भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने वाणिज्यिक बैंकों से कहा है कि वे अपनी सभी शाखाओं से ग्राहकों को बुनियादी सेवाएं उपलब्ध कराएं न कि केवल होम ब्रांच से। आरबीआई ने यह भी कहा है कि ग्राहकों से वसूले जाने वाले सेवा शुल्कों में बैंक कुछ हद तक एकरूपता बनाए रखें।
ऐसी कई सेवाएं हैं जो ग्राहकों को अपने होम ब्रांच पर ही मिल पाती हैं। इस घटनाक्रम से अवगत एक वरिष्ठ बैंकर ने कहा, ‘ऐसे दौर में जहां टेक्नॉलजी में इतनी प्रगति हुई है, नियामक इस बात से हैरान है कि ग्राहक को कुछ सेवाओं के लिए होम ब्रांच जाना पड़ता है।’ उन्होंने कहा, ‘अब आरबीआई उन सेवाओं की पहचान करना चाहता है जो अनिवार्य तौर पर सभी शाखाओं के जरिये हर ग्राहक को दी जानी चाहिए।’
बैंकों को अपनी वेबसाइट पर उन सेवाओं की सूची जारी करनी होगी जो सभी शाखाओं द्वारा उपलब्ध कराई जाती हैं। नियामक ने बैंकों से यह भी कहा है कि वे किसी विशेष सेवा के लिए अपने खुदरा ग्राहकों से लिए जाने वाले शुल्क में अधिक अंतर न रखें। इन शुल्कों में कुछ हद तक एकरूपता लाने के लिए कहा गया है।
सूत्रों ने कहा कि नियामक बैंकों के लिए शुल्क निर्धारित करने से बचना चाहता है। इसलिए उसने बैंकों से ऐसा कोई उपाय करने के लिए कहा है ताकि इन शुल्कों में कुछ हद तक एकरूपता दिखे। चर्चा में शामिल सूत्रों के अनुसार, ऋणदाताओं द्वारा दो विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। पहला, हर सेवा शुल्क के लिए एक दायरा निर्धारित करना और दूसरा, शुल्कों के लिए एक सीमा तय करना।
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा का ग्राहक सेवा में सुधार और पुख्ता शिकायत निपटान तंत्र स्थापित करने पर जोर रहा है। उन्होंने हाल में ही अपने कार्यकाल का एक साल पूरा किया है। पिछले सप्ताह सरकारी और निजी बैंकों के एमडी एवं सीईओ के साथ एक बैठक में उन्होंने बेहतर ग्राहक सेवा सुनिश्चित करने पर जोर दिया था। साथ ही उन्होंने बैंकों से शिकायतों में कमी लाने और आंतरिक प्रणाली को मजबूत करने पर ध्यान देने का आग्रह किया था।
बैंकरों ने कहा कि सेवा शुल्कों पर सीमा लगाए जाने से बैंकों को आय का नुकसान होगा। इससे पहले सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने बचत खातों में न्यूनतम शेष रकम बनाए न रखने पर लगने वाले जुर्माने को माफ कर दिया था जिससे उनकी आय पर असर पड़ा है। मगर शुल्कों में लगाई जाने वाली यह सीमा सरकारी, निजी और विदेशी यानी सभी बैंकों पर लागू होती है।
ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान आरबीआई विनियमित संस्थाओं के खिलाफ ग्राहकों से 2,96,321 शिकायतें मिली थीं। आरबीआई एकीकृत लोकपाल (ओआरबीआईओ) के कार्यालय में प्राप्त शिकायतों में बैंकों के खिलाफ शिकायतों की हिस्सेदारी 81.53 फीसदी पर यानी सबसे अधिक थी। उसके बाद एनबीएफसी की शिकायतों का हिस्सा 14.80 फीसदी रहा।
बैंकों में सबसे अधिक शिकायतें निजी क्षेत्र के बैंकों के खिलाफ प्राप्त हुईं। उनका हिस्सा वित्त वर्ष 2024 में 34.39 फीसदी से बढ़कर वित्त वर्ष 2025 में 37.53 फीसदी हो गया। मगर सरकारी बैंकों के खिलाफ प्राप्त शिकायतों की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2024 में 38.32 फीसदी पर सबसे अधिक थी और वह घटकर वित्त वर्ष 2025 में 34.80 फीसदी रह गई।
आरबीआई विनियमित संस्थाओं को सलाह दी गई कि वे प्राप्त शिकायतों के विश्लेषण के साथ अपना शिकायत विवरण बोर्ड अथवा ग्राहक सेवा समितियों को प्रस्तुत करें, जिसमें बार-बार शिकायतों वाले ग्राहक सेवा क्षेत्रों, शिकायतों के स्रोतों, व्यवस्थागत कमियों और सुधारात्मक कार्यों की पहचान की जाए।