सकते हैं तो अमीर लोग ऐसा क्यों नहीं कर सकते हैं? मुझे लगता है कि रोज-रोज पेश आने वाली समस्याएं उन्हें दूर जाने पर विवश करती हैं, खासकर अगर उन्हें कोई व्यवसाय चलाना है तो जबरन वसूली, साधारण अनुरोधों के लिए रिश्वत की मांग और कर व पुलिस अधिकारियों का मनमाना व्यवहार उनके जीवन को कठिन बना देता है।

उन्हें सभी तरह की सुविधाएं देने के दो संभावित तरीके इस्तेमाल में लाए जा सकते हैं। एक तरीका दोहरी नागरिकता की सीमित अवधि की पेशकश है जिसके तहत वे यह तय कर सकते हैं कि स्थायी रूप से रहने के लिए भारत का चयन किया जाए या नहीं। दूसरा तरीका, उन्हें न केवल पूरी सुरक्षा वाली रहन-सहन व्यवस्था दी जाए बल्कि सरकारी स्तर पर व्यक्तिगत सहायता या जीवन-शैली प्रबंधन जैसी सेवाएं प्रदान की जा सकती हैं। इन सेवाओं के अंतर्गत सरकार और नियामक अधिकारियों के साथ उनके व्यवसाय एवं व्यक्तिगत जरूरतों को आधिकारिक तौर पर नियुक्त एजेंटों के माध्यम से प्रबंधित किया जा सकता है।

उदाहरण के लिए आपके बच्चे को जन्म प्रमाणपत्र की आवश्यकता है तो यह कंसीयर्ज सेवा आपके काम आएगी। यदि आपका कर अधिकारी आपको परेशान कर रहा है तो एक एजेंट इससे निपटेगा। अगर आपका वाहन किसी दुर्घटना का शिकार हो गया है तो आप उस एजेंट को पुलिस और बीमा कंपनियों से निपटने के लिए कह सकते हैं। आप केवल उतना ही भुगतान करेंगे जितना आपकी गलतियों के लिए देय दंड तक सीमित है। इन मुद्दों पर लोगों को रोजाना परेशान करने की जरूरत नहीं है।

भारत में निवेश करने के लिए हमारे अरबपतियों को वापस लाने और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए अमीर लोगों को साथ लेना सरकार की प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर होना चाहिए। इस दिशा में शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री को इन विषयों पर चर्चा करने के लिए भारतीय उद्योग जगत के प्रतिनिधियों को चाय पर आमंत्रित करना चाहिए। ऐसी पहल से कुछ अच्छे परिणाम सामने आ सकते हैं। हमें भारत की संपत्ति भारत की तरक्की में लगाने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए।


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

First Published - October 3, 2025 | 12:10 AM IST

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