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Editorial: सांसदों को मिले समुचित वेतन

लोकतंत्र में निर्वाचित जन प्रतिनिधि को मिलने वाले वेतन-भत्ते उसके काम के लिहाज से पर्याप्त हैं या नहीं, इस पर चर्चा की गुंजाइश बनी रहती है।

Last Updated- March 28, 2025 | 10:36 PM IST
New Parliament Building
प्रतीकात्मक तस्वीर

पांच साल बाद आखिरकार सांसदों के वेतन-भत्ते बढ़ाने की मंजूरी मिल ही गई है। इस बढ़ोतरी के बाद उनका मूल वेतन 1 लाख रुपये से बढ़कर 1.24 लाख रुपये प्रति माह हो गया है और 1 अप्रैल, 2023 से प्रभावी माना जा रहा है। सांसदों को मिलने वाले तमाम भत्ते भी जोड़ दें तो रकम बढ़कर 2.86 लाख रुपये प्रति माह हो जाती है। सांसदों के वेतन में यह बढ़ोतरी सुर्खियों में है। वेतन में यह बढ़ोतरी बहुत पहले हो जानी चाहिए थी मगर सांसद का वेतन तय करने की प्रक्रिया पर सवाल खड़े होने चाहिए। साथ ही यह भी पूछा जाना चाहिए कि भारत जैसे बड़े और जटिलता भरे देश में चुने हुए जन प्रतिनिधियों को पर्याप्त वेतन-भत्ते मिल रहे हैं या नहीं।

जब 2018 में सांसदों के वेतन-भत्ते बढ़ाए गए थे तब तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने हर पांच साल में उनका वेतन स्वत: बढ़ जाने का प्रस्ताव रखा था। हालांकि यह मियाद लोक सभा के कार्यकाल के बराबर है किंतु इस दौरान बढ़ती महंगाई को देखकर पांच साल की सीमा व्यावहारिक नहीं रह गई है। जब 2020 में कोविड महामारी आई थी तब एक साल के लिए सांसदों का वेतन 30 प्रतिशत काट दिया गया मगर बाद में उसे बहाल कर दिया गया। अफसरशाहों के वेतन की समीक्षा और बढ़ोतरी नियमित अंतराल पर होती है। सांसदों के लिए भी वही अंतराल लागू होना चाहिए। जेटली ने यह भी कहा था कि सांसदों के वेतन-भत्ते में स्वत: बढ़ोतरी मुद्रास्फीति से जोड़ दी जाएगी। सांसदों को अपनी मर्जी से अपना वेतन तय करने देने के बजाय यह ज्यादा पारदर्शी तरीका है। लेकिन इस बार की वेतन वृद्धि 2018 के मानकों के हिसाब से नहीं हुई है क्योंकि यह सालाना 4.8 प्रतिशत बैठ रही है, जबकि महंगाई उससे ज्यादा बढ़ी है।

लोकतंत्र में निर्वाचित जन प्रतिनिधि को मिलने वाले वेतन-भत्ते उसके काम के लिहाज से पर्याप्त हैं या नहीं, इस पर चर्चा की गुंजाइश बनी रहती है। पहली नजर में सांसदों को बतौर वेतन-भत्ता मिलने वाले 2.86 लाख रुपये शीर्ष अफसरशाहों के वेतन-भत्ते के बराबर हैं। मगर मामला इतना सीधा नहीं है। वरीयता क्रम में सांसद भारत सरकार के सचिव से वरिष्ठ होता है, इसलिए सिद्धांत रूप में उसे अधिक वेतन मिलना चाहिए। दूसरी बात, अफरसशाहों के वेतन में मूल वेतन, महंगाई भत्ता और आवास तथा किराया भत्ता होते हैं। सांसद के वेतन में मूल वेतन के अलावा संसद में बिताए गए हर दिन के लिए दैनिक भत्ता, कार्यालय भत्ता और संसदीय क्षेत्र भत्ता शामिल होता है। हर महीने मिलने वाले संसदीय क्षेत्र भत्ते के 87,000 रुपये और कार्यालय भत्ते के 75,000 रुपये वेतन नहीं माने जा सकते क्योंकि उन्हें ये दोनों रकम खर्च करनी ही पड़ती हैं। कार्यालय भत्ते में कंप्यूटर जानने वाले सहायक का 50,000 रुपये मासिक वेतन और स्टेशनरी के 25,000 रुपये शामिल होते हैं।

सांसदों को बिजली, पानी, टेलीफोन और इंटरनेट बिल अपनी जेब से नहीं देना पड़ता और रहने की व्यवस्था भी सरकारी खर्च पर होती है। सांसद एवं उनके परिवार (और साथियों) को संसदीय क्षेत्र से दिल्ली यात्रा के लिए 34 हवाई टिकटों का पैसा सरकार से वापस मिल जाता है। साथ ही रेल यात्रा में भी उन्हें किराये पर रियायत मिलती है। सांसदों की संपत्ति बढ़ने के बारे में आम जनता के बीच जमकर चर्चा होती है मगर हकीकत यह है कि कई सांसद एकदम सामान्य पृष्ठभूमि से हैं। अमीर हों या गरीब, सांसदों को इतना वेतन तो मिलना ही चाहिए कि वे अपना काम ईमानदारी और अधिक से अधिक कुशलता से कर सकें। 

First Published - March 28, 2025 | 10:23 PM IST

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