जियो फाइनैंशियल सर्विसेज मुकेश अंबानी की वह कंपनी है जो हाल ही में एक विलय से मुक्त हुई है। इस कंपनी के बारे में शायद ही किसी को कोई खास जानकारी है लेकिन माना यही जा रहा है कि यह 540 अरब डॉलर मूल्य के भारतीय म्युचुअल फंड (एमएफ) कारोबार में उथलपुथल कर सकती है।
कंपनी ने विशालकाय अमेरिकी फंड हाउस ब्लैकरॉक के साथ 50:50 फीसदी की हिस्सेदारी वाला संयुक्त उपक्रम बनाया है ताकि ‘भारत के परिसंपत्ति प्रबंधन उद्योग को बदल सके’ और भारतीयों को ‘किफायती और नवाचारी निवेश उपायों’ तक ‘लोकतांत्रिक पहुंच’ मुहैया करा सके। विश्लेषक और टीकाकार इस बात को लेकर उत्साहित हैं कि कैसे जियो रिलायंस रिटेल के 18,500 स्टोर और रिलायंस जियो के 44.85 करोड़ फोन ग्राहकों के भारी भरकम नेटवर्क का फायदा उठा सकती है। क्या जियो एमएफ वास्तव में एमएफ बाजार को बदल सकता है?
‘उथलपुथल’ शब्द इसलिए दिमाग में आता है क्योंकि हम केवल एक नमूने में भी खास पैटर्न देख सकते हैं। क्या रिलायंस ने दूरसंचार कारोबार को पूरी तरह बदलकर नहीं रख दिया? साफ है कि यह कंपनी जिस भी उपभोक्ता कारोबार में प्रवेश करेगी उसमें हलचल मचा देगी। लेकिन क्या रिलायंस रिटेल ने खुदरा कारोबार में उथलपुथल पैदा की?
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बाकी खुदरा कंपनियों की तरह यह बस एक और रिटेल चेन है। अन्य ऑनलाइन तथा ऑफलाइन कारोबार तथा किराना स्टोर भी फलफूल रहे हैं। जियो मार्ट के माध्यम से किराना स्टोरों को एक साथ लाने के उसके ताजा उपक्रम ने भी वैसी हलचल नहीं मचाई जैसी चर्चा थी।
उथलपुथल, दुरुपयोग का शिकार शब्द: उथलपुथल शब्द को सबसे पहले स्वर्गीय प्रोफेसर क्लेटन क्राइस्टेंसन ने इस्तेमाल किया था और इसका अर्थ है एक खास औद्योगिक संदर्भ में एक सुपरिभाषित रुझान का एक खास निष्कर्ष। यह कुछ इस तरह काम करता है। पहला, उद्योग जगत पर कुछ कंपनियों का दबदबा होता है, तभी एक छोटी नई कंपनी बाजार में आती है जिसका मार्जिन कम होता है और उसका उत्पाद भी कमतर तकनीक आधारित होता है और वह बाजार के एक नए लेकिन संकीर्ण हिस्से को सेवाएं देती है।
दूसरा, जिस कंपनी का बाजार पर दबदबा होता है वह चिंतित नहीं होती है क्योंकि दूसरी कंपनी बाजार के बहुत मामूली हिस्से को संबोधित कर रही होती है। तीसरा, चुनौती देने वाली छोटी कंपनी तेजी से बढ़ती है क्योंकि वह एक ऐसी नई जरूरत को पूरा कर रही होती है जिसे इससे पहले किसी और ने पूरा नहीं किया था। कंपनी तेजी से मुनाफा कमाती है और इस तरह एक दिन वह बाजार पर दबदबा रखने वाली कंपनी को चुनौती देने लगती है। जियो के एमएफ कारोबार पर इनमें से कोई बात लागू नहीं होती।
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मांग निर्माण की बाधा: उथलपुथल को भूल जाइए, एमएफ बाजार में तेज वृद्धि हासिल करना भी मुश्किल है। उच्च मांग की राह रोकने वाली तीन वजह हैं। पहला, एमएफ अत्यधिक नियमन वाला बाजार है और वहां अपने दम पर बहुत मांग नहीं तैयार की जा सकती है। एमएफ दूसरों से बहुत अलग उत्पाद नहीं पेश कर सकते या फिर वे उपभोक्ता कंपनियों की तरह झूठे वादे नहीं कर सकते। वे मार्केटिंग के हथकंडे नहीं अपना सकते या मशूहर लोगों से प्रचार नहीं करा सकते।
दूसरा, जीवन बीमा की तरह म्युचुअल फंड के लिए कोई नैसर्गिक मांग नहीं होती है। उन्हें बेचा जाता है न कि खरीदा जाता है। तीसरा म्युचुअल फंड बाजार से संबद्ध होते हैं और इसलिए उनका प्रदर्शन भी बाजार के साथ ऊपर-नीचे होता रहता है। इसके साथ ही इनमें निवेशकों की रुचि भी घटती-बढ़ती रहती है। अगर बाजार लंबे समय तक गिरावट पर रहे तो फंड कंपनी के पास इस चक्र के बदलने की प्रतीक्षा करने के अलावा कुछ नहीं होता है। एक ऐसे देश में जहां सावधि जमा को निवेश का सबसे अच्छा तरीका माना जाता है वहां अगर म्युचुअल फंडका प्रदर्शन बैंक जमा दर से नीचे रहे तो साल-दो साल में ही लोग निराश हो जाते हैं।
चौथा, म्युचुअल फंड की मांग बड़े वितरकों मसलन बैंकों आदि से तैयार होती है जहां बैंक समर्थित फंडों को बढ़त हासिल होती है। यही वजह है कि तीन सबसे बड़े फंड बैंक समर्थित हैं। म्युचुअल फंड वितरकों के लिए प्रोत्साहन पर नियमन है। कोई भी पैसे देकर वफादारी नहीं खरीद सकता। ऐसे में रिलायंस रिटेल के ग्राहकों और फोन उपभोक्ताओं के आंकड़ों का इस्तेमाल करके क्रॉस सेलिंग के अवसरों की बात बढ़ाचढ़ाकर की जा रही है। रिलायंस के ग्राहकों के पास भी जियो फंड खरीदने या न खरीदने के निर्णय को प्रभावित करने वाले कई कारक होंगे।
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आपूर्ति पक्ष: इसमें दो राय नहीं कि जियो म्युचुअल फंड की शुरुआत जोरदार होगी और वह आरंभ में ढेर सारी परिसंपत्तियां एकत्रित करेगा। भारत में वित्तीय बाजारों और संस्थाओं का प्रभाव बढ़ने के साथ ही यह हिस्सेदारी और बढ़ेगी। म्युचुअल फंड की प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियों की बात करें तो भारत के जीडीपी के साथ उसका अनुपात 16 फीसदी है। यह 63 फीसदी के वैश्विक औसत से काफी कम है। यह हिस्सा भी 45 मौजूदा और तीन नए कारोबारियों यानी जीरोधा, बजाज फिनसर्व और जियो के बीच बंटा है। इसमें दो राय नहीं कि और नए कारोबारी इस क्षेत्र में आएंगे।
निवेश में बढ़त? : जियो म्युचुअल फंड के पास आंकड़े होंगे, मशीन लर्निंग होगी और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस भी होगी। उसे ब्लैकरॉक के टेक प्लेटफॉर्म अलादीन की मदद मिलेगी। बहरहाल दीर्घावधि में धन जुटाने में सबसे अहम भूमिका निवेश प्रदर्शन की होगी।
म्युचुअल फंड की बिक्री आसान नहीं है लेकिन उसमें एक सकारात्मक बात यह है कि इनका प्रदर्शन पारदर्शी होता है। अगर फंड का प्रदर्शन अच्छा नहीं है तो कोई तकनीक काम नहीं आएगी। हालांकि संयुक्त उपक्रम की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि ब्लैकरॉक्स को निवेश प्रबंधन, जोखिम प्रबंधन, उत्पाद कौशल, तकनीक पहुंच आदि के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल है।
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ब्लैकरॉक्स के फंड अमेरिका में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले नहीं हैं। मैं देखना चाहता हूं कि जियो फंड्स बाजार के रुझान को कैसे पकड़ते हैं और बेहतर रिस्क समायोजित प्रतिफल कैसे देते हैं? अगर उनके पास ऐसा हुनर होता तो वे उसे गोपनीय रखते। बेहतरीन मुनाफा खुदरा निवेशकों को केवल एक फीसदी शुल्क पर मुहैया नहीं करा दिया जाता।
पैसिव बनाम एक्टिव: यकीनन इस बात को लेकर तमाम अटकलें हैं कि जीरोधा की तरह जियो भी पैसिव फंड उत्पाद मसलन एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स, आदि जारी करेगी लेकिन कम लागत वाले उत्पाद हैं। कई अन्य देशों में पैसिव उत्पाद एक्टिव फंड की तुलना में अधिक लोकप्रिय हो गए हैं। भारत में ऐसा नहीं है क्योंकि म्युचुअल फंड्स के वितरकों के पास भी इन्हें बेचने का प्रोत्साहन नहीं है।
संक्षेप में कहें तो एक ओर जहां जियो एमएफ का आकार निस्संदेह बढ़ेगा वहीं बाजार में शीर्ष पर पहुंचने के लिए उसे कई बाधाएं पार करनी होंगी।
(लेखक मनीलाइफडॉटइन के संपादक हैं)