कई लोगों का मानना है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार (Modi Govt) को कुछ ही दिनों में जिस अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ेगा वह सेल्फ-गोल (आत्मघाती) जैसा ही है।
लोकसभा में विपक्षी दल के एक सांसद का कहना है, ‘हम अविश्वास प्रस्ताव को अपने तरकश का एक अहम हथियार मानते रहे हैं। लेकिन यह मुख्य मुद्दा नहीं था क्योंकि हमें इस बात का अच्छी तरह अंदाजा था कि आंकड़े हमारे खिलाफ हैं।’
वह कहते हैं, ‘अगर प्रधानमंत्री ने लोकसभा में ‘मणिपुर’ शब्द कहा होता (उन्होंने उस शर्मनाक वीडियो के बारे में संसद भवन के बाहर कुछ कहा और हमने सोचा कि वह सदन में भी इस मामले पर चर्चा करेंगे) तब हमने दबाव डाला होता कि इस पर चर्चा कराई जाए। हम चाहते थे कि प्रधानमंत्री बोलें, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। अब हमारे पास न केवल लोकसभा में बल्कि राज्यसभा में भी सरकार को कठघरे में खड़ा करने का मौका है और उनकी विफलता न केवल मणिपुर में साबित हुई है जबकि कई अन्य मुद्दों पर भी यह उजागर हुआ है और इसके लिए सरकार ही दोषी है।’
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी कहते हैं, ‘यह संख्या बल का नहीं बल्कि नैतिकता का मामला है। कौन जानता है, मणिपुर में होने वाली घटनाएं शायद सत्ताधारी पार्टी के कुछ सांसदों को भी हमारे साथ मिलकर मतदान करने के लिए बाध्य कर दें!’ विपक्ष सरकार पर निशाना साधने के लिए तैयार है। वहीं सत्तारूढ़ गठबंधन, संसद के मॉनसून सत्र में जितना संभव हो उतने विधेयकों को पारित करने के लिए आगे बढ़ा रहा है।
दूसरी तरफ असम के कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने इस तरह की कार्रवाई को ‘अवैध’ बताया है। गोगोई का कहना है, ‘जब अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया गया है और अध्यक्ष (ओम बिरला) ने इसे स्वीकार कर लिया है तब नियम यह है कि सरकार को अविश्वास प्रस्ताव को प्राथमिकता देनी चाहिए और अन्य सभी कार्यवाही रोक देनी चाहिए।
सोच यह है कि अगर अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है तब सरकार को इस्तीफा देना होगा और वैसी स्थिति में इसकी वैधता सवालों के घेरे में आ जाती है। यह सरकार विधेयकों को ऐसे पारित कर रही है जैसे यह कोई सामान्य दिनचर्या का काम हो। ’
लोकसभा अध्यक्ष अविश्वास प्रस्ताव के लिए उचित तारीख पर विचार कर रहे हैं और इसी दौरान खान एवं खनिज (विकास व विनियमन) संशोधन विधेयक, 2023, राष्ट्रीय नर्सिंग और मिडवाइफरी आयोग विधेयक, 2023, और राष्ट्रीय दंत चिकित्सा आयोग विधेयक, 2023 लोकसभा में पहले ही पारित हो चुका है। निचले सदन ने 30 मिनट में वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023 पारित किया था।
राज्यसभा में संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (तीसरा संशोधन) विधेयक, 2022 ध्वनिमत से उस दौरान पारित किया गया जब विपक्ष ने वॉकआउट किया। राज्यसभा ने सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) विधेयक, 2023 को भी मंजूरी दे दी।
संसद भवन के बाहर केंद्रीय संसदीय मामलों के मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा, ‘हमने विपक्ष से चर्चा (मणिपुर) कराने के लिए कहा था। लेकिन इनकी मांग अविश्वास प्रस्ताव को लेकर थी। निश्चित रूप से हम इस गुट को हरा देंगे लेकिन सवाल यह है कि क्या विपक्ष यह सोचता है कि सरकार इस बीच काम करना बंद कर देगी?’
संख्या बल नहीं बल्कि भाषण अहम
विशेषज्ञों का कहना है कि अविश्वास प्रस्ताव लाने का मतलब सरकार के पास संख्याबल होना और आंकड़ों के आधार पर प्रस्ताव जीतना नहीं है बल्कि इसका संबंध पूरी राजनीति प्रक्रिया से है। उनका कहना है कि मौजूदा गतिरोध इसलिए पैदा हुआ कि प्रधानमंत्री ने संसद में मणिपुर पर बयान देने की विपक्ष की मांग नजरअंदाज कर दी। ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव, प्रधानमंत्री को बोलने के लिए मजबूर कर सकता है कि वह मणिपुर पर बोलें या नहीं।
संसदीय इतिहास के जानकार एक विशेषज्ञ का कहना है, ‘अविश्वास प्रस्ताव में वाक्पटुता की पूरी आजमाइश होती है। अमूमन, इस दौरान गुणवत्तापूर्ण भाषण दिए जाते हैं। भारत के इतिहास में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान ही कुछ सर्वश्रेष्ठ संसदीय भाषण दिए गए हैं। अगर बोलने की बात आती है तब इस लिहाज से प्रधानमंत्री का भाषण शानदार होता है, वास्तव में विपक्ष में कोई भी ऐसा नहीं है जो उनकी बराबरी कर सके। हालांकि विपक्ष के पास राज्यसभा में अच्छे वक्ता हैं। लेकिन वहां इस मामले में नियम 267 के तहत चर्चा की जाएगी। यह समान नहीं होगा।’ हालांकि इस बारे में कोई नियम नहीं है कि सरकार में किसे अविश्वास प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देनी चाहिए। सैद्धांतिक रूप से प्रधानमंत्री को ही प्रतिक्रिया देनी चाहिए।
लेकिन 1981 में जब विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी विदेश में थीं इसलिए सत्ता में उनके बाद दूसरे पायदान पर मौजूद वित्त मंत्री आर वेंकटरमण ने इस पर जवाब दिया था।
विशेषज्ञों का कहना है, ‘अगर सरकार चाहे तो प्रधानमंत्री की जगह पशुपालन मंत्री अविश्वास प्रस्ताव का जवाब दे सकते हैं। हमें यह देखना होगा कि क्या होता है।’ विशेषज्ञों का कहना है कि यह बेहद जटिल है।
व्यापक रूप से मानी जाने वाली विशेषज्ञ राय यही है कि मणिपुर सिर्फ कानून-व्यवस्था का मुद्दा नहीं है। कई विदेशी संसदों और विदेशी सरकारों ने मणिपुर संकट से निपटने के भारत सरकार के तरीके पर सवाल उठाए हैं। केवल प्रधानमंत्री ही इस मुद्दे पर निर्णायक तरीके से और आधिकारिक रूप से खंडन कर सकते हैं। विपक्ष की भी यही मांग है।’
14वीं और 15वीं लोकसभा के पूर्व महासचिव पी डी टी आचार्य कहते हैं, ‘अविश्वास प्रस्ताव किसी सरकार को पद से हटाने के लिए महज एक संसदीय माध्यम नहीं है। यह किसी सरकार के खिलाफ निराशा या आक्रोश दर्ज करने का भी एक तरीका है।’
भाजपा सांसद महेश जेठमलानी ने अविश्वास प्रस्ताव पर ट्वीट किया, ‘जितना अधिक आप सिकुड़ते हैं, उतना ही नीचे गिरते हैं और अक्सर बुरी तरह हारने वालों के साथ ऐसा ही होता है।’
उन्होंने कहा, ‘वर्ष 2014 के बाद से, लोकसभा में विपक्ष का कोई नेता नहीं रहा है। वर्ष 2014 के बाद से किसी भी विपक्षी दल ने उस सदन में आवश्यक 10 प्रतिशत सीटें हासिल करने में भी सफलता नहीं पाई। दो बार चुनावों में मतदाताओं का विश्वास बुरी तरह खोने के बावजूद, विपक्षी दलों के लिए विनम्र होना तो दूर की बात है वे केवल प्रासंगिक दिखने के लिए हास्यास्पद तरीकों का सहारा लेते हैं।’ अब मंच तैयार है। बाकी लाइटें और कैमरे का इंतजार है।