केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने सरकार की आय और व्यय के रुझानों की अर्द्धवार्षिक समीक्षा प्रस्तुत की है। अगर सरसरी तौर पर देखा जाए तो इस दस्तावेज के पाठ में कुछ खास नहीं नजर आता है। वित्त मंत्रालय ने संकेत दिया है कि चालू वर्ष की पहली छमाही में हुई राजस्व प्राप्तियां बजट अनुमान की करीब 52 फीसदी रहीं। यह पांच वर्ष के औसत से बेहतर प्रदर्शन है। इस दौरान राजकोषीय घाटा भी सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी के प्रतिशत के रूप में साल की पहली छमाही के लिए तय मानक से कम रहा। इससे ऐसा प्रतीत हो सकता है कि अब जबकि केंद्रीय बजट जल्दी ही पेश किया जाना है, तो उसकी तैयारी के दौरान देश की वृहद आर्थिक स्थिति खासी सहज है। यकीनन दस्तावेज तो यही बताता है कि सरकार राजकोषीय मजबूती की राह पर बढ़ रही है। इसमें कोई खास चिंता नहीं दर्शाई गई है। बहरहाल, अर्द्धवार्षिक समीक्षा से राहत की बात शायद पूरी तरह सच नहीं हो।
यदि इस दस्तावेज को अलग ढंग से देखा जाए तो यह ऐसी उल्लेखनीय कमियां भी सामने लाता है जो वित्त मंत्रालय को चिंतित कर सकती हैं। ऐसी कमियों वाले अधिकांश क्षेत्र वृद्धि के क्षेत्र में कमजोर प्रदर्शन से संबंधित हैं। अर्थव्यवस्था में यह कमजोरी पिछली तिमाही में नजर आई। चुनावों के चलते कम व्यय के साथ चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में वास्तविक वृद्धि केवल छह फीसदी रही। चूंकि नॉमिनल वृद्धि, जैसा कि केंद्रीय बजट में प्रावधान किया गया, 10.5 फीसदी होनी थी लेकिन यह एक फीसदी से अधिक कम हो गई। ऐसे में बजट का गणित जटिल हो गया है। ये बातें अर्द्धवार्षिक रिपोर्ट के डेटा में सामने आई हैं।
राजस्व प्राप्तियां पांच साल के औसत से अधिक होने के बावजूद कोई फर्क पड़ता नहीं नजर आता है। ऐसा इसलिए कि बीते पांच साल की इस गणना में वे असाधारण वर्ष भी शामिल हैं जब देश और दुनिया महामारी की चपेट में थी। पूंजीगत व्यय की बात करें तो वृद्धि में मदद करने वाला यह व्यय भी पहली छमाही में तुलनात्मक वर्षों की अपेक्षा कम रहा है। यह भी सरकार की दुविधा को उजागर करता है। अगर उसे वृद्धि को गति देनी है तो वह व्यय बढ़ाने का जोखिम ले सकती है। परंतु मौजूदा वर्ष के बजट अनुमानों के आधार पर पहली छमाही में राजकोषीय घाटे के कमजोर आंकड़े, वास्तविक नॉमिनल जीडीपी को सही ढंग से परिलक्षित नहीं करते। वर्ष के अंतिम राजकोषीय घाटे की गणना इसी आधार पर की जाती है। एक वास्तविक जोखिम यह है कि व्यय के लिए पहले अनुमानित मार्ग पर वापसी भी सरकार को घाटे के लक्ष्य से गुजरने पर विवश करेगी।
जाहिर है सरकार के सामने आसान विकल्प नहीं हैं। वर्ष की अंतिम तिमाही में वृद्धि को लेकर आशावादी दृष्टिकोण अपनाने का लालच रहेगा ताकि बजट के गणित को आसान बनाया जा सके। परंतु ऐसा करना गलत होगा। मौजूदा प्रशासन ने वृद्धि और राजस्व को लेकर तार्किक और बचाव योग्य बाह्य निष्कर्षों के इस्तेमाल पर जोर दिया है। बाजारों ने इस संयम के लिए पुरस्कृत भी किया है। कड़े परिश्रम से हासिल इस प्रतिष्ठा से मिली वृहद आर्थिक स्थिरता को अत्यधिक आशावादी अनुमानों के कारण जोखिम में नहीं डालना चाहिए। आखिर में सरकार को अपेक्षाकृत कम वृद्धि (तथा राजस्व एवं व्यय) अथवा राजकोषीय लक्ष्यों को टालने के बीच चयन करना होगा। आखिर में अगर यह वर्ष वृद्धि के क्षेत्र में सकारात्मक ढंग से चौंकाने वाला साबित होता है तो अच्छा ही होगा। परंतु अब तक के आंकड़ों के आधार पर सरकार को बजट में कुछ मुश्किल चयन करने होंगे।