वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अंतरिम बजट से यह बात सामने आई कि सरकार कई देशों के साथ द्विपक्षीय निवेश समझौतों (बीआईटी) के लिए बातचीत कर रही है। यह अच्छी खबर है क्योंकि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की गति धीमी हो रही है। मध्यस्थता विवादों के निस्तारण समेत निवेश नियमों के लिए पारस्परिक ढांचा तैयार करके बीआईटी देश में आने वाले और बाहर निवेश करने वाले, दोनों तरह के निवेशकों के अधिकारों की रक्षा करते हैं।
सीतारमण ने यह भी स्पष्ट किया कि बीआईटी पर बातचीत के दौरान ‘पहले भारत के विकास’ की भावना को ध्यान में रखा जा रहा है जो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का एक वैकल्पिक विस्तार है। अनुभव बताते हैं कि वार्ता का यह रुख एक गंभीर बिंदु हो सकता है क्योंकि सभी बीआईटी में साझा लाभ शामिल होते हैं।
भारत ने 2015 के बाद 84 संधियों में से 77 को एकतरफा ढंग से निरस्त करने के बाद कुछ बीआईटी पर हस्ताक्षर किए हैं। उसने आदर्श बीआईटी ढांचा पेश किया जो दृष्टिकोण में कमियों की ओर इशारा करता है।
आदर्श बीआईटी ढांचा कई प्रतिकूल मध्यस्थता निर्णयों की प्रतिक्रिया में तैयार किया गया था। इसमें वोडाफोन, केयर्न और देवास जैसे मामले शामिल हैं जिनमें लाखों डॉलर का नुकसान हुआ। इसका एक असामान्य पहलू यह था कि भारत ने कुछ प्रतिकूल निर्णयों को स्वीकार करने से इनकार किया जिसके चलते देवास और केयर्न ने अपनी भरपाई के लिए उस वक्त की सरकारी कंपनी एयर इंडिया की परिसंपत्तियां जब्त करने को लेकर कार्रवाई की।
निवेश के माहौल को अनुकूल और अनुमानयोग्य बनाने की नीतियों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाए आदर्श बीआईटी ढांचा विपरीत सबक लेता प्रतीत हो रहा है। उसने संप्रभु हित को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया। उसके प्रमुख उपायों में यह जरूरत भी शामिल है कि विदेशी निवेशकों को कम से कम पांच वर्षों तक स्थानीय उपायों को अपनाना होगा उसके बाद ही वे भारत के खिलाफ मध्यस्थता की कार्रवाई कर सकेंगे, भारत द्वारा लगाए गए किसी कराधान उपाय का बहिष्कार कर सकेंगे और सर्वाधिक तरजीही देश के उपबंध का बहिष्कार कर सकेंगे।
बीआईटी के मोर्चे पर उठाए गए विभिन्न कदमों के तीन पहलू दिखाते हैं कि भारत के लिए इसके लाभ नकारात्मक रहे हैं। पहली बात, सभी मौजूदा बीआईटी में सनसेट प्रावधान है जो निवेशकों को यह अधिकार देता है कि वे संधि समाप्त होने के बाद 10-15 वर्षों तक उन्हें लागू रख सकें। यह बात भारत सरकार को निरस्त बीआईटी के तहत निवेशकों द्वारा आगे की कार्रवाई को लेकर असुरक्षित बनाती है।
दूसरा, महत्त्वपूर्ण देशों के साथ बीआईटी की अनुपस्थिति भारत के उन निवेशकों को प्रभावित करती है जो विदेशों में अवसर तलाश कर रहे हैं: उदाहरण के लिए यूनाइटेड किंगडम में टाटा समूह की 5 अरब डॉलर की इलेक्ट्रिक कार बैटरी फैक्टरी। तीसरा, भारतीय न्याय व्यवस्था की फिसलन भरी राह को देखते हुए आश्चर्य नहीं कि बीते नौ साल में हमने केवल चार नए बीआईटी पर हस्ताक्षर किए हैं। हालांकि 37 अन्य के लिए बातचीत चल रही है। ब्राजील, किर्गिस्तान, ताइवान और बेलारूस के साथ चार समझौतों में से पहले दो अभी प्रवर्तित नहीं हैं।
वर्ष 2021 में विदेश मामलों की स्थायी समिति ने कहा था, ‘2015 के बाद हस्ताक्षरित बीआईटी/निवेश समझौते तथा वार्ता के अधीन ऐसे समझौतों की संख्या सीमित है और यह इस क्षेत्र में भारत की बढ़ती अभिरुचि और वैश्विक कद के अनुरूप नहीं है।’
अन्य बातों के अलावा समिति ने यह सुझाव भी दिया कि आदर्श बीआईटी में बेहतरीन वैश्विक व्यवहार को अपनाया जाए जो उन्नत देश अपनाते हैं। इसमें अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्रों का विकास शामिल है। खबर है कि यूनाइटेड किंगडम के साथ जिस बीआईटी पर चर्चा चल रही है वह 2015 के मॉडल से एकदम अलग है।
इससे संकेत मिलता है कि शायद सरकार को इसकी कमजोरी समझ में आ गई है। भारत अगर अधिक लचीला रुख अपनाए तो बेहतर होगा। इससे निवेशकों का आत्मविश्वास मजबूत होगा और समय के साथ विदेशी निवेश का स्तर भी बढ़ेगा।