facebookmetapixel
GST में सुधारों से अर्थव्यवस्था को मिलेगी गति, महंगाई बढ़ने का जोखिम नहीं: सीतारमणइजरायल के वित्त मंत्री बेजालेल स्मोटरिच 8 सितंबर को भारत आएंगे, दोनों देशों के बीच BIT करार हो सकता है फाइनलGold Outlook: हो जाए तैयार, सस्ता हो सकता है सोना! एक्सपर्ट्स ने दिए संकेतVedanta ने JAL को अभी ₹4,000 करोड़ देने की पेशकश की, बाकी पैसा अगले 5-6 सालों में चुकाने का दिया प्रस्ताव1 करोड़ का घर खरीदने के लिए कैश दें या होम लोन लें? जानें चार्टर्ड अकाउंटेंट की रायदुनियाभर में हालात बिगड़ते जा रहे, निवेश करते समय….‘रिच डैड पुअर डैड’ के लेखक ने निवेशकों को क्या सलाह दी?SEBI की 12 सितंबर को बोर्ड मीटिंग: म्युचुअल फंड, IPO, FPIs और AIFs में बड़े सुधार की तैयारी!Coal Import: अप्रैल-जुलाई में कोयला आयात घटा, गैर-कोकिंग कोयले की खपत कमUpcoming NFO: पैसा रखें तैयार! दो नई स्कीमें लॉन्च को तैयार, ₹100 से निवेश शुरूDividend Stocks: 100% का तगड़ा डिविडेंड! BSE 500 कंपनी का निवेशकों को तोहफा, रिकॉर्ड डेट इसी हफ्ते

बैंकिंग साख: रिजर्व बैंक के गवर्नरों पर एक नजर

सन 1991 के भुगतान संतुलन संकट के समय उन्होंने बैंक ऑफ इंगलैंड और बैंक ऑफ जापान से संपर्क किया लेकिन कोई बिना गारंटी कर्ज नहीं देना चाहता था।

Last Updated- April 16, 2024 | 9:19 PM IST
RBI

आर एन मल्होत्रा 4 फरवरी, 1985 से 22 दिसंबर, 1990 तक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर रहे। वह सन 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार की कर्ज माफी योजना के जबरदस्त विरोधी थे। उन्हें रिजर्व बैंक के कर्मचारियों का कार्यालय में दीवाली, गणेश चतुर्थी, क्रिसमस या कोई धार्मिक त्योहार मनाना भी नापसंद था। उन्होंने इसे बैंक के धर्मनिरपेक्ष चरित्र के विरुद्ध बताते हुए एक परिपत्र जारी किया था।

उनके बाद गवर्नर बने एस वेंकिटरमणन केंद्रीय बैंक के पहले गवर्नर थे जिसके पास मारुति 800 थी। वह सरकारी ऐंबेसडर कार का इस्तेमाल करते थे लेकिन जब कभी उन्हें किसी से खामोशी से मिलना होता तो वह अक्सर बिना अपने वाहन चालक के अपनी कार से जाते।

सन 1991 के भुगतान संतुलन संकट के समय उन्होंने बैंक ऑफ इंगलैंड और बैंक ऑफ जापान से संपर्क किया लेकिन कोई बिना गारंटी कर्ज नहीं देना चाहता था। 4 से 18 जुलाई, 1991 के बीच रिजर्व बैंक ने 46.91 टन सोना गिरवी रखकर इन बैंकों से 40 करोड़ डॉलर की राशि जुटाई।

उनके उत्तराधिकारी सी. रंगराजन ने बैंक और वित्तीय संस्थानों के बीच की दीवार ढहा दी। उन्होंने जमा और ऋण पर ब्याज दरें भी कम करनी शुरू की। उन्होंने तदर्थ ट्रेजरी बिल को खत्म कर वेज ऐंड मींस एडवांसेज योजना शुरू की ताकि सरकारी प्राप्तियों और भुगतान की अस्थायी विसंगति को दूर किया जा सके।

रंगराजन की पत्नी बहुत धार्मिक थीं। वह बंगले पर तकरीबन रोज भजन-कीर्तन और सत्संग का आयोजन करतीं। इस दौरान वह लगातार कार्यालय में फोन करके पूछतीं कि ‘रंगा’ घर के लिए निकले या नहीं। हर बार उन्हें एक ही जवाब मिलता, ‘वह बस निकलने वाले हैं।’

जब विमल जालान गवर्नर बने, रिजर्व बैंक स्थानीय मुद्रा को बचाने के लिए रोज एक अरब डॉलर खर्च कर रहा था। बैंक का विदेशी मुद्रा भंडार 25 अरब डॉलर था। जब जालान ने पद छोड़ा तब यह बढ़कर 84 अरब डॉलर हो चुका था।

अगस्त 1998 में भारत ने रीसर्जेंट इंडिया बॉन्ड की मदद से 4.8 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा जुटाई। अक्टूबर 2001 में इसे दोहराया गया। इस बार मिलेनियम डिपॉजिट स्कीम के जरिये अनिवासी भारतीयों से 5.5 अरब डॉलर की राशि जुटाई गई।

जालान को पूर्वी एशियाई संकट समेत कई संकटों से निपटना पड़ा। मई 1998 के पोकरण-2 परमाणु परीक्षण भी उन्हीं के दौर में हुए। अमेरिका ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए और कई अन्य देशों ने भी ऐसा ही किया। इसके अलावा जनवरी 2001 में गुजरात में भूकंप आया जिसमें 12,300 लोग मारे गए। किसी मुद्दे की जड़ तक जाना उनकी खासियत थी।

सन 1997 में केंद्रीय बैंक के तत्कालीन डिप्टी गवर्नर वाईवी रेड्‌डी के रुपये को लेकर एक गैरजिम्मेदार बयान से विदेशी मुद्रा बाजार में हड़कंप मच गया था। उन्होंने15 अगस्त, 1997 को गोवा में नैशनल असेंबली ऑफ द फॉरेक्स एसोसिएशन के उद्घाटन भाषण में कहा, ‘इस बात को लेकर काफी चर्चा हो रही है कि रुपया अधिमूल्यित है या नहीं। वास्तविक प्रभावी विनिमय दर के मुताबिक ऐसा प्रतीत होता है, भले ही इसके लिए कोई आधार चुना गया हो।’

उस दिन शुक्रवार था और अगले सप्ताह बाजार खुलने पर रुपये में गिरावट आने लगी। जनवरी 1998 तक रुपया अगस्त 1997 के स्तर से 13 फीसदी गिरकर प्रति डॉलर 40.65 हो गया।

यह पहला मौका था जब केंद्रीय बैंक ने बाजार से बात की। रिजर्व बैंक ने अपना संदेश देने के लिए रेड्‌डी को संदेशवाहक बनाया। बतौर गवर्नर उन्होंने किस तरह अर्थव्यवस्था को संभाला और कैसे देश को 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट से उबारा वह सभी जानते हैं। उन्होंने ‘वित्तीय समावेशन’ नामक जुमला दिया और शून्य बैलेंस वाले खाते पेश किए। एक दशक बाद 2014 में उन्हें प्रधानमंत्री जन-धन योजना के रूप में पेश किया गया।

डी. सुब्बाराव ने लीमन ब्रदर्स होल्डिंग इंक के दिवालिया होने से लगभग एक सप्ताह पहले ही रेड्‌डी की जगह पद संभाला था। रिजर्व बैंक में उनका कार्यकाल केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता के लिए वित्त मंत्रालय के साथ निरंतर संघर्ष के लिए भी जाना जाता है।

अगस्त 2013 में 10वें नानी ए पालकीवाला स्मृति व्याख्यान में उन्होंने जर्मनी के चांसलर रहे जेरहार्ड स्कॉर्डर को उद्धृत करने के बाद कहा कि उन्हें उम्मीद है कि एक दिन वित्त मंत्री पी चिदंबरम भी कहेंगे कि ‘ मैं रिजर्व बैंक से हताश हो चुका हूं, इतना हताश कि वॉक पर जाना चाहता हूं, भले ही अकेले जाना पड़े। बहरहाल, ईश्वर का शुक्र है कि रिजर्व बैंक का अस्तित्व है।’
वह चिदंबरम की अक्टूबर 2012 की नाराजगी का जिक्र कर रहे थे जब रिजर्व बैंक ने उच्च मुद्रास्फीति से निपटने के लिए नीतिगत दरों को अपरिवर्तित रखा था जबकि एक दिन पहले ही वित्त मंत्री ने सरकार के वित्तीय समेकन का खाका पेश किया था। इससे नाराज चिदंबरम ने कहा था, ‘वृद्धि भी मुद्रास्फीति के समान ही चुनौती है। अगर सरकार को वृद्धि की चुनौती का सामना अकेले ही करना है तो इस राह पर अकेले चलेंगे।’

गवर्नर बंगले पर आयोजित विदाई समारोह में हमने उन्हें शाहरुख खान पर फिल्माए हनी सिंह के गाए चेन्नई एक्सप्रेस फिल्म के गाने पर लुंगी डांस करते देखा। उन्हें शाहरुख खान-काजोल की फिल्में बहुत पसंद थीं।

रघुराम राजन ने 5 सितंबर, 2013 को आरबीआई गवर्नर का पद संभाला। उन्होंने हालात को कुशलतापूर्वक संभाला। वृहद आर्थिक स्थिरता के बाद उनका जोर सुधार पर था। उन्होंने बैंकिंग क्षेत्र को खोलकर प्रतिस्पर्धा बढ़ाई और खराब परिसंपत्तियों की पहचान की तथा कॉर्पोरेट डिफॉल्टरों के मन में ऊपर वाले का डर पैदा किया। उनके कार्यकाल को परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा के लिए जाना जाएगा।

उनके उत्तराधिकारी ऊर्जित पटेल भी फंसे कर्ज से निपटने और मुद्रास्फीति से जूझने में लगे रहे। उन्होंने सरकार की कोशिशों के खिलाफ जाकर बिजली क्षेत्र के दिवालिया कारोबारियों को ऋणशोधन अदालत तक पहुंचाया। सरकार यह भी चाहती थी कि रिजर्व बैंक अपने कुछ नियमों पर पुनर्विचार करे जिनके चलते 11 बैंक नए ऋण नहीं दे पा रहे थे क्योंकि रिजर्व बैंक मानता था कि कमजोर बैंक कारोबारी वृद्धि नहीं पैदा कर सकते।

उनके कार्यकाल में रिजर्व बैंक की स्वायत्तता और सरकार की सम्मान चाहने की लड़ाई तब तक चली जब तक कि वह ऐसे स्तर पर नहीं पहुंच गई जहां रिजर्व बैंक ने आरबीआई अधिनियम की धारा 7 का प्रयोग करके केंद्रीय बैंक को कुछ बातों पर निर्देशित करना शुरू कर दिया। धारा 7 सरकार का प्रयोग करके सरकार ने आरबीआई को तीन नोटिस भेजे।

सरकार यह भी चाहती थी कि रिजर्व बैंक अपनी अधिशेष नकदी उसे दे ताकि वह राजकोषीय घाटे का मुकाबला कर सके। दिसंबर 2018 में रिजर्व बैंक की अहम बोर्ड बैठक के पहले पटेल ने व्यक्तिगत वजहों से इस्तीफा दे दिया। इसकी कई वजह थीं लेकिन शायद सबसे अहम थी केंद्रीय बैंक की बैलेंस शीट पर छापेमारी।

अब एक बार फिर एक आईएएस अधिकारी शक्तिकांत दास रिजर्व बैंक के गवर्नर हैं। वेंकिटरमणन के बाद वह पहले गवर्नर हैं जिन्होंने अर्थशास्त्र की शिक्षा नहीं ली है। वह जो कुछ कर रहे हैं, हम सब उसके साक्षी रहे हैं।

First Published - April 16, 2024 | 9:19 PM IST

संबंधित पोस्ट