भारत में पैदा हुए लगभग 3.2 करोड़ लोग विदेश में रहना पसंद करते हैं। लगभग 1.8 करोड़ लोग किसी और देश के नागरिक बन गए हैं जबकि लगभग 1.4 करोड़ प्रवासी भारतीय (एनआरआई) हैं। प्रवासी भारतीयों का एक बड़ा वर्ग उच्च शिक्षित है। इनमें से कई लोग पहले पढ़ाई करने के लिए विदेश गए और बाद में वहां उन्हें रोजगार का मौका मिल गया।
बाकी धनाढ्य लोग हैं जिन्होंने दुबई और सिंगापुर जैसी जगहों पर गोल्डन वीजा के लिए भुगतान करने का विकल्प चुना, जहां कर की दरें कम हैं और कारोबार करने में काफी सहूलियत भी मिलती है।
भारत से परदेस जाने के सिलसिले की शुरुआत में फिजी और गुयाना के बागानों में काम करने और अफ्रीका में रेलवे का निर्माण करने के लिए यहां से जाने वाले लोगों में श्रमिकों का वर्ग शामिल था। उनके बाद छोटे कारोबारियों की संख्या बढ़ी। वर्ष 1960 के दशक में ब्रिटेन और उत्तरी अमेरिका ने उनके देश में आने के नियमों में थोड़ी ढील दी जिसके बाद उच्च शिक्षित पेशेवरों ने वहां जाना शुरू कर दिया। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के स्नातकों के हर बैच में से आधे से अधिक छात्र विदेश चले जाते हैं।
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इसके अलावा 1960 के दशक के बाद से आदित्य बिड़ला और फिर लक्ष्मी मित्तल और अनिल अग्रवाल की पीढ़ी ने भी विदेशों में बड़े कारोबार स्थापित करने शुरू कर दिए। ऐसा कहा जाता है कि प्रवासन की गति पिछले दशक में तेज हुई है। लेकिन ये आंकड़े काफी पीछे हैं (मिसाल के तौर पर अमेरिका की नागरिकता लेने में कई वर्ष लगते हैं)। ऐसे में निश्चित तौर पर कुछ भी कहना मुश्किल है। पिछले कुछ सालों में दुबई और सिंगापुर में भारतीयों ने बड़ी तादाद में स्टार्टअप स्थापित की हैं।
कुल मिलाकर, यह 3.2 करोड़ लोगों का पलायन एक बड़े अवसर की लागत के समान है। यह भारत की आबादी का लगभग 2.2 प्रतिशत है। हालांकि अगर वे भारत से बाहर रहते हैं और काम करते हैं, तब भी वे सकल घरेलू उत्पाद या (जीडीपी) में योगदान देंगे। आधिकारिक चैनलों के माध्यम से भारत में एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के पास भेजी गई रकम के आंकड़े ने वर्ष 2022 में 100 अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर लिया और यह सकल घरेलू उत्पाद का 3.7 प्रतिशत है।
यदि वे लोग यहीं रहने लगते हैं और काम करते हैं तब वे जीडीपी में इससे कई गुना अधिक का योगदान दे सकते हैं। हर साल विदेश जाने की चाह रखने वाले ऐसे युवा भी हैं लेकिन अगर प्रतिभा का पलायन इसी तरह जारी रहा तब कौशल विकास और कमाई करने की क्षमता खत्म हो जाएगी।
सवाल यह है कि अपने देश को छोड़कर विदेश में बसने के क्या कारण हैं? पहला, एक उच्च शिक्षित वर्ग के लोगों के लिए देश में तुलनात्मक रूप से अवसर की कमी है। चाहे कारोबार हो, शोध या पेशेवर मौके हों, विदेश में कहीं अधिक विकल्प हैं।
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एक और कारण जिसका अक्सर हवाला दिया जाता है वह है भारतीय पासपोर्ट की कमजोरी। एक भारतीय नागरिक को व्यावहारिक रूप से किसी भी विकसित देश के लिए वीजा पाने के लिए (जब तक कि उन्होंने कहीं और स्थायी निवासी बनने में सफलता न पाई हो) किसी सहयोगात्मक कार्यों के माध्यम का इस्तेमाल करना पड़ता है। इसीलिए, गोल्डन वीजा और 10 साल के अमेरिकी वीजा के लिए इतनी भीड़ दिखती है।
एक तीसरा कारण जटिल और आश्चर्य में डालने वाली कर और लाइसेंसिंग व्यवस्था है। भारत में कारोबार स्थापित करना एक भयावह (और हमेशा से उबाऊ) प्रक्रिया है क्योंकि इसके लिए कई तरह के नियमों को पूरा करना पड़ता है। इसी तरह कर दाखिल करने और खातों को दुरुस्त रखने के लिए भी लगातार कागजी कार्रवाई की जरूरत होती है।
यदि कोई अनुबंध से जुड़ा मुद्दा भी है तब भी भारत समाधान के मामले में दुनिया के सबसे खराब स्थानों में से एक है। यह सीमा पार लेनदेन वाले कारोबारों के लिहाज से और भी बदतर हो जाता है। किसी भी नीति के तहत अगर प्रतिभा पलायन को रोकने की कोशिश की जाती है तब उसमें इन जटिल मुद्दों को भी शामिल करना होगा।
हर जगह, भारतीय पासपोर्ट देखते ही अप्रवासन अधिकारी ज्यादा सतर्क क्यों हो जाते हैं और सरकार ने सक्रियता से भारतीय पासपोर्टधारकों की अन्य देशों में पहुंच के स्तर में सुधार करने की कोशिश क्यों नहीं की है? ऐसा लगता है कि भारत सरकार की तमाम कूटनीतिक पहुंच और सभी आधिकारिक विदेश यात्राओं ने आम भारतीयों के लिए विदेश यात्रा की राह आसान नहीं बनाई है।
भारत में उच्च शिक्षित लोगों के लिए अवसर तैयार करने के लिए यह आवश्यक होगा कि शोध संस्थानों और उच्च तकनीक वाले कारोबारों को यहां लाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। भारत में सरकारी बजट सहायता और अनुसंधान एवं विकास से जुड़े निजी संस्थानों यानी दोनों के ही माध्यम से शोध में घरेलू निवेश का अनुपात बेहद कम है।
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शोध एवं विकास क्षेत्र (आरऐंडडी) में अधिक निवेश आकर्षित करने से आरऐंडडी निवेश नियमों को आसान बनाया जा सकेगा। इसके लिए कर में छूट के साथ-साथ भारत में आने वाले अकादमिक जगत के लोगों पर कम सख्ती से ही एक लंबी राह तय हो सकेगी।
इस व्यापक बिंदु पर विचार करने के लिए क्या महत्त्वपूर्ण होगा? कर प्रक्रियाओं और कागजी कार्रवाई को सुव्यवस्थित करना एक बड़ी बात होगी और यह भारत बनाम सिंगापुर को देखते हुए केवल उद्यमी के लिए ही नहीं होगी। यह घरेलू स्तर पर मौजूद कारोबारों के लिए भी अहम होगा।
निश्चित रूप से यह कोई आसान काम नहीं है क्योंकि पिछले 50 वर्षों में कोई भी सरकार प्रतिभा पलायन को रोकने में सफल नहीं रही है। लेकिन आंकड़ों से पता चलता है कि अगर कोई सरकार प्रतिभा पलायन को रोकने के लिए बड़ा अभियान शुरू कर देती है तो यह बेहद फायदेमंद हो सकता है।