राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने मंगलवार को वर्ष 2021-22 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रारंभिक आंकड़े तथा 31 मार्च को समाप्त हुए वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही के अनुमान पेश किए। एनएसओ का अनुमान है कि जनवरी से मार्च तिमाही में जीडीपी सालाना आधार पर 4.1 प्रतिशत बढ़ा। यह आंकड़ा अनुमानों के अनुरूप ही है। पूरे वर्ष के दौरान जीडीपी वृद्धि के 8.7 प्रतिशत रहने का प्रारंभिक अनुमान पेश किया गया। महामारी के कारण आई गिरावट के चलते गत वित्त वर्ष यानी 2020-21 में जीडीपी वृद्धि 6.6 प्रतिशत पर सीमित रही थी। हालांकि यह पहले जताये गए अनुमानों से थोड़ा कम है लेकिन इस वर्ष के आरंभ में कोविड-19 वायरस के नये ओमीक्रोन प्रकार के प्रसार के बाद संशोधित अनुमानों से यह ज्यादा दूर नहीं रहा।
यह बात ध्यान देने वाली है कि वर्ष 2021-22 में वास्तविक जीडीपी का स्तर 147 लाख करोड़ रुपये रहा जो महामारी के पहले वाले वर्ष 2019-20 के 145 लाख करोड़ रुपये से कुछ अधिक है। दो वर्षों में 1.5 प्रतिशत का सुधार यही बताता है कि महामारी के बाद हुआ सुधार केवल इतना ही रहा कि पिछले वर्ष आई गिरावट को दूर किया जा सके। अर्थव्यवस्था के बड़े क्षेत्रों की बात करें तो व्यापार और परिवहन क्षेत्र में अभी सुधार होना है। 2020-21 में 20.2 प्रतिशत की वृद्धि के बाद 2021-22 में यह केवल 11.1 प्रतिशत की दर से बढ़ा। कुल मिलाकर देखा जाए तो महामारी के बाद वृद्धि में अच्छा सुधार नहीं हुआ है।
भविष्य के वृद्धि अनुमानों पर विचार करते समय इस बात को ध्यान में रखना चाहिए।
2022-23 की पहली तिमाही में वृद्धि में तेजी देखने को मिल सकती है। ऐसा इसलिए हो सकता है कि 2021-22 की पहली तिमाही में वृद्धि असाधारण रूप से कमजोर रही थी। उस समय देश कोविड की तबाही लाने वाली दूसरी लहर से जूझ रहा था। यह लहर वायरस के डेल्टा प्रकार के कारण आई थी। परंतु चालू वित्त वर्ष में आगे चलकर वृद्धि में धीमापन आएगा। ऐसे में समझदारी यही होगी कि कुछ समय तक वृद्धि की दर पर ही ध्यान न दिया जाए बल्कि उत्पादन के वास्तविक स्तर की तुलना भी महामारी के पहले के स्तर से की जाए। तभी हम सुधार का बेहतर आकलन कर पाएंगे।
यह मानने की पर्याप्त वजह है कि वृद्धि का परिदृश्य अनिश्चित है। रोजगार और उत्पादन महामारी के झटके से सही ढंग से नहीं उबर पाए हैं। इसके अलावा धीमी होती वैश्विक वृद्धि भी भारत के लिए प्रतिकूल हालात पैदा कर सकती है। चीन में ओमीक्रोन के प्रसार और रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने से वैश्विक हालात बिगड़े हैं। अनुमान लगाया जा रहा है कि विश्व अर्थव्यवस्था मुद्रास्फीतिजनित मंदी की ओर बढ़ रही है।
ऐसे हालात में भारत में वृद्धि के क्षेत्र में असाधारण प्रदर्शन की उम्मीद करना सही नहीं होगा। राष्ट्रीय आय और व्यय के घटकों के जो आंकड़े मंगलवार को जारी किए गए वे इस तथ्य को रेखांकित करते हैं कि लागत बढ़ी है। इस बढ़ोतरी को आयात के मूल्य और हिस्सेदारी में इजाफे में देखा जा सकता है। यह बात भी ध्यान देने लायक है कि सरकार का अंतिम खपत व्यय गत वर्ष के जीडीपी के 11.3 प्रतिशत से घटकर 10.7 प्रतिशत (स्थिर मूल्य पर) रह गया है। इसे मंगलवार को ही जारी एक अन्य आंकड़े के साथ देखा जाना चाहिए जिससे पता चलता है कि देश का राजकोषीय घाटा 6.7 प्रतिशत है जो कि 2021-22 के 6.9 प्रतिशत के बजट अनुमान के अनुरूप ही है। अप्रैल माह में कर संग्रह के आंकड़े भी उत्साह बढ़ाने वाले हैं। ऐसे में सरकार के पास शायद भविष्य की कठिनाइयों से निपटने के लिए थोड़ी और गुंजाइश रहेगी।