जब किसी मरीज की हालत गंभीर होने लगती है तब डॉक्टर उसके खून में ऑक्सीजन के स्तर की लगातार जांच करते रहते हैं। पल्स ऑक्सीमीटर पर व्यक्ति के खून में ऑक्सीजन का प्रतिशत दिखने लगता है। डॉक्टर, आमतौर पर किसी स्वस्थ व्यक्ति का रक्तचाप और ब्लड शुगर की जांच कर यह तय करता है कि वह स्वस्थ है या नहीं। इसी तरह आप मरीज या किसी स्वस्थ व्यक्ति की जगह एक बैंक और डॉक्टर की जगह किसी बैंकिंग विश्लेषक को रखकर देखें।
जब कुछ भारतीय बैंकों की स्थिति खराब थी तब उनका पूरा जोर उनकी परिसंपत्तियों की गुणवत्ता पर था जैसे कि इन बैंकों के बहीखातों में कितनी गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां या फंसा कर्ज (एनपीए) है। ये फंसा कर्ज ऑक्सीमीटर है। बेशक, खून में ऑक्सीजन के विपरीत, बैंक का एनपीए जितना कम हो, बैंक का प्रदर्शन उतना ही बेहतर होता है।
जब बैंकिंग क्षेत्र की स्थिति बेहतर होती है तब पूरा ध्यान अन्य मापदंडों पर जाता है, जैसे कि शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम)। इसे आसान शब्दों में कहा जाए तो यह बैंक द्वारा जमा राशि पर किए जाने वाले खर्च करता है और ऋण के जरिये कितना कमाता है। यह बैंक के लाभ का एक प्रमुख संकेतक है।
इसके अलावा एक और मानक, कम लागत वाले चालू और बचत खाते (कासा) होते हैं। हालांकि, एनआईएम और कासा को अलग-अलग नहीं देखा जा सकता। उदाहरण के लिए छोटे असुरक्षित ऋण देने वाला बैंक, कॉरपोरेट ऋण देने वाले बैंक से अधिक शुद्ध ब्याज मार्जिन हासिल कर सकता है लेकिन असुरक्षित ऋण के चलते फंसे हुए कर्ज की तादाद अधिक हो सकती है।
वार्षिक आधार पर (यानी दिसंबर 2023 तिमाही की तुलना दिसंबर 2022 तिमाही से करने पर) सभी सूचीबद्ध बैंकों में से छह ने शुद्ध ब्याज मार्जिन में वृद्धि दर्ज की है। इनमें बंधन बैंक, आरबीएल बैंक, आईडीएफसी फर्स्ट बैंक, आईडीबीआई बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और केनरा बैंक शामिल हैं। अन्य दो बैंकों, इंडसइंड बैंक और पंजाब नैशनल बैंक के शुद्ध ब्याज मार्जिन में कोई बदलाव नहीं हुआ।
तिमाही आधार पर (सितंबर 2023 की तुलना में दिसंबर 2023 में) कोई समान रुझान नहीं देखा गया है, लेकिन अधिक बैंकों ने दिसंबर में एनआईएम में कमी दर्ज की है। चार बैंकों के एनआईएम में तिमाही आधार पर कोई बदलाव नहीं हुए। ये बैंक हैं एचडीएफसी बैंक (3.4 प्रतिशत), कोटक महिंद्रा बैंक (5.22 प्रतिशत), इंडियन ओवरसीज बैंक (3.12 प्रतिशत) और बंधन बैंक (7.2 प्रतिशत)।
कम से कम पांच निजी बैंकों ने दिसंबर तिमाही में 5 प्रतिशत से अधिक एनआईएम दर्ज किया है। बंधन बैंक और कोटक महिंद्रा बैंक के अलावा इस सूची में अन्य तीन बैंक, आईडीएफसी फर्स्ट बैंक (6.42 प्रतिशत), आरबीएल बैंक (5.52 प्रतिशत), सीएसबी बैंक लिमिटेड (5.1 प्रतिशत) हैं।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में, बैंक ऑफ महाराष्ट्र का एनआईएम सबसे अधिक (3.95 प्रतिशत) है। उसके बाद इंडियन बैंक (3.49 प्रतिशत), भारतीय स्टेट बैंक (3.34 प्रतिशत), पंजाब नैशनल बैंक (3.3 प्रतिशत) और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (3.28 प्रतिशत) का स्थान आता है।
सबसे कम एनआईएम के लिहाज से देखा जाए तो जम्मू ऐंड कश्मीर बैंक लिमिटेड का एनआईएम सबसे कम (0.96 प्रतिशत) है। उसके बाद येस बैंक लिमिटेड (2.4 प्रतिशत), पंजाब ऐंड सिंध बैंक (2.54 प्रतिशत) और बैंक ऑफ इंडिया (2.85 प्रतिशत) का स्थान आता है। बाकी सभी बैंकों का एनआईएम कम से कम 3 प्रतिशत है।
जहां तक कासा का सवाल है 32 में से 31 सूचीबद्ध बैंकों में पिछले साल की तुलना में सालाना कासा अनुपात में कमी आई है। इसमें एकमात्र अपवाद, तमिलनाडु मर्केंटाइल बैंक लिमिटेड है। हालांकि इसमें मामूली वृद्धि है जो 29.58 प्रतिशत से 30 प्रतिशत तक है। तिमाही आधार पर भी,जिन बैंकों में कम लागत वाली जमा राशि में कमी दर्ज की गई है, उनकी संख्या बढ़ गई है।
एचडीएफसी बैंक ने सालाना आधार पर कासा अनुपात में दिसंबर तिमाही (44 प्रतिशत से 38 प्रतिशत) में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की है । अन्य प्रमुख बैंकों में गिरावट की बात करें तो इनमें कोटक महिंद्रा बैंक (53.3 से 47.7 फीसदी), आईसीआईसीआई बैंक (44.6 से 39.4 फीसदी), आईडीबीआई बैंक (54.44 से 49.88 फीसदी), सीएसबी बैंक (31.44 से 27.58 फीसदी), फेडरल बैंक लिमिटेड (34.24 से 30.63 फीसदी), आईडीएफसी फर्स्ट बैंक (50 से 46.80 फीसदी), जम्मू ऐंड कश्मीर बैंक (53.76 से 50.59 प्रतिशत) और ऐक्सिस बैंक (45 से 42 प्रतिशत) का नाम शामिल है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में, एसबीआई ने सबसे तेज गिरावट (44.48 से 41.18 प्रतिशत) दर्ज की है।
दिसंबर 2023 तिमाही में केवल एक बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र (50.59 फीसदी) का कासा अनुपात 50 प्रतिशत से अधिक था जबकि दिसंबर 2022 में ऐसे छह बैंक थे। चार अन्य बैंकों का कासा अनुपात 45 प्रतिशत से अधिक है लेकिन 50 प्रतिशत से कम है जिनमें आईडीबीआई बैंक (49.88 प्रतिशत), सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (48.98 प्रतिशत), कोटक महिंद्रा बैंक (47.7 प्रतिशत) और आईडीएफसी फर्स्ट बैंक (46.8 प्रतिशत) शामिल हैं। वहीं डीसीबी बैंक का कासा अनुपात सबसे कम (26.13 प्रतिशत) है।
केवल कासा से ही हमें किसी बैंक के फंड की लागत का पूरा अंदाजा नहीं मिलता है। चालू खाता पर कोई ब्याज नहीं मिलता जबकि बचत खातों पर ब्याज, बैंक और जमा राशि के आधार पर 2.7 प्रतिशत से 8 प्रतिशत तक हो सकता है। ऐसे में जमा और ऋण में वृद्धि के बारे में क्या कहा जा सकता है?
सूचीबद्ध निजी बैंकों के समूह के ऋण (अग्रिम) में पिछले साल की तुलना में (सालाना) 31.35 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि जमा में मात्र 20.07 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 11 सरकारी बैंकों के ऋण और जमा दोनों में वृद्धि, निजी बैंकों से कम है जो क्रमशः 20.18 प्रतिशत और 13.85 प्रतिशत है।
लेकिन, जमा और ऋण में वृद्धि के बीच का अंतर कुछ बैंकों में दिखता है। उदाहरण के लिए एचडीएफसी बैंक के ऋण में 62.34 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जबकि जमा में केवल 27.74 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। (बैंक के साथ एचडीएफसी के विलय के कारण ही जमा और ऋण में वृद्धि के बीच का अंतर दिखने के साथ ही कासा में कमी है) यूको बैंक के ऋण पोर्टफोलियो में 18.63 फीसदी की वृद्धि हुई है जबकि जमा में 5.38 फीसदी की वृद्धि हुई है।
इसी तरह इंडिया ओवरसीज बैंक में जमा राशि में 7.99 फीसदी की वृद्धि हुई है जबकि ऋण में 23.49 फीसदी की वृद्धि हुई है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि नियामक बैंकों के ऋण-जमा के अनुपात पर नजर रख रहा है। आगे जब जमा को लेकर संघर्ष बढ़ेगा तब पूंजी का लागत बढ़ेगी और मार्जिन पर भी दबाव बढ़ेगा। दरों में पहली कटौती का इंतजार करने के साथ ही इस मोड़ पर ऋण वृद्धि के हिसाब से जमा का स्तर बढ़ाना और फंसे हुए कर्ज के स्तर को कम करना, बैंक का प्रमुख एजेंडा है।