कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के इस आरोप ने भारत और कनाडा के रिश्तों को और खराब कर दिया है कि इस वर्ष जून में वैंकूवर के सरी में खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत की भूमिका थी। दोनों देशों के अपेक्षाकृत कमतर आर्थिक रिश्तों को देखते हुए शुरुआत में लगा कि इस कूटनीतिक गतिरोध का सीमित प्रभाव पड़ेगा लेकिन अब अमेरिका और ब्रिटेन से आ रही खबरें बताती हैं कि इस विवाद का एक व्यापक प्रतिमान है जिसके भारत के उभरते भूराजनीतिक हितों को लेकर अनचाहे परिणाम हो सकते हैं।
रविवार को द न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक रिपोर्ट में कहा कि ट्रूडो ने निज्जर की हत्या में भारत की भूमिका को लेकर दावा करते हुए जो ‘ठोस आरोप’ लगाए हैं अमेरिका ने उस मामले में खुफिया जानकारी मुहैया कराई थी। इसके साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि कनाडा के अधिकारियों ने भारतीय राजनयिकों के संवाद को सुना था जिसमें इस कांड में भारत की भूमिका के ठोस प्रमाण मिले थे।
इस बीच द फाइनैंशियल टाइम्स ने एक खबर में कहा था कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन और खुफिया जानकारी साझा करने वाले फाइव आइज नेटवर्क (अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड) के सदस्यों ने इस माह के आरंभ में दिल्ली में जी20 देशों के नेताओं की बैठक में यह मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उठाया था।
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जी20 में मोदी की सफलता के बाद आई इन रिपोर्ट का काफी महत्त्व है क्योंकि इनमें भूराजनीतिक बिंदु निहित हैं। तथ्य यह भी है कि चुनिंदा खुफिया जानकारी साझा करने के लिए उन दो प्रभावशाली पश्चिमी मीडिया संस्थानों का चयन किया गया जो मोदी सरकार की आलोचना करते रहे हैं। इसे भी व्हाइट हाउस द्वारा आलोचना के रूप में देखा जा सकता है।
दोनों रिपोर्ट उसी समय सामने आईं जब भारत ने खालिस्तानी आंदोलन को कनाडा द्वारा प्रोत्साहन दिए जाने पर आक्रामक रुख अपनाया। हालांकि ऐसा इस वजह से नहीं हुआ कि ट्रूडो के दल और न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच गठबंधन है जिसके सिख नेता ने खुलकर कनाडाई धरती पर ‘खालिस्तानी जनमत संग्रह’ की वकालत की थी। इसके लिए सरकार ने 10 सितंबर को मंजूरी वापस ले ली थी।
हालांकि अमेरिका ने बाहरी तौर पर निष्पक्ष रुख रखने का निर्णय लिया लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन और विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के हालिया बयान साफ संदेश देते हैं। उदाहरण के लिए सुलिवन ने इस बात की पुष्टि की कि बाइडन प्रशासन इस मुद्दे पर कनाडा और भारत दोनों सरकारों के साथ संपर्क में है।
उन्होंने रॉयटर्स से स्पष्ट कहा कि वह उन खबरों से सहमत नहीं हैं जिनमें कहा जा रहा है कि ‘इस मसले पर अमेरिका और कनाडा में दूरी है।’ ब्लिंकन ने भारत सरकार से कहा है कि वह कनाडा की जांच के साथ सहयोग करे। यह भारत के राजनयिकों के लिए अच्छी सलाह हो सकती है क्योंकि इससे भारत के उस दावे की विश्वसनीयता बढ़ेगी कि कनाडा के आरोप बेतुके हैं।
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इस विवाद से यह संकेत भी मिलता है कि अगर भारत और कनाडा के बीच तनाव बढ़ा तो अमेरिका की कूटनीतिक प्राथमिकताएं क्या होंगी। हालांकि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार बनकर उभरा है लेकिन तथ्य यह है कि कनाडा अमेरिका का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है और अमेरिका-मैक्सिको-कनाडा समझौते की बदौलत उनके पारंपरिक रिश्ते रहे हैं।
एक करीबी आर्थिक और सांस्कृतिक साझेदार तथा चीन के बढ़ते प्रभुत्व को संतुलित करने के लिए एक बिना जांचे परखे साझेदार के बीच चुनने में शायद अमेरिका को कोई संशय न हो। खासकर तब जब अमेरिका जापान, दक्षिण कोरिया और फिलिपींस के माध्यम से त्रिपक्षीय गठजोड़ के रूप में विकल्प तलाश रहा हो। ऐसे में कनाडा को लेकर भारत की नाराजगी उचित हो सकती है लेकिन भारत को शायद घरेलू और विदेश नीति संबंधी लक्ष्यों में संतुलन कायम करना पड़े।