facebookmetapixel
Upcoming IPOs: Jio, फ्लिपकार्ट, PhonePe से लेकर OYO तक; 2026 में इन बड़े नाम के आएंगे IPOMarket Outlook: नए साल से पहले बाजार की चाल तय करेंगे मैक्रो आंकड़े और वैश्विक संकेतBonus Stocks: 2025 की विदाई और 2026 की शुरुआत में निवेशकों को तोहफा, दो कंपनियां बाटेंगी बोनसStock Split: अगले हफ्ते दो कंपनियां अपने शेयरों का करेंगी बंटवारा, रिकॉर्ड-डेट पर सबकी नजरयूके एफटीए से अमेरिका टैरिफ विवाद तक: 2025 में भारत की ट्रेड पॉलिसी की तस्वीरMCap: सात बड़ी कंपनियों का मार्केट कैप डूबा, SBI सबसे बड़ा नुकसान उठाने वालीIncome Tax Refund: टैक्सपेयर्स ध्यान दें! ITR में छूटी जानकारी या गलत दावा? अब सही करने का आखिरी अवसरZepto IPO: SEBI में गोपनीय ड्राफ्ट फाइल, ₹11,000 करोड़ जुटाने की तैयारीFake rabies vaccine row: IIL का बयान- रैबीज वैक्सीन से डरने की जरूरत नहीं, फर्जी बैच हटाया गयाDelhi Weather Update: स्मॉग की चादर में लिपटी दिल्ली, सांस लेना हुआ मुश्किल; कई इलाकों में AQI 400 के पार

Editorial: विकेंद्रीकरण की राह

पिछले एक दशक में उत्तर प्रदेश और बिहार में काफी हद तक सुधार दिखे हैं मगर देश के राज्यों के बीच विषमता भी उतनी ही तेजी से बढ़ी है।

Last Updated- February 25, 2025 | 11:12 PM IST
Sebi levels playing field: FVCIs subject to same governance norms as FPIs विदेशी VC निवेशकों के लिए भी FPI जैसे गवर्नेंस नियम, SEBI ने बराबरी के लिए जारी की अधिसूचना
प्रतीकात्मक तस्वीर

पंचायती राज मंत्रालय और भारतीय लोक प्रशासन संस्थान ने हाल में जारी अपनी एक रिपोर्ट में विकेंद्रीकरण की दिशा में किए गए भारत के प्रयासों का व्यापक विश्लेषण किया है। सरकार ने संघीय ढांचे में विकेंद्रीकरण को बढ़ावा देने के लिए राज्य-स्तरीय अंतरण सूचकांक (डीआई) का जिक्र किया है। सूचकांक पंचायती राज संस्थानों को निर्देशित करने वाले संस्थागत ढांचे, ग्राम पंचायतों के कामकाज, उनकी वित्तीय व्यवस्था, स्थानीय स्तर पर क्षमता निर्माण और जवाबदेही जैसे महत्त्वपूर्ण पहलुओं की समीक्षा करता है।

रिपोर्ट में राज्यों को साक्ष्य आधारित वरीयता क्रम में रखा गया है जिसमें प्रगति के साथ ही उन बिंदुओं का भी जिक्र किया गया है जिन पर और ध्यान देने की जरूरत है। ग्रामीण निकायों के लिए कुल अंतरण 2013-14 के 39.9 प्रतिशत से बढ़ाकर 2020-21 में 43.9 प्रतिशत कर दिया गया है। सभी संकेतकों के आधार पर देश के दक्षिणी राज्य, विशेषकर, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु दूसरे राज्यों से काफी आगे दिखाई देते हैं। कर्नाटक डीआई वैल्यू 72.23 के साथ शीर्ष स्थान पर है। अन्य राज्यों में महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु ने भी बाजी मारी है। इस बीच, पिछले एक दशक में उत्तर प्रदेश और बिहार में काफी हद तक सुधार दिखे हैं मगर देश के राज्यों के बीच विषमता भी उतनी ही तेजी से बढ़ी है। मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, झारखंड और पंजाब में विकेंद्रीकरण के लिहाज से खराब स्थिति में हैं।

इस रिपोर्ट में अपर्याप्त वित्त, खासकर स्वयं अपने दम पर राजस्व अर्जित करने में ग्राम पंचायतों की दयनीय स्थिति, कमजोर बुनियादी ढांचा और मानव संसाधनों की कमी ग्राम पंचायतों के सामने बड़े चुनौती के रूप में उभरे हैं। ग्राम पंचायतों के उनके अपने राजस्व की राज्यों के राजस्व में हिस्सेदारी काफी कम रही है, जो वित्तीय स्वायत्तता में कमी का संकेत दे रहा है। देश के सभी राज्यों की बात करें तो केरल में ग्राम पंचायतों की राज्य के राजस्व में 2021-22 में सर्वाधिक हिस्सेदारी रही मगर 2.84 प्रतिशत के स्तर पर यह भी मामूली ही कही जा सकती है। वास्तविकता यह है कि वित्तीय बाधाओं के कारण पंचायती राज्य संस्थान अपनी पूर्ण क्षमता के साथ काम-काज नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि वे वित्तीय मदद के लिए सरकार के ऊपरी स्तरों पर निर्भर हैं। कई राज्यों में समय पर राज्य वित्त आयोग का गठन नहीं होने से भी परिस्थिति बिगड़ी है। अब तक केवल 10 राज्यों ने छठे राज्य वित्त आयोग का गठन किया है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने पिछले साल पंचायती राज्य संस्थाओं पर एक अध्ययन किया था। इस अध्ययन में भी भारत में वित्तीय अधिकारों के अत्यधिक केंद्रीकरण का जिक्र किया गया था और इसमें राज्य सरकार भी कम जिम्मेदार नहीं ठहराए गए थे। इस अध्ययन में कहा गया कि पंचायती राज्य संस्थाओं का राजस्व व्यय सभी राज्यों के सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 0.6 प्रतिशत से भी कम था। वित्तीय प्रबंधन के अलावा रिपोर्ट में ग्राम पंचायतों में सहायक कर्मचारियों की भारी कमी का भी जिक्र किया गया है। कुछ पूर्वोत्तर एवं पहाड़ी राज्य अपर्याप्त भौतिक एवं डिजिटल ढांचे की कमी से जूझ रहे हैं। महिलाओं की सहभागिता के लिहाज से कुछ राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश जैसे पंजाब, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और जम्मू कश्मीर अब भी निर्धारित मानक का पालन नहीं कर पा रहे हैं। इसके विपरीत झारखंड, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में महिलाओं के लिए आरक्षित सीट निर्धारित कोटा से कहीं अधिक है।

स्विट्जरलैंड और स्कैंडिनेवियाई देशों (स्वीडन, नॉर्वे और डेनमार्क) के उदाहरण हमें बताते हैं कि सरकार एवं लोक वित्त के विकेंद्रीकरण के कैसे बेहतर परिणाम हासिल किए जा सकते हैं। बेशक, पिछले कुछ वर्षों में पंचायती राज्य संस्थाओं की स्थिति में सुधार हुआ है किंतु वित्तीय संसाधन जुटाने और प्रशासनिक क्षमता विकसित करने के लिहाज से उन्हें इसमें और सुधार करना होगा। इस संदर्भ में रिपोर्ट में ऐसे सुझाव दिए गए हैं जो नीतिगत चर्चा को समृद्ध करते हैं। इनमें आरक्षण की रोटेशन प्रणाली पर प्रत्येक चुनाव के बजाय दो से तीन कार्यकालों में एक बार विचार करने की जरूरत, लोक सभा और विधान सभा क्षेत्रों, नगर निगम और ग्राम पंचायतों के लिए समान मतदाता सूची, राज्य वित्त आयोग का समय पर गठन आदि शामिल हैं। इनके अलावा, सभी प्रकार की आवासीय एवं अन्य संपत्ति पर जायदाद कर वसूलने के लिए ग्राम पंचायतों को अधिकार देने, सहायक कर्मचारियों की नियमित भर्ती एवं उनका प्रशिक्षण और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय सरकार लोकपाल की स्थापना करने का भी जिक्र किया गया है।

First Published - February 25, 2025 | 10:59 PM IST

संबंधित पोस्ट