एक ही भौगोलिक क्षेत्र में काम करने वाले वितरण लाइसेंसधारकों के बीच नेटवर्क शेयरिंग की अनुमति देने के बिजली मंत्रालय के महत्त्वाकांक्षी प्रस्ताव को 3 प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इन चुनौतियों का उल्लेख करते हुए एक पूर्व अधिकारी ने कहा कि इनमें विरासत वाले बिजली खरीद समझौते (पीपीए) में तय लागत को साझा करना, क्रॉस-सब्सिडी का बोझ और मानक स्तर से ऊपर डिस्कॉम का नुकसान शामिल है।
बिजली मंत्रालय का यह प्रस्ताव सार्वजनिक परामर्श के लिए जारी किए गए नए बिजली (संशोधन) विधेयक 2025 का हिस्सा है। वितरण लाइसेंसधारकों के बीच नेटवर्क साझा करने का यह प्रावधान पिछले बिजली (संशोधन) विधेयक में भी था, जो 2024 में समाप्त हो गया था।
मौजूदा बिजली अधिनियम 2023 में प्रावधान है कि नियामक एक ही क्षेत्र में अपने स्वयं के वितरण सिस्टम के माध्यम से बिजली के वितरण के लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों को लाइसेंस प्रदान कर सकता है। किसी भी ऐसे आवेदक को इस आधार पर लाइसेंस से इनकार नहीं किया जाएगा कि उसी क्षेत्र में पहले से ही उसी उद्देश्य के लिए एक लाइसेंसधारी मौजूद है।
ऑल इंडिया डिस्कॉम एसोसिएशन के डायरेक्टर जनरल और बिजली मंत्रालय के पूर्व सचिव आलोक कुमार ने कहा, ‘इस प्रावधान को सबसे पहले मौजूदा लाइसेंसधारी के विरासत वाले पीपीए से नियत लागत को साझा करने की समस्या का सामना करना पड़ेगा। दूसरा, क्रॉस सब्सिडी के असंतुलन का प्रबंधन करना होगा, क्योंकि नए लाइसेंसधारी के पास मौजूदा लाइसेंसधारी की तुलना में अलग तरह के उपभोक्ता होंगे।’
पीपीए की नियत लागत को अक्सर क्षमता शुल्क कहा जाता है। यह बिजली संयंत्र के नियत परिचालन और पूंजीगत खर्च जैसे ऋण भुगतान, निवेश पर रिटर्न और नियत परिचालन लागत से संबंधित खर्च है। पीपीए का अन्य हिस्सा वैरिएबल लागत या बिजली की कीमत होती है, वास्तविक उत्पादित बिजली के लिए इसका भुगतान किया जाता है। इसमें ईंधन और परिचालन और रखरखाव संबधी खर्च शामिल हैं, जिसका भुगतान खरीदार को करना होता है। बिजली वितरण कंपनियों के उपभोक्ताओं के प्रकार में सामान्यतया आवासीय, वाणिज्यिक और औद्योगिक उपभोक्ता शामिल होते हैं।