facebookmetapixel
Share Market: शेयर बाजार में लगातार गिरावट जारी, निवेशकों की बढ़ी चिंताविदेश घूमने जा रहे हैं? ट्रैवल इंश्योरेंस लेते समय ये गलतियां बिल्कुल न करें, नहीं तो होगा बड़ा नुकसानफैमिली फ्लोटर बनाम इंडिविजुअल हेल्थ प्लान: आपके परिवार के लिए कौन सा ज्यादा जरूरी है?NPS New Rules: NPS में करते हैं निवेश? ये पांच जरूरी बदलाव, जो आपको जरूर जानना चाहिएतेल-गैस ड्रिलिंग में उपयोग होने वाले बेराइट का भंडार भारत में खत्म होने की कगार पर, ऊर्जा सुरक्षा पर खतरासोना 70% और चांदी 30%! क्या यही है निवेश का सही फॉर्मूला?एयरलाइन मार्केट में बड़ा उलटफेर! इंडिगो ने एयर इंडिया ग्रुप को अंतरराष्ट्रीय यात्रियों की संख्या में छोड़ा पीछेअब EPF का पैसा ATM और UPI से सीधे इस महीने से निकाल सकेंगे! सरकार ने बता दिया पूरा प्लान8th Pay Commission: रिटायर्ड कर्मचारियों को DA और दूसरे लाभ नहीं मिलेंगे?31 दिसंबर तक बिलेटेड टैक्स रिटर्न फाइल का अंतिम मौका! लेट फीस, फाइन से लेकर ब्याज की पूरी जानकारी

साझा समुद्र में मौजूद संसाधन के लिए होड़

अमीर देश दुर्लभ खनिजों की तलाश में साझा या मुक्त समुद्री क्षेत्र पर नियंत्रण के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। भारत को भी इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करनी चाहिए।

Last Updated- July 31, 2023 | 10:22 PM IST
competition for resources in the common sea
इलस्ट्रेशन- अजय मोहंती

समुद्र वह श​क्ति है जो पृथ्वी पर मानव जीवन को संभव बनाती है क्योंकि वही पृथ्वी की जलवायु का नियमन करता है। पृथ्वी के इर्दगिर्द मौजूद ताप को सहन करने, उसे भंडारित करने और वितरित करने का काम। समुद्र कार्बन सिंक के रूप में काम करता है और ऑक्सीजन का बड़ा स्रोत है। वह जैवविविधता भी कायम रखता है।

हाई सी (साझा समुद्र) दरअसल समुद्र का वह हिस्सा है जो राष्ट्रीय सीमाओं और आ​र्थिक परि​धियों के बाहर है। इसे वैश्विक तौर पर साझा माना जाता है, यह मानवता की साझा विरासत है। पृथ्वी पर जितने भूभाग पर मनुष्य रहते हैं, हाई सी का विस्तार उससे लगभग 1.7 गुना इलाके पर है। यह कुल समुद्री क्षेत्र का 95 फीसदी है।

समुद्री अर्थव्यवस्था अत्य​धिक समृद्ध है। एक अनुमान के मुताबिक वै​श्विक वार्षिक व्यापार में समुद्री वस्तुओं और सेवाओं की हिस्सेदारी 2.5 लाख करोड़ डॉलर का है जो वै​श्विक सकल घरेलू उत्पाद का करीब तीन फीसदी है। सन 2020 में आई संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि रिपोर्ट के अनुसार भविष्य में पूरी दुनिया को जितने प्रोटीन की आवश्यकता होगी उसका दो-तिहाई हिस्सा समुद्र से आ सकता है।

जो​खिम यह है कि हाई सी में अनियंत्रित मानव गतिवि​धियां समुद्र की पारि​स्थितिकी को बुरी तरह प्रभावित कर सकती हैं। बहरहाल, इस दिशा में होड़ शुरू भी हो चुकी है। तकनीकी उन्नति और सरकारी स​ब्सिडी के कारण हाई सी तक पहुंच आसान है। इससे आ​​र्थिक, तकनीकी और सामरिक तीनों पहलुओं पर तेजी से काम हो रहा है।

आ​र्थिक

कोई भी देश हाई सी में खनन कर सकता है। आ​र्थिक संदर्भ में इसका अर्थ है अरबों डॉलर या उससे भी अ​धिक। चीन, ताइवान, जापान, द​क्षिण कोरिया, स्पेन और इंडोने​शिया सभी ने हाई सी में मछली पकड़ने का काम किया है लेकिन अब अन्य देश भी इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। चीन ने 1,900 पोतों की मदद से हाई सी में सबसे बड़ा बेड़ा उतार दिया है।

टूना मछली हिंद महासागर में प्रचुर मात्रा में पाई जाती है वह और शार्क मछली उच्च कीमत वाली मानी जाती है। हाई सी अनेक नई प्रजातियों का भी घर है जिनके जेनेटिक कोड की मदद से नई औष​धियां बनाई जा सकती हैं, नए शोध किए जा सकते हैं।

हाई सी में मौजूद खनिज और धातुओं के लिए भी होड़ लगी हुई है। वहां लाखों लाख टन पॉलिमेटालिक नोड्यूल, पॉलिमेटालिक सल्फाइड्स, कोबाल्ट समृद्ध फेरोमैगनीज क्रस्ट और तांबा, सोना, दुर्लभ धातुएं आदि मौजूद हैं।

सन 1982 में अपनी स्थापना के बाद से ही इंटरनैशनल सीबेड अथॉरिटी (आईएसए) ने समुद्र तल में 15 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में उत्खनन के 31 अनुबंध किए हैं। यहां भी चीन ने पांच अनुबंधों के साथ बाजी मारी है। आईएसए ने चीन में डीप सी ट्रेनिंग ऐंड रिसर्च सेंटर की भी स्थापना की है। अब कई देश खनन की इजाजत की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

Also read: Editorial: आर्थिक वृद्धि में धीमापन

इन गहराइयों में मौजूद दबाव को झेलने के लिए नई तकनीक विकसित की जा रही हैं। सतह से 3,700 मीटर नीचे इतना दबाव होता है कि लोहे की एक गेंद भी चकनाचूर हो सकती है।

शुरुआत में अपेक्षाकृत कम गहराई में खनन करने की योजना है यानी करीब 1,000 मीटर या उससे कम। पर्यावरण और पारि​स्थितिकी से जुड़ी चिंताओं के कारण आईएसए ने उत्खनन की इजाजत नहीं दी है। परंतु दशकों तक पर्यावरणविदों तथा ठेकेदारों से विपरीत पक्षों पर बात करने के बाद आईएसए के हाथ संयुक्त राष्ट्र के एक प्रावधान से बंधे रहे।

अब उम्मीद की जा रही है कि इस वर्ष खनन की इजाजत मिल जाएगी। संयुक्त राष्ट्र ने जून 2024 में जिस हाई सी सं​धि को मंजूरी दी है उससे इस क्षेत्र में कुछ नियमन लागू होने की उम्मीद है।

तकनीकी

चूंकि गहरे सागर में नई तकनीक आवश्यक हैं इसलिए इस दिशा में भी होड़ है। गहरे समुद्र में मानवरहित या मानवसहित पनडु​ब्बियां भेजना अहम है। सबसे पहले अमेरिका ने 2012 में 10,925 मीटर की गहराई में मानव सहित पनडुब्बी भेजी थी। चीन 2020 में 10,000 मीटर की गहराई तक गया और उसने ऐसा कई बार किया।

जापान, रूस और फ्रांस के पास भी ऐसी पनडु​ब्बियां हैं जो लोगों को 6,000 से 6,500 मीटर की गहराई तक ले जा सकती हैं। भारत की योजना भी 6,000 मीटर की गहराई तक मानव सहित पनडुब्बी ले जाने की है लेकिन फिलहाल उसकी क्षमता केवल मानवरहित पनडु​​ब्बियों की है। पर्यावरण के अनुकूल खनन के लिए तकनीक आवश्यक है ताकि खनन के दौरान प्रदूषण न हो।

Also read: राष्ट्र की बात: सीधे आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी

सामरिक

अगले कुछ दशकों में हाई सी पर दबदबे से ही वैश्विक प्रभाव निर्धारित होगा। ऐसे में यह सामरिक दृ​ष्टि से भी अहम है। विभिन्न देश हाई सी से संबंद्ध वै​श्विक निर्णय प्रक्रिया के ढांचे को किनारे करना चाहते हैं। अमेरिका और चीन इस पर दीर्घकालिक दृष्टि से नजर रखे हुए हैं। हाई सी चीन को यह अवसर प्रदान करता है कि वह दोहरे उद्देश्य वाले पोतों को हिंद महासागर और प्रशांत महासागर में सामरिक दृ​​ष्टि से अहम जगहों पर तैनात करे। भारत को हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करनी चाहिए।

वैश्विक व्यापार का 80 फीसदी हिस्सा हिंद महासागर से होकर गुजरता है। वहां चीन के पोतों की मौजूदगी इस क्षेत्र की समुद्री सुरक्षा को खतरे में डालेगी। अमेरिका और प​श्चिमी दुनिया भी गहरे समुद्र में खनन पर नजर जमाए हुए हैं। वे अहम खनिज के मामले में चीन का दबदबा तोड़ना चाहते हैं। खासकर हाल में चीन द्वारा गैलियम और जर्मेनियम के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए जाने को देखते हुए।

भारत का बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है क्योंकि हिंद महासागर उसके जमीनी आकार का 19 गुना बड़ा है और कुल हाई सी में 25 फीसदी हिस्सेदारी हिंद महासागर की है। भारत को खनिज उत्खनन के लिए मध्य हिंद महासागर बेसिन में 75,000 वर्ग किलोमीटर और द​क्षिण प​श्चिम में 10,000 वर्ग किलोमीटर इलाका आवंटित किया गया है।

Also read: सियासी हलचल : विपक्ष के तरकश में आखिरी तीर

अनुमान है कि यहां 38 करोड़ टन निकल, कॉपर, कोबाल्ट और मैगनीज है। परंतु भारत के पास खनन की क्षमता नहीं है। हमें हाई सी पर प्रभाव की आ​र्थिक, तकनीकी और सामरिक दौड़ में आगे रहना होगा। इसके लिए सरकार को समग्र रुख अपनाना होगा क्योंकि इससे निपटना किसी एक मंत्रालय के बस का नहीं है।

भारत अपने नवाचार की बदौलत सतत उत्खनन की तकनीक विकसित कर सकता है। इसके लिए गहरे समुद्री क्षेत्र को भी अंतरिक्ष की तरह खोलना होगा। हिंद महासागर से इतर भी हाई सी के उत्खनन के क्षेत्र में द्विपक्षीय या बहुपक्षीय सहयोग पर विचार किया जा सकता है। यह सहयोग क्वाड समूह जैसे समान सोच वाले देशों के साथ किया जा सकता है। अगले कदम के रूप में एक कार्य बल गठित किया जाना चाहिए जो अगले 25 वर्ष में हाई सी के लिए खाका पेश कर सके।

(लेखक पूर्व रक्षा सचिव और आईआईटी कानपुर के अति​थि प्राध्यापक हैं)

First Published - July 31, 2023 | 10:22 PM IST

संबंधित पोस्ट