कोलकाता की ओर जा रही सियालदह कंचनजंगा एक्सप्रेस (Sealdah Kanchanjunga Express) और एक मालगाड़ी के बीच उत्तरी बंगाल में हुई भिड़ंत बताती है कि भारतीय रेल ने महज एक साल पहले ओडिशा के बालासोर में हुई तीन ट्रेनों की भिड़ंत से कोई सबक नहीं लिया। उस दुर्घटना में बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए थे। वह हादसा बीते कई दशकों का सबसे बुरा रेल हादसा था और उसका कारण सिग्नल प्रणाली में गड़बड़ी थी।
कंचनजंगा एक्सप्रेस मामले में भी रेलवे की प्राथमिक जांच से यही संकेत निकलता है कि यह दुर्घटना स्वचालित सिग्नल प्रणाली में गड़बड़ी और मालगाड़ी के चालक (अब मृत) द्वारा गति संबंधी नियमों के उल्लंघन के कारण हुई। इस हादसे में 10 लोगों की मौत हुई और 50 से अधिक लोग घायल हुए।
खुशकिस्मती से कंचनजंगा एक्सप्रेस के पिछले डिब्बे पार्सल कोच थे जिसके चलते हादसे का असर सीमित रहा। सिग्नल प्रणाली की गड़बड़ी के कारण अगरतला और कोलकाता के बीच चलने वाली यात्री ट्रेन और मालगाड़ी दोनों को अनिवार्य लिखित आदेश दिया गया था जो चालकों को मानक सुरक्षा प्रोटोकॉल का पर्यवेक्षण करने के बाद स्वचालित रेड सिग्नल को पार करने की बात कहता है।
इसमें ट्रेन को सिग्नल के आगे एक स्टॉप तक लाना, दिन में एक मिनट तथा रात में दो मिनट प्रतीक्षा करना तथा उसके बाद गार्ड की पुष्टि के बाद 10 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से आगे बढ़ने की इजाजत होती है और वह भी तब जबकि आगे वाली ट्रेन से 150 मीटर का अंतर उस स्थिति में हो जबकि पिछली ट्रेन ने सिग्नल को पार न किया हो।
जांच के मुताबिक मालगाड़ी के चालक ने गति सीमा पर ध्यान नहीं दिया और उसकी ट्रेन कंचनजंगा एक्सप्रेस में पीछे से टकरा गई। कंचनजंगा एक्सप्रेस नौ सिग्नल पार कर चुकी थी और आगे बढ़ने के लिए सिग्नल की प्रतीक्षा में थी।
मानव त्रुटि हो अथवा नहीं लेकिन दुर्घटनाएं अक्सर इस बारे में प्रश्न उत्पन्न करती हैं कि रेलवे बुनियादी चीजों पर कितना ध्यान दे रहा है। गत वर्ष बालासोर में हुए हादसे की तरह ही इस लाइन पर भी भारतीय रेल के रिसर्च डिजाइंस ऐंड स्टैंडर्ड्स ऑर्गनाइजेशन द्वारा विकसित स्वचालित ट्रेन संरक्षण व्यवस्था ‘कवच’ संचालित नहीं थी।
इस इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम को इस प्रकार डिजाइन किया जाता है ताकि अगर चालक गति संबंधी नियमों का पालन नहीं कर सके तो ट्रेन में खुद ब खुद ब्रेक लग जाए। परंतु यह प्रणाली अब तक केवल 1,500 किलोमीटर ट्रैक पर ही संचालित है।
रेलवे का कुल ट्रैक नेटवर्क 99,000 किलोमीटर का है और इस वर्ष इसमें 3,000 किमी की नई क्षमता शामिल होने वाली है। इस धीमी गति पर सवाल उठना लाजिमी है, खासकर तब जबकि रेलवे संचालन में सिग्नल की विफलता के कारण दुर्घटनाएं हो रही हैं।
रेलवे के पूंजीगत व्यय में भारी इजाफा हुआ है और उसे सुरक्षा पर पर्याप्त ध्यान देना ही चाहिए। यह सही है कि बीते दो दशकों में ऐसी ट्रेन दुर्घटनाओं में 90 फीसदी तक की कमी आई है जिनमें लोग घायल हो रहे थे या जान गंवा रहे थे और जहां रेलवे की संपत्ति का नुकसान हो रहा था। परंतु 2023 तक 44 बड़ी रेल दुर्घटनाएं हुईं यानी औसतन हर महीने तीन से चार दुर्घटनाएं। ऐसे में रेल यात्रा को पूरी तरह सुरक्षित नहीं माना जा सकता है।
इसकी तुलना में इस सदी में कुछ ही हवाई दुर्घटनाएं हुई हैं। यकीनन देश की 90 फीसदी आबादी जो दुनिया के सबसे बड़े परिवहन माध्यम यानी रेल का इस्तेमाल करती है, उसे भी ऐसी ही सुरक्षा मिलनी चाहिए।