केंद्र सरकार ने पिछले दिनों सचिव स्तर पर जो बड़ा फेरबदल किया उसे उतनी तवज्जो नहीं मिली जितनी दी जानी चाहिए थी। शुक्रवार को सरकार ने विभिन्न विभागों के प्रमुखों के रूप में 18 नए सचिव नियुक्त किए। आमतौर पर ऐसी नियुक्तियां रूटीन मानी जाती हैं जिन्हें जरूरत के मुताबिक किया जाता है। परंतु गत सप्ताह के निर्णय पर करीबी नजर डालें तो सरकार की मौजूदा सोच का पता चलता है जो हालिया अतीत में ऐसी नियुक्तियों की तुलना में स्वागतयोग्य है।
ऐसा लगता है कुछ महीनों से दोहरा प्रभाव संभाल रहे सचिवों को निशाना बना गया है। हाल के दिनों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां एक सचिव एक से अधिक विभाग संभाल रहा था। गत सप्ताह एक साथ चार ऐसे दोहरे प्रभारों को समाप्त कर दिया गया। आर्थिक मामलों और राजस्व, या दीपम (डीआईपीएएम) और सार्वजनिक उद्यम, दोनों विभागों का प्रभारी एक ही व्यक्ति को बनाना संभवतः व्यवहार्य है, क्योंकि ये विभाग वित्त मंत्रालय के ही अधीन आते हैं। लेकिन यह व्यवस्था दक्षता और शासन के लिहाज से नुकसानदेह है।
ज्यादा बुरा यह है कि दीपम सचिव अरुणीश चावला को संस्कृति मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभालने को कहा गया या उपभोक्ता मामलों की सचिव निधि खरे को नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विभाग की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई, जो एकदम बेतुका है। यह राहत की बात है कि ये दोहरे प्रभार समाप्त कर दिए गए और अब इनमें से किसी विभाग या मंत्रालय में सचिवों के पास अतिरिक्त दायित्व नहीं है। इस कवायद का एक सकारात्मक परिणाम प्रशासनिक दक्षता और जवाबदेही में सुधार के रूप में सामने आना चाहिए।
गत सप्ताह हुए इस बदलाव में छह अहम स्थानांतरण भी हुए। इनमें सबसे दिलचस्प था व्यय सचिव मनोज गोविल को समन्वय सचिव के रूप में कैबिनेट सचिवालय में पदस्थ करना। 1991 बैच के अधिकारी गोविल ने अगस्त 2024 में वित्त मंत्रालय में व्यय सचिव के रूप में कार्यभार संभाला था। उन्हें मार्च 2029 में सेवानिवृत्त होना है। अगर वह वित्त मंत्रालय में बने रहते तो मई 2025 में मौजूदा वित्त सचिव अजय सेठ की सेवानिवृत्ति के बाद वित्त सचिव के पद के दावेदार होते। जाहिर है उन्हें कैबिनेट सचिवालय भेजने के पहले बहुत विचार विमर्श हुआ होगा।
नागर विमानन सचिव वुमलुनमंग वुअल्नम को स्थानांतरित करके व्यय विभाग में सचिव बनाया जाना भी महत्त्वपूर्ण कदम है। 1992 बैच के आईएएस अधिकारी वुअल्नम के पास तीन वर्ष से अधिक का कार्यकाल रहेगा। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वुलनम को वित्त मंत्रालय में स्थानांतरित करने से उत्पन्न हुई रिक्ति को पहले ही भरा जा चुका है और समीर सिन्हा को नागर विमानन का नया सचिव बना दिया गया है। इसके अलावा युवा मामलों, अंतर्राज्यीय परिषद और डायरेक्टरेट जनरल ऑफ द इंडिया इंटरनैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डेमोक्रेसी विभागों में तीन और स्थानांतरण किए गए। ये सभी स्थानांतरण बताते हैं कि यह सुनियोजित ढंग से किया गया है।
परंतु इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण हैं वे कदम जो सरकार ने सेवानिवृत्ति से रिक्त हो रहे आठ सचिव स्तरीय पदों को भरने के लिए उठाए। श्रम सचिव का पद पिछले महीने के अंत से रिक्त था और थोड़ी देर से ही सही लेकिन अब वंदना गुरनानी को कैबिनेट सचिवालय से श्रम मंत्रालय भेज दिया गया है। इसके अलावा सात अन्य सचिवालय स्तरीय पद भरने का काम किया गया है। इनमें से कुछ पद संभाल रहे अधिकारी आने वाले महीनों में सेवानिवृत्त होंगे। ऐसी अग्रिम योजना अफसरशाही नेतृत्व को स्थिरता प्रदान करती है और आर्थिक शासन पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। खासतौर पर यह देखते हुए कि अग्रिम नियुक्तियां उन मंत्रालयों से संबंधित हैं जो अर्थव्यवस्था से जुड़े हैं।
यह ध्यान रहे कि वाणिज्य सचिव सुनील बड़थ्वाल और देश के मुख्य व्यापारिक वार्ताकार राजेश अग्रवाल अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम तथा यूरोपीय आयोग के साथ देश की व्यापार वार्ताओं का नेतृत्व कर रहे हैं। अमेरिकी जवाबी शुल्क की धमकियों के कारण बढ़ी अनिश्चितता के बीच यह जिम्मेदारी अहम है।
परंतु सरकार इस मामले में सचेत थी कि बड़थ्वाल को इस वर्ष सितंबर के आखिर में सेवानिवृत्त होना है। सामान्य परिस्थिति में उनका उत्तराधिकारी सितंबर में भी चुना जा सकता था लेकिन सरकार ने व्यापार नीति की चुनौतियों मद्देनजर अग्रवाल को वाणिज्य मंत्रालय में विशेष सचिव बना दिया और यह भी निर्णय लिया कि सितंबर 2025 में बड़थ्वाल के बाद वह वाणिज्य सचिव बनेंगे। इससे वाणिज्य मंत्रालय में स्थिरता और निरंतरता आएगी। इसी तरह संसदीय मामलों, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, खेल, कौशल विकास, सामाजिक न्याय और आर्थिक मामलों के विभाग में भी सचिव तय कर दिए गए जबकि इन मंत्रालयों के सचिवों को अभी माह-दो माह बाद सेवानिवृत्त होना है।
इन अफसरशाही बदलावों के प्रभाव वित्त मंत्रालय पर सबसे अधिक नजर आएंगे। इन बदलावों के बाद वित्त मंत्रालय में सचिव स्तर पर पूरी नई टीम होगी। अब यह स्पष्ट हो चुका है कि आखिर क्यों सरकार ने वी अनंत नागेश्वरन को दो और वर्षों तक मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाए रखने का निर्णय लिया जबकि वह रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति के प्रभारी के रूप में डिप्टी गवर्नर बनने के उपयुक्त दावेदार थे। अनुराधा ठाकुर के रूप में आर्थिक मामलों के विभाग को नया सचिव मिल रहा है जो कंपनी मामलों के मंत्रालय से पदोन्नत हुई हैं। अरविंद श्रीवास्तव प्रधानमंत्री कार्यालय से पदोन्नत होकर राजस्व सचिव, नागर विमानन मंत्रालय से आए वुलनम नए व्यय सचिव, अंतर्राज्यीय परिषद से आए के मोसेस चालई नए सार्वजनिक उपक्रम सचिव और डॉ. चावला के रूप में नया दीपम सचिव मिल रहा है। डॉ. नागेश्वरन का वित्त मंत्रालय में तीन साल का अनुभव सरकार के बहुत काम आएगा।
यह दिसंबर 2024 के बाद वित्त मंत्रालय के मुख्यालय नॉर्थ ब्लॉक में हो रही घटनाओं से एकदम विपरीत है। 2025-26 का बजट पेश होने के आठ सप्ताह पहले राजस्व सचिव को अचानक रिजर्व बैंक का गवर्नर बना दिया गया था। नया राजस्व सचिव नियुक्त किया गया लेकिन दो सप्ताह बाद ही नवनियुक्त राजस्व सचिव को दीपम सचिव से अदला-बदली कर दी गई। बजट पेश होने के करीब एक महीने बाद राजस्व सचिव जो वित्तीय सचिव के रूप में भी काम कर रहे थे, उनको भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) का चेयरमैन बना दिया गया।
नॉर्थ ब्लॉक में पिछले कुछ महीनों में इन बदलावों के बीच सरकार ने वित्त मंत्रालय में चार नए सचिव नियुक्त करने का जो निर्णय लिया है वह बताता है कि एक स्थिर टीम बनाने की कोशिश की जा रही है। इन नवनियुक्त सचिवों में से कोई भी 2028 के पहले सेवानिवृत्त नहीं होने जा रहा। इनमें से दो तो अप्रैल 2030 के बाद सेवानिवृत्त होंगे।
केवल एक मसला हल करना बाकी है। जब मौजूदा वित्त सचिव सेठ मई के अंत में सेवानिवृत्त होंगे तब उस पद के दो मजबूत दावेदार होंगे-डॉ.चावला और वुलनम। दोनों ही 1992 बैच के अधिकारी हैं लेकिन चावला उस वर्ष सफल प्रत्याशियों की सूची में वुलनम से काफी ऊपर थे। उम्मीद की जानी चाहिए कि अगले वित्त सचिव का निर्णय सेठ के पद छोड़ने के पहले कर लिया जाएगा।