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2016 की नोटबंदी से निकले सबक

भारतीय रिजर्व बैंक 2,000 के नोट बंद करने के प्रकरण से जिस तरह निपट रहा है उससे पता चलता है कि उसने अतीत की गलतियों से सबक सीखा है। बता रहे हैं ए के भट्‌टाचार्य

Last Updated- October 12, 2023 | 9:37 PM IST
Lessons from 2016 demonetisation

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 19 मई, 2023 को घोषणा की थी कि वह 2,000 रुपये के नोट का प्रचलन बंद कर रहा है। रिजर्व बैंक के परिपत्र में लोगों को सलाह दी गई थी कि उच्च मूल्य वाली इस नकदी को ​30 सितंबर, 2023 के पहले तक बैंकों में जमा किया जा सकता है या बदला जा सकता है। बाद में इस समय सीमा को एक सप्ताह के लिए बढ़ा दिया गया था।

यह घोषणा होते ही लोगों को 2016 की नोटबंदी की याद आ गई जिसके चलते आम लोगों, कंपनियों और कारोबारियों को बहुत अधिक कठिनाइयों और उथलपुथल का सामना करना पड़ा था। बैंकों के बाहर लोगों की लंबी कतार लग गई थी जहां वे 500 और 1,000 रुपये के बंद हो चुके नोट बदलवाने गए थे।

जाहिर सी बात है कि मई 2023 में यह घोषणा होते ही गंभीर चिंताएं उत्पन्न हो गईं और कई लोगों को लगा कि 2,000 के नोट बंद होने की प्रक्रिया भी आने वाले 20 सप्ताह में वैसी ही संभावित उथलपुथल की वजह न बन जाए। इस बात को लेकर भी सवाल था कि क्या निकासी की अंतिम तिथि बीत जाने के बाद इनकी वैधानिक स्थिति के बारे में कोई बड़ी घोषणा सुनने को मिल सकती है।

गत सप्ताह 2,000 के नोट बदलने या बैंक में जमा करने की समय सीमा भी समाप्त हो गई। इन नोटों के कुल मूल्य का 96 फीसदी या तो बदला जा चुका है या बैंक में जमा हो चुके हैं। इस मूल्य की नकदी में 87 फीसदी से अ​धिक बदली नहीं गई बल्कि बैंक में जमा कर दी गई। बैंकों के बाहर कतारें नहीं थीं। उद्योग-धंधे भी बेअसर रहे। यह इतनी सहजता से कैसे हो गया? क्या इससे कोई सबक लिया जा सकता है?

यकीनन 8 नवंबर, 2016 को घोषित नोटबंदी की तुलना 19 मई, 2023 को लिए गए निर्णय से नहीं की जा सकती है। 2016 में 500 और 1,000 रुपये के नोटों की वैधता 8 नवंबर की मध्य रात्रि से समाप्त हो गई थी जबकि 2,000 रुपये का नोट वापसी की अवधि समाप्त हो जाने के बावजूद वैध बना हुआ है।

इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि 2016 में समाप्त किए गए नोट कुल प्रचलित मुद्रा का 86 फीसदी थे। जबकि मई 2023 में बंद की गई मुद्रा केवल 11 फीसदी। इसके अलावा दोनों घटनाओं के आकार में भी बहुत अंतर था। 2016 की कवायद में करीब 21 अरब नोट बदले या जमा किए गए जबकि 2023 में केवल 1.78 अरब नोट।

इसके बावजूद दोनों अवसरों में समानताएं भी हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि रिजर्व बैंक के मौजूदा प्रबंधन ने 2016 की नोटबंदी के क्रियान्वयन से हुई दिक्कतों और उथलपु​थल से सबक लिए हैं। 2,000 रुपये मूल्य के 96 फीसदी नोटों का सहजता से वापस होना इसका उदाहरण है। यह अंतर कैसे आया?

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पहली बात, संदेश एकदम स्पष्ट, पारदर्शी और इस प्रकार दिया गया था कि लोगों के दिमाग में किसी तरह का भय न उत्पन्न हो।​ रिजर्व बैंक और वाणिज्यिक बैंकों के बीच संदेश को प्रभावी ढंग से संभाला गया ताकि नीतिगत क्रियान्वयन प्रभावित न हो। नवंबर 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संदेश भी साफ और पारदर्शी था लेकिन उसकी वजह से लोग भयभीत हो गए क्यों​कि कहा गया था कि यह कवायद काला धन बाहर निकालने के लिए है। लोगों को लगा कि बड़ी तादाद में नोट रखने वाले लोग जांच के दायरे में आ सकते हैं।

लोगों को तो छोड़ ही दें, बैंकों के साथ भी रिजर्व बैंक का संवाद सहज नहीं था जिससे अनिश्चितता और आशंकाएं पैदा हुईं और नोटबंदी के क्रियान्वयन में बार-बार बदलाव से यह और बिगड़ गया। इसके अलावा उस वक्त कुछ जगहों को छोड़ दें तो अधिकांश स्थानों पर बंद नोटों का इस्तेमाल प्रतिबंधित था। इसके विपरीत 2023 में ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया था।

रिजर्व बैंक के इस स्पष्टीकरण ने भी मदद की कि इस नोट को नवंबर 2016 में तत्कालीन मौद्रिक जरूरतें पूरी करने के लिए जारी किया गया था क्योंकि 500 और 1,000 रुपये के नोटों का चलन बंद किया गया था। उस लक्ष्य को हासिल करने और अन्य राशि की नकदी की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के बाद 2018-19 में 2,000 रुपये के नोट को छापना बंद कर दिया गया। रिजर्व बैंक के अनुसार चूंकि इनमें से अधिकांश नोट मार्च 2017 के पहले जारी किए गए थे और अपना जीवनकाल पूरा कर चुके थे इसलिए उन्हें वापस लेने का निर्णय स्वच्छ नोट नीति के अनुरूप था।

ध्यान रहे कि ज्यादा लोग स्वच्छ नोट नीति की दलील से सहमत नहीं थे। इसके बावजूद उनके इस्तेमाल पर कोई तात्कालिक रोक नहीं लगाई गई और बैंक में जमा करने या बदलने के लिए 140 दिन की अवधि दी गई। वहीं 2016 में 500 और 1,000 रुपये के नोट बदलने के लिए 52 दिनों का समय दिया गया था।

इन्हें खर्च करने की भी गुंजाइश नहीं थी। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि बैंकिंग तंत्र को 140 दिनों में केवल 1.78 अरब नोटों को बदलने या जमा करने का काम करना था। जबकि 2016 में 52 दिनों में 21 अरब रुपये मूल्य के नोट बदलने पड़े थे।

2023 में इस काम के सहजता से पूरा होने की एक और वजह है। बीते कुछ वर्षों में देश का डिजिटल भुगतान नेटवर्क यूपीआई की बदौलत तेजी से विस्तारित हुआ है। 2016 की नोटबंदी ने इस प्रक्रिया को बहुत गति प्रदान की। इससे भी 2,000 के नोट वापस लेने का काम आसान हुआ।

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अक्टूबर 2016 में 26 बैंक यूपीआई व्यवस्था से जुड़े थे और 48 करोड़ रुपये मूल्य के एक लाख लेनदेन यूपीआई से हुए थे। मई 2023 तक यूपीआई से जुड़े बैंकों की संख्या बढ़कर 445 हो गई और 15 लाख करोड़ रुपये मूल्य के 9.4 अरब यूपीआई लेनदेन हुए। मोबाइल आधारित यूपीआई नेटवर्क के विस्तार ने 2,000 रुपये के नोट के मामले में किसी भी संभावित उथलपुथल की आशंका को कम कर दिया।

हालांकि 2023 में रिजर्व बैंक की संवाद नीति ने इसके कदम के लिए बताए गए एक कारण को लेकर सवाल जरूर पैदा किए। उसने कहा कि 2,000 रुपये के नोट इसलिए वापस लिए गए कि वे आमतौर पर लेनदेन में इस्तेमाल नहीं हो रहे थे। यह बात कारोबारियों, छोटे व्यापारियों और जनता के अनुभव से निकली हुई नहीं है। निश्चित रूप से अब जबकि 2,000 रुपये के नोट बंद हो चुके हैं, छोटे नोटों पर दबाव बढ़ गया है जिससे निश्चित रूप से असहजता उत्पन्न होगी। इससे यह नजरिया भी बढ़ा है कि 2,000 रुपये के नोट वापस लेने की वास्तविक वजह नहीं बताई गई।

वास्तविक लक्ष्य चाहे जो हो, रिजर्व बैंक द्वारा अपने निर्णय के क्रियान्वयन में डिजिटल भुगतान, अधिक प्रभावी संचार नीति और 2016 की तुलना में कम नकदी प्रबंधन की जरूरत ने मदद की। शायद रिजर्व बैंक के गवर्नर की भी इसमें भूमिका रही क्योंकि 2016 में एक अन्य पद पर रहते हुए उन्होंने नोटबंदी के क्रियान्वयन में भूमिका निभाई थी।

First Published - October 12, 2023 | 9:37 PM IST

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