वैश्विक बाजारों में हालिया उथल-पुथल और अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा आगामी सितंबर में यानी चार सालों में पहली बार दर कटौती की संभावना के बीच कई लोग उम्मीद कर रहे थे कि भारतीय रिजर्व बैंक दरें घटा देगा। इसके साथ ही रुख में बदलाव की भी संभावना थी। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बाजार से केवल दो शब्द कहे: धैर्य रखिए। लगता है बाजार ने उनकी बात सुनी। नीति में कोई बदलाव नहीं होता देख बॉन्ड यील्ड और मुद्रा दोनों में गतिविधियां थम सी गईं।
जाहिर है कि केंद्रीय बैंक फिलहाल वृद्धि के बारे में चिंतित नहीं है और मुद्रास्फीति के मोर्चे पर भी राहत नहीं है। यानी लगातार नवीं नीति में यथास्थिति बरकरार है। रीपो दर या फिर रिजर्व बैंक द्वारा बैंकों को धन देते समय ली जाने वाली ब्याज की दर 6.5 फीसदी ही बनी हुई है। बैंक का रुख भी पहले की तरह है यानी छूट और राहत कम करते हुए यह सुनिश्चित करना कि मुद्रास्फीति धीरे-धीरे लक्ष्य के साथ तालमेल बिठा लेगी और इस दौरान वृद्धि को मदद मिलती रहे।
अतीत की तरह दास ने भविष्य के बारे में कुछ कहने से परहेज किया। जो लोग रुख में बदलाव की अपेक्षा कर रहे थे, वे निराश हैं किंतु उन लोगों ने राहत की सांस ली है जिन्हें लग रहा था कि सख्ती अपनाते हुए अतिरिक्त नकदी निकाल ली जाएगी। उस लिहाज से नीति सभी के लिए सुखद रही। रिजर्व बैंक के वृद्धि अनुमान तथा चालू वर्ष के लिए मुद्रास्फीति संबंधी अनुमान अपरिवर्तित हैं लेकिन कुछ मामूली रद्दोबदल किया गया।
उदाहरण के लिए वित्त वर्ष 25 के लिए जीडीपी वृद्धि दर 7.2 फीसदी है यानी जून में घोषित आंकड़ों में कोई बदलाव नहीं किया गया। परंतु पहली तिमाही में वृद्धि दर अनुमान को 7.3 फीसदी से कम करके 7.1 फीसदी कर दिया गया।
वित्त वर्ष 26 की पहली तिमाही के लिए इसे 7.2 फीसदी रखा गया। इसी प्रकार वर्ष के लिए खुदरा मुद्रास्फीति अनुमान को 4.5 फीसदी के स्तर पर अपरिवर्तित रखा गया। परंतु दूसरी तिमाही के अनुमान को 3.8 फीसदी से बढ़ाकर 4.4 फीसदी और तीसरी तिमाही के अनुमान को 4.6 फीसदी से बढा़कर 4.7 फीसदी किया गया। चौथी तिमाही के अनुमान को कम करके 4.5 फीसदी से 4.3 फीसदी किया गया। पहली बार रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 26 की पहली तिमाही के खुदरा मुद्रास्फीति अनुमान को 4.4 फीसदी रखा।
यकीनन वृद्धि का कथानक मजबूत है और मुद्रास्फीति में कमी आ रही है लेकिन अपस्फीति की दर असमान और धीमी है। दास ने घबराहट का कोई संकेत नहीं दिया लेकिन यह स्पष्ट किया कि मुद्रास्फीति अब भी हमारा प्रमुख निशाना है और रिजर्व बैंक इसे नियंत्रित करने तक अपना रुख नहीं बदलेगा। यकीनन बदलती वैश्विक तस्वीर इस पर असर डालेगी यह भी तय है।
परंतु चालू खाते का घाटा सहज स्तर पर है और 675 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार तथा मजबूत वृहद आर्थिक परिदृश्य होने के कारण चिंता की कोई बात नहीं। भले ही बाहरी कारक कमजोर पड़ रहे हों। फिलहाल मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने कहा है कि जब तक शीर्ष मुद्रास्फीति लक्ष्य के करीब आकर टिक नहीं जाती है तब तक अपस्फीतिकारी रुख बरकरार रखा जाएगा। मु्द्रास्फीति को लक्षित करने की जो लचीली व्यवस्था करीब आठ वर्ष पहले शुरू की गई थी उसके तहत चार फीसदी का लक्ष्य तय किया गया था, जिसमें दो फीसदी ऊपर-नीचे की गुंजाइश रखी गई थी।
पिछली नीति की तरह इस बार भी एमपीसी के छह सदस्यों में से दो असहमत थे: आशिमा गोयल और जयंत आर वर्मा। दोनों ने इस बात की वकालत की कि नीति में परिवर्तन कर उसे निरपेक्ष किया जाए और दरों में चौथाई फीसदी की कटौती की जाए। वर्तमान एमपीसी की यह अंतिम बैठक थी। अक्टूबर तक गोयल, वर्मा और शशांक भिड़े का कार्यकाल पूरा हो जाएगा और तीन नए सदस्य इसमें शामिल होंगे।
अगर वैश्विक वृद्धि को गहरा झटका नहीं लगता, बाजार में अस्थिरता घर नहीं कर जाती और अमेरिकी फेडरल रिजर्व सितंबर में भारी कटौती नहीं करता तो ऐसा नहीं लगता कि रिजर्व बैंक की एमपीसी 2024 में कटौती करेगी। हालांकि रुख में बदलाव देखने को मिल सकता है। मौद्रिक नीति से संबंधित किसी अन्य कदम के अभाव में यह नीति गैर मौद्रिक उपायों को अपनाने के लिए चर्चा में रहेगी: