भारत के दीर्घकालिक वृद्धि दृष्टिकोण के साथ बैंकिंग क्षेत्र में जबरदस्त विदेशी निवेश के समग्र नजरिए के कारण बैंक बढ़-चढ़कर समझौते कर रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक इन समझौतों का ध्येय बैंकों को बड़ा और मजबूत बनाना है। बैंकों में विदेशी निवेश भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और सरकार के कारण बढ़ा है।
इस साल जापान के सुमितोमो मित्सुई बैंकिंग कॉरपोरेशन (एसएमबीसी) ने येस बैंक में 24.22 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदी। दरअसल, भारतीय स्टेट बैंक ने सात निजी बैंकों के साथ वर्ष 2020 में येस बैंक के पुनर्निर्माण चरण के दौरान इस बैंक में निवेश किया था। इन बैंकों ने सामूहिक रूप से अपनी 20 प्रतिशत हिस्सेदारी एसएमबीसी को लगभग 13,482 करोड़ रुपये में बेच दी।
एसएमबीसी ने निजी इक्विटी निवेशकों के जरिए इस बैंक में अन्य 4.22 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदी थी। यह किसी भारतीय बैंक में एकल सबसे बड़ा विदेशी निवेश दर्ज हुआ। विशेषज्ञों का कहना है कि यह लेन देन विदेशी वित्तीय संस्थानों द्वारा इसी तरह के सौदों के लिए मिसाल कायम कर सकता है।
दरअसल विदेशी वित्तीय संस्थान लंबे समय से स्वामित्व और मतदान अधिकारों पर नियामक सीमाओं से बाधित हैं। रिजर्व बैंक निजी बैंकों में विदेशी निवेशकों के वोट को 26 प्रतिशत और वित्तीय संस्थानों के प्रत्यक्ष निवेश को 15 प्रतिशत तक सीमित करता है।